व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग प्रकृति | लक्षणों में कमी |
हृदय मानो मुट्ठी से जल्दी-जल्दी दबाया और छोड़ा जा रहा है | खुली हवा से रोग में कमी |
किसी भी अंग में जकड़न का अनुभव होना। | |
वात-रोग या गठिया में जकड़न का अनुभव | लक्षणों में वृद्धि |
बायीं बांह का सुन्न हो जाना | दोपहर के समय रोग में वृद्धि |
रक्त-संचय के कारण भिन्न-भिन अंगों से रुधिर जाना (जैसे, बवासीर में) | 11 बजे प्रात: तथा सांय |
पेट, आतों, हाथों, टांगों सिर में स्पन्दन | बायीं करवट लेटने से रोग में वृद्धि |
हदय मानो मुट्ठी से जल्दी-जल्दी दबाया और छोड़ा जा रहा है (एन्जाइना पैक्टोरिस)
यह हृदय के रोग की प्रधान दवा है। रोगी को ऐसा अनुभव होता है मानो उसका हृदय मुट्ठी में दबाया हुआ है, और जल्दी-जल्दी उसे दबाया और छोड़ा जा रहा है। उसे हृदय में ऐसा दर्द होता है कि वह समझता है कि उसका रोग असाध्य है। उसे डर लगता है कि उसकी मृत्यु हो जायगी। मृत्यु का भय. एकोनाइट में भी है, परन्तु कैक्टस में मृत्यु-भय की तीव्रता एकोनाइट जैसे नहीं है। रोगी उदास रहता है, अकेला, चुपचाप बैठा रहता है। किसी से बात नहीं करता। हृदय के रोग में रोगी प्राय: रोया करता है। कैक्टस में भी रोना है। एकोनाइट में गले और छाती में रोगी ऐसी जकड़न अनुभव करता है मानो घुट कर मर जायगा। यह घुटन कैक्टस की घुटन से ज्यादा है।
दिल के इस प्रकार के कष्ट में निम्न-लक्षणों पर निम्न होम्योपैथिक औषधियां उपयुक्त हैं
कैक्टस – मानों मुट्ठी से हृदय को बार-बार जकड़ा और छोड़ा जा रहा है।
आयोडाइन – मानो दिल को निचोड़ा (Squeeze) जा रहा है।
लैकेसिस – सोकर उठने पर दिल का सिकोड़ा (Constriction) जाना और घबराहट दूर करने के लिये कपड़ा फेंक देना।
आर्सेनिक – घूमते-फिरते मालूम होना कि दिल सिकुड़ रहा है।
किसी भी अंग में जकड़न होम्योपैथिक दवा
जकड़न का अनुभव सिर्फ हृदय तक सीमित नहीं है। रोगी किसी भी अंग में जकड़न अनुभव करे, तो कैक्टस ही दवा है। रोगी अनुभव करता है कि उसकी छाती लोहे की जंजीर से जकड़ी हुई है, सिर पर इस प्रकार का दबाव अनुभव करता है कि मोना सिर पर भारी बोझ से सिर जकड़ा पड़ा है। यह जकड़न हृदय और छाती के अलावा मूत्राशय, गुदा, जरायु, योनि आदि किसी अंग में भी हो सकती है। हृदय में जकड़न का अनुभव, सिर में सिर के कस कर बंधे होने का अनुभव, छाती में बोझ जिसमें सांस लेना कठिन हो, गले में जकड़न भरी ऐंठन, जरायु में ऐसी जकड़न कि मैथुन न हो सके, मस्तिष्क में ऐसा अनुभव होना कि कपड़े से जोर से लपेटा हुआ है – ये हैं भिन्न-भिन्न अंगों के जकड़न के अनुभव जिनमें कैक्टस उपयोगी है।
वात-रोग या गठिये में जकड़न का होम्योपैथिक दवा
रोग में रोगी जोड़ में ऐसे अनुभव करता है मानो पट्टी से जोड़ जकड़ा हुआ है, बंधा पड़ा है। इस प्रकार के अनुभव में जकड़न, दबाव का-सा महसूस होता है। इस जकड़न में दर्द की अनुभूति होती है। कल्पना करो कि जिस जोड़ में वात-शोथ है उसे पट्टी से लगातार जोर-जोर से कसकर बांधा जा रहा है। तब जैसी अनुभूति होती है वैसी जोड़ो में ‘जकड़न’ (Constriction) महसूस होती है।
