उल्टी का कारण – उल्टियाँ होने की वास्तविक क्रिया में उदरीय तथा डायफ्रोमेटिक पेशियों का संकुचन और आमाशय के कार्डिअक छिद्र का शिथिलन होता है। उल्टियाँ सामान्यत: आमाशय एवं अन्य उदरीय अंगों की बीमारियों से, व गैस स्नायु के उत्तेजना से, कुछ दवाइयों, मस्तिष्क या कान की बीमारियों में उल्टी केन्द्र के उत्तेजित होने से तथा स्नायविक तनाव, चिन्ता, घबराहट कभी-कभी तीव्र संक्रमण, तेज उदरीय दर्द, सिरदर्द, मलेरिया, आहार-विषाक्त के मामलों में भी उल्टियाँ हो सकती हैं।
उल्टी का लक्षण – उल्टी होने पर खाया-पिया मुँह द्वारा बाहर आ जाता है। जब पेट में भोजन नहीं रहता है उस स्थिति में पित्त उल्टी के रूप में आने लगता है। उल्टी होने पर पानी पिलाने का विशेष ध्यान रखना चाहिए। उल्टी में मुँह का स्वाद कड़वा अथवा खट्टा हो जाना, प्यास अधिक लगना, जीभ सूखना व उस पर कांटे जमे हुए अनुभव होना, मुँह में पानी भर आना, चक्कर आदि लक्षण हैं।
उल्टी, जी मिचलाने का इलाज घरेलू आयुर्वेदिक/जड़ी-बूटियों द्वारा
– पीपल का चूर्ण 1 माशा, बिजौरा नींबू का रस 1 माशा, शहद 1 माशा – इन सबको मिलाकर चाटने से वमन व मतली में लाभ होता हैं।
– पेट की खराबी से उत्पन्न होने वाली बेचैनी व मिचली होने पर पुदीने का रस पिलाने से शीघ्र लाभ होता है।
– सूखा अनारदाना पानी में भिगो दें। तीन-चार घण्टे बाद इस जल को थोड़ा-थोड़ा मिश्री मिलाकर कई बार पिलाने से उल्टी, जलन, अधिक प्यास आदि रोग नष्ट होते हैं।
– हरे धनिए के रस में सेंधा नमक और कागजी नींबू का रस मिलाकर लें, लाभ होगा।
– उल्टी होने पर कागजी नींबू को जलाकर उसकी एक चुटकी राख में शहद मिलाकर चाटने पर काफी राहत मिलती हैं।
– मुलहठी का टुकड़ा खाने से जी मचलना, वमन, जलन, गला बैठना, हिचकी, रक्तविकार तथा चर्मरोगों में फायदा होता है।
– एक चम्मच में 5-7 लौंग रखकर गरम करें। इन गरम लौंगों को मुँह में रखें और इनके रस को धीरे-धीरे निगलते जाएँ। इससे श्वास सुगन्धित होगी। गले की खरखराहट मिटेगी। मसूड़े मजबूत होंगे। उल्टी और जी मिचलाने में तो यह प्रयोग बहुत ही लाभकारी है।
– लौंग को मुँह में रखकर चूसने से उल्टी बन्द होती है।
– पित्त वमन होने पर एक गिलास गन्ने के ताजे रस में दो चाय की चम्मच शहद घोलकर पीते रहना हितकर है।
– पीपल की छाल को इतनी जलावें कि उसका धुआँ निकलना बन्द हो जाए। फिर इन कोयलों को पानी में बुझाकर इस पानी को निथार कर घूंट-घूंट भर पिलाते रहें।
– जी मिचलाने पर मुँह का स्वाद ठीक करने के लिये काली मिर्च चबाकर खाई जाती है।
– मुलहठी खाने से जी मिचलाना बन्द होता है, खट्टी डकारों का आना भी थमता है।
– जायफल को पानी में घिसकर लेप एक पानी में घोल कर पीने से जी मिचलाना बन्द होता है।
– लौंग का तेल बदहजमी, उल्टी, जी मिचलाना, उदरशूल और अफारा में बड़ा उपयोगी है। यह वायुनाशक है।
– जी मिचलाना, वमन होना या खट्टी डकारें आने पर इसे वमन कुठार रस 4 रत्ती, सोडाबाईकार्ब 1 ग्राम में पाँच बूँद अमृतधारा की मिलाकर देने से तुरन्त आराम मिलता है।
– जी मिचलाने, घबराहट होने या बेचैनी महसूस होने पर एक-दो लौंग मुँह में रखकर चूसने से लाभ होता है।
– जी मिचलाने पर टमाटर का सेवन कीजिए।
– ठण्डे पानी में गर्म किया हुआ नींबू और शक्कर मिलाकर पिलाने से जी मिचलाने में राहत मिलती है।
– जी मिचलाने पर नारंगी के सेवन से लाभ होता है। मोटर यात्रा करते समय नारंगी का सेवन करते रहना चाहिए।
– जी मिचलाने पर प्याज, नमक के साथ खाने से लाभ होता है।
उल्टी, जी मिचलाने का बायोकेमिक/होम्योपैथिक इलाज
इपिकाक 30 – जी बार-बार एवं अधिक मितलाता है। खाँसी के बाद अथवा खाना खाने के बाद उल्टी हो जाती है।
इथूजा 30 – जी मिचलाता है। बच्चा दूध पीते ही उल्टी कर देता है। उल्टी में दूध फटा-फटा निकलता हैं। उल्टी करते ही बच्चा थक जाता है और सो जाता हैं।
ऐण्टिमक्रूड 6 – जीभ पर सफेद मैल जम जाता है। वयस्क खाने के बाद एवं बच्चा दूध पीते ही उल्टी कर देता हैं। कभी-कभी दस्त भी हो सकते हैं।
फास्फोरस 30 – रोगी के पेट में जलन महसूस होती है। रोगी ठंडा पानी पीना चाहता है किन्तु पानी पेट में पहुँचकर जैसे ही गर्म हो जाता है, रोगी का जी मितलाता है और उल्टी हो जाती है। पेट में यदि अल्सर हो और उसके कारण जलन महसूस हो-ऐसे में भी यह औषधि लाभकारी है।
कोलचिकम 30 – जी कच्चा-कच्चा सा रहता है। खाने की गंध से ही जी मितलाने लगता है !