Suprarenal Gland को हिन्दी में ‘अधिवृक्क ग्रन्थि’ भी कहा जाता है । प्रत्येक वृक्क के ऊपर वाले सिरे के ऊपर और सामने को हल्के पीले रंग की त्रिकोणाकार में स्थित एक ग्रन्थि होती है यही उपवृक्क या अधिवृक्क (Suprarenal) कहलाती है। ये दो होती हैं – दाहिनी और बाँयी । यह सब मनुष्यों में एक समान नहीं हुआ करती हैं। प्रायः इसकी लम्बाई डेढ़ से सवा दौ इंच और चौड़ाई 1 इंच होती है । इसका भार लगभग 67 ग्राम होता है।
मनुष्य में यह ग्रन्थि प्रत्येक वृक्क के ऊपरी भाग के प्रति पृष्ठ तल की ओर लगी रहती है। जैसा कि ऊपर वर्णित है कि इनकी संख्या दो होती है और इस ग्रन्थि के दो भाग होते हैं। बाहरी भाग को Cortex और भीतरी भाग को Medulla कहते हैं । कर्टेक्स भाग से कार्टिन Cortin नामक हारमोन बनता है। ग्रन्थि के इस भाग को निकाल देने से चयापचयी क्रियाओं की गति मन्द पड़ जाती है। रूधिर का रक्त तथा नमक (Nacl) मूत्र के साथ बाहर निकल जाता है । भूख मर जाती है और पेशियाँ शिथिल पड़ जाती हैं ।
कार्टिन के अधिक मात्रा में उत्पन्न होने से लिंग परिवर्तन (पुरुष से स्त्री अथवा स्त्री से पुरुष) का होना देखा गया है । विशेषकर महिलाओं में ऐसी दशा हो जाती है और वह पुरुषों में बदलने लगती हैं ।
एट्रीनल ग्रन्थि के मेडयूला भाग में एड्रीनलिन हारमोन बनता है । यह रुधिर वाहिनियों के रुधिर के स्राव का नियन्त्रण करता है। इसके बढ़ जाने से हृदय की गति तेज हो जाती है, रोंगटे खड़े हो जाते हैं । आँखें बड़ी और पुतलियाँ चौड़ी हो जाती हैं तथा आँसू, पसीना आदि निकलने लगता है ।
अधिवृक्क ग्रन्थि के कार्य (Functions of Supra-Renal)
इसके भीतरी भाग में एड्रीनलिन (adrenalin) नामक अनमोल पदार्थ (हारमोन) प्राप्त होता है। इस भाग के काम में कमी आ जाने से ‘एडीसन्स’ नामक रोग (Addison’s Disease) पैदा हो जाती है । इस रोग का इस ग्रन्थि से सम्बन्ध सबसे पहले सन् 1885 में एडीसन नामक वैज्ञानिक ने ज्ञात किया था । इसलिए इस रोग का नाम भी उन्हीं के नाम पर पड़ गया । इस रोग में रक्तभार (ब्लडप्रैशर) कम हो जाता हैं, उल्टी होती हैं, कमजोरी बहुत आ जाती है, कम मेहनत करने से ही थकावट ज्यादा आती है, दस्त लग जाते हैं और त्वचा का रंग गहरा हो जाता है ।
उपवृक्क के बाह्य भाग के बढ़ जाने से रक्तभार काफी बढ़ जाता है । शरीर मोटा हो जाता है और बाह्य जननेन्द्रियाँ जल्दी ही बड़ी हो जाती हैं। चार साल के बालक का लिंग (Penis) पन्द्रह साल के लड़के के बराबर हो जाता है । बालिकाओं में चार साल की छोटी आयु में ही शरीर पर बाल निकल आते हैं । उपवृक्क के स्राव को उपवृक्कीय सत्व या रस कहते हैं। संक्षेप में इसके कार्य निम्नलिखित हैं –
• यह रक्त के बहाव को ठीक करती है ।
• रक्त में मिली हुई शर्करा (ग्लूकोज) की मात्रा को ठीक रखती है ।
• थकावट को दूर करती है ।
• पीयूष ग्रन्थि के स्राव (रस) की सहायता से शरीर के लैंगिक विकास (Sexual Development) को प्रभावित करती है ।