परिचय : 1. इसे आफूक, अहिफेन (संस्कृत), अफीम (हिन्दी), आफिम (बंगला), अफू (मराठी), अफीण (गुजराती), अफमून (अरबी) तथा पेपेवर सोम्नीफेरम (लैटिन) कहते हैं।
2 . इसका पौधा 3-4 फुट ऊँचा, हरे रेशों से युक्त और चिकने काण्डवाला होता है। इसके पत्ते लम्बे, डंठलरहित, गुड़हल के पत्तों से कुछ मिलते-जुलते, आगे के हिस्से में कटे होते हैं। फूल सफेद रंग के और कटोरीनुमा बड़े सुहावने होते हैं। इसके फल छोटे और अनार की आकृति के होते हैं। जड़ साधारणतया छोटी होती है।
3. यह भारत में विशेषत: उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, असम और विन्ध्यप्रदेश में पैदा होती है। पश्चिमोत्तर प्रान्त में इसकी खेती की जाती है।
4. मुख्यतः फूलों के रंगों के अनुसार यह तीन प्रकार की होती है : 1. पिलाई लिये सफेद (खसखस सफेद), 2. लाल (खसखस मन्सूर) तथा 3. काला या नीला (खसखस स्याह) ।
सायंकाल इस पौधे (खसखस) के कच्चे फलों के चारों ओर चीरा लगा देने पर दूसरे दिन प्रात: वहाँ दूध के समान निर्यास पाया जाता है। उसे खुरचकर सुखा लेने पर अफीम बन जाती है। सूखे फल को ‘डोडा’ (पोश्त) कहा जाता है। इसके बीज राई की तरह काले या सफेद रंग के होते हैं, जिन्हें ‘पोस्तादाना’ (खसखस) कहते हैं। पोश्ता लगभग 14 प्रकार का होता है।
चिकित्सा-शास्त्र में इसे उपविष-वर्ग में रखा गया है।
रासायनिक संघटन : इसमें मार्फिन, नर्कोटीन, कोडीन, एपोमॉर्फीन, आपिओनियन, पापावरीन आदि क्षारतत्त्व (एल्केलाइड) तथा लेक्टिक एसिड, राल, ग्लूकोज, चर्बी व हल्के पीले रंग का निर्गन्ध तेल होता है।
अफीम के गुण : यह स्वाद में कड़वी, कसैली, पचने पर कटु तथा गुण में रूखी होती है। इसका मुख्य प्रभाव नाड़ी-संस्थान पर मदकारी (नशा लानेवाला) होता है। यह नींद लानेवाली, वेदना-रोधक, श्वास-केन्द्र की अवसादक, शुक्रस्तम्भक और धातुओं को सुखानेवाली है।
अफीम के प्रयोग
मोतियाबिन्द : चौथाई रत्ती अफीम और 3 रत्ती केसर की गोली बनाकर बादाम के हलुए के साथ खाने से पुराना सिरदर्द, बार-बार होनेवाला नजला और जुकाम रुक जाता है। आँखों में मोतियाबिन्द उतर रहा हो, तो वह भी इससे रुक जाता है। दो सप्ताह इसके सेवन के बाद केवल बादाम और केसर का सेवन करें, अफीम निकाल दें। आवश्यकता होने पर पुन: इसे लें। यह अनुभूत प्रयोग है।
दस्त : चार रत्ती अफीम एक छुहारे के अन्दर रख उसे आग में भुने। फिर उसे पीसकर, मूँग के बराबर 1-1 रत्ती की गोली बना लें। इसके सेवन से मरोड़ देकर आँवसहित होनेवाले दस्तों में लाभ होता है। बच्चों को आधी मात्रा देनी चाहिए। पोस्त (फल के छिलके या ‘पोस्त-डोंडा’) उबालकर पीने से अतिसार और पतले दस्त रुक जाते हैं। अधिक मात्रा में यह मादक हो जाता है।
नजला : एक तोला खसखस घी के साथ कड़ाही में भूनें। फिर चीनी मिला हलुआ बनाकर लें। प्रात:काल इसके सेवन से पुराना सिरदर्द और प्रतिश्याय (नजला) दूर हो जाते हैं।
विभिन्न शूल : अफीम को तेल या घी में मिलाकर वेदना-स्थानों पर (बवासीर के मस्से, नेत्र, पसली के दर्द) तथा शिर:शूल में भी सिर पर लेप करें। लेकिन कान के दर्द में तेल ही डालें, घृत नहीं।
अफीम 2 रत्ती और एलुआ 1 तोला अदरख के रस में पीसकर धीमी अग्नि पर पका लेप बना लें। कपड़े पर रखकर किसी प्रकार की चोट, मोच या सूजन पर लगा दें तो निश्चित आराम होगा।
प्रतिरोध : अफीम के अधिक प्रयोग से तन्द्रा, निद्रा, हृदय का अवसाद होने लगे तो तुरन्त राई-नमक मिलाकर दें तथा वमन करा दें। अरहर की कच्ची दाल पानी में पीसकर या हींग पानी में घोलकर पिला देने से भी तुरन्त आराम पहुँचता है।
सावधानी : यह मादक द्रव्य है। अधिक प्रयोग से विषाक्त प्रभाव सम्भव है। अत: अत्यावश्यक होने पर ही इसका प्रयोग करें। फिर भी कभी अधिक मात्रा में नहीं। अतिआवश्यक होने पर ही बच्चों, वृद्धों तथा सुकुमार स्त्रियों को बड़ी सावधानी एवं कम मात्रा में ही इसे दिया जाय।