बायीं बांह का सुन हो जाने का होम्योपैथिक दवा
हृदय के रोग में बायीं बांह में ऐंठन और सुनपना हो जाता है। जो लोग गठिया या हिस्टीरिया के रोगी होते हैं उनमें भी बायीं बांह में ये लक्षण पाये जाते हैं। कैक्टस में भी हाथ का सुनपना या कीड़ियां-सी चलना मौजूद है इसलिये यह रोग की भी दवा है।
रक्त-संचय के कारण भिन्न-भिन्न अंगों से रुधिर जाना (बवासीर)
हृदय के रोग में रक्त का संचार विघटित हो जाता है इसलिये किन्हीं अंगों में रक्त का संचय अधिक हो जाता है। परिणामस्वरूप अधिक रक्त-संचय के कारण भिन्न-भिन्न अंगों से रुधिर बहने लगता है। सिर में रुधिर का संचय इतना हो जाता है कि नकसीर फूटती है, खांसते हुए गले से खून आता है, छाती से खून आता है। यह खून रक्त-संचय के कारण होता है, जरायु से रुधिर आता है, मूत्राशय से और मूत्र में रुधिर आने लगता है। यह रक्त-स्राव टी०वी के कारण नहीं होता। बवासीर में मस्से खून से भर कर बड़े हो जाते हैं इसलिये कैक्टस खूनी बवासीर की भी दवा है।
पेट, अांतों, हाथों, टांगों, सिर में स्पन्दन
शरीर के भिन्न-भिन्न स्थानों में-पेट में, अांतों में, हाथों में, टांगों में, सिर में हृदय की नाड़ी का स्पन्दन अनुभव करना इस औषधि का विचित्र-लक्षण है।
कैक्टस औषधि के अन्य लक्षण
(i) ग्यारह बजे रोग-वृद्धि – ग्यारह बजे प्रात: या सायं रोगी को लक्षण सताते हैं। छाती पर बोझ की शिकायत होगी तो 11 बजे सवेरे या 11 बजे शाम; ज्वर आयेगा तो 11 बजे सुबह या शाम या सुबह और शाम ठंड सताने लगेगी।
(ii) मूत्रावरोध – मूत्राशय में ऐसी ‘सिकुड़न’ (Constriction) होती है कि मूत्र नहीं निकलता, रुका रहता है। इस औषधि में रुधिर के थक्के आसानी से बन जाते हैं। शरीर में रुधिर का जो संचार होता है वह इतना जल्दी थक्कों में जम जाता है कि रुधिर-प्रवाह को रोक देता है। मूत्राशय में अगर रुधिर-स्राव हो जाय, तो उसके थक्के जम कर मूत्र-मार्ग को रोक देते हैं, रोगी का मूत्र रुक जाता है।
(iii) मासिक-धर्म का कष्ट – मासिक-धर्म के समय तन्दुरुस्त, हृष्ट-पुष्ट स्त्री का जरायु-मार्ग इन रुधिर के थक्कों से रुक जाता है और इन्हें बाहर धकेलने के लिये जरायु में ऐंठन पैदा होती है, जो प्रजनन के समय के कष्ट के समान होती है। रोगिणी दर्द के मारे चिल्लाने लगती है और जब तक रुधिर के ये जमे थक्के निकल नहीं जाते तब तक उसे चैन नहीं पड़ता। अगर यह अवस्था गठिये के रोगी में पायी जाय तब तो हर हालत में कैक्टस ही इस शिकायत को दूर करेगा। यह स्मरण रखना चाहिये कि कैक्टस मुख्य तौर पर हृदय की औषधि है और इसीलिये रुधिर से संबंध रखने वाले रोगों में लक्षणानुसार इसका प्रयोग होता है।
शक्ति तथा प्रकृति – 6, 30, 200 (औषधि ‘गर्म’Hot-प्रकृति के लिये है)