व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग प्रकृति | लक्षणों में कमी |
मूत्र-मार्ग की शोथ तथा जलन (जलन में रस टॉक्स, एपिस, आर्सेनिक की कैन्थरिस से तुलना | गर्मी से रोग में कमी |
अन्य रोगों के साथ मूत्र-मार्ग की जलन | मलने से रोग में कमी |
जननेन्द्रिय-संबंधी निलज्जता की बातें करना | लेटने से आराम आना |
जहरीले कीटों के जलन के विष की औषधि है; आग से जलने की औषधि | लक्षणों में वृद्धि |
कैन्थरिस तुरंत प्रभाव करता है | पेशाब करते समय कष्ट |
हनीमैन का स्पेसिफ़िक औषधियों के विषय में मत | ठंडा पानी पीने से वृद्धि |
जल का कल-कल शब्द सुनने से रोग में वृद्धि | |
छूने से रोग में वृद्धि |
(1) मूत्र-मार्ग की शोथ तथा जलन (रस टॉक्स, एपिस, आर्सेनिक की कैन्थरिस से तुलना) – इस औषधि का सबसे प्रधान लक्षण मूत्र-मार्ग की जलन है। दूसरी कोई औषधि ऐसी नहीं है, जो मूत्र-संस्थान में इतने उग्र रूप में और इतनी जल्दी जलन उत्पन्न कर दे, और इसीलिये इतनी जल्दी ऐसे रोग को शांत कर दे। मूत्राशय और प्रजनन के अंग जलने लगते हैं, उनमें सूजन आ जाती है, और व्यक्ति सेक्स-संबंधी विचारों से परेशान रहता है। मूत्र-संस्थान की इसी जलन के कारण मूत्राशय में दर्द होता है, बार-बार पेशाब आता है और मूत्राशय में असहनीय मरोड़ होते हैं। मूत्राशय की गर्दन में काटनेवाला दर्द होता है, मूत्र जाने के पहले, बीच में, और अन्त में मूत्र-प्रणाली में काटने वाला दर्द होता है, मूत्र बूंद-बूंद करके आता है। इस औषधि का संपूर्ण बल मूत्र-संस्थान के ऊपर है। इस जल में रस टॉक्स, एपिस तथा आर्सेनिक से इस औषधि की तुलना कर लेना उचित है।
जलन में कैन्थरिस तथा रस टॉक्स की तुलना – रस टॉक्स प्राय: सुर्खबादा (Erysipelas – त्वचा तथा त्वचा के नीचे के तन्तुओं का शोथ जिस में ज्वर आ जाता है) में दिया जाता है। इस में चेहरा, नाक आदि सूज जाते हैं, जलन होती है। अगर रोग उग्र रूप धारण कर ले, तो कैन्थरिस ज्यादा उपयुक्त है। रस टॉक्स में छाले पड़ जाते हैं, उनमें जलन होती है, परन्तु अगर सुर्खबादा तेजी से बढ़ने लगे, त्वचा का रंग काला पड़ने लगे, छालों को छूने से वे आग की तरह जलने लगें, तब कैन्थरिस देना ठीक रहता है। कैन्थरिस, रस टॉक्स से अधिक उग्र है, और इसमें रोग तेजी से बढ़ता है।
जलन में कैन्थरिस तथा एपिस की तुलना – सुर्खबादा की जलन में एपिस भी दी जा सकती है, एपिस में भी मूत्राशय में जलन होती है, परन्तु एपिस में जलन की अपेक्षा शोथ अधिक होता है, कैन्थरिस में जलन अधिक होती है। एपिस में रोगी इतना बेचैन, परेशान नहीं होता, कैन्थरिस में तो वह अत्यन्त उद्विग्न, परेशान, दु:खी होता है, और कभी-कभी चिल्लाने लगता है, एक जगह टिक नहीं सकता, क्योंकि मनुष्य आराम से एक जगह तब बैठ सकता है जब बेचैनी न हो।
जलन में कैन्थरिस तथा आर्सेनिक की तुलना – इन दोनों की जलन, इनके मानसिक-लक्षण एक हैं, परन्तु आर्सेनिक में जलन के साथ प्यास बहुत होती है। रोगी थोड़ी-थोड़ी देर में थोड़ा-थोड़ा पानी पीता है।
(2) अन्य रोगों के साथ मूत्र-मार्ग की जलन – मूत्र-मार्ग की जलन कैन्थरिस का ‘व्यापक-लक्षण’ है, इसलिये जिस किसी अन्य रोग के साथ यह लक्षण पाया जाय उसमें इस औषधि से आराम होता है। इस सिलसिले में डॉ० नैश का अनुभव उल्लेख योग्य है। एक स्त्री देर से ब्रोंकाइटिस से पीड़ित थी। उसका श्लेष्मा इतना अधिक निकलता था, और उस श्लेष्मा की शक्ल इस प्रकार तारदार और लेसदार थी कि उसे देखकर कैलि बाईक्रोम देने की ही सूझती थी, परन्तु इससे उसे कुछ लाभ न हुआ। एक दिन उस स्त्री ने कहा कि उसे पेशाब बड़ा लग कर आता है, जलन के साथ आता है। इस लक्षण पर उसे कैन्थरिस दिया गया और ब्रोंकाइटिस ठीक हो गया।
(3) जननेन्द्रिय-सम्बन्धी निर्लज्जता की बातें करना – मूत्र-मार्ग की जलन का एक स्वाभाविक परिणाम यह होता है कि रोगी सेक्स संबंधी विचारों से परेशान होने लगता है। हायोसाइमस, फॉसफोरस और सिकेल में जैसे सेक्स के विचार व्यक्ति को परेशान करते हैं, कैन्थरिस के रोगी को भी वैसे ही विचार परेशान करते हैं। इसका कारण मूत्र-संस्थान की जलन ही है। कभी-कभी रोगी प्रेम के गन्दे गीत गाने लगता है, और जननेन्द्रिय-संबंधी ऐसी बातें बकने लगता है जैसी स्वस्थ व्यक्ति कभी अपने मुँह से नहीं निकालता। इस सबका कारण मूत्र-संस्थान की गड़बड़ है। जब किसी लड़की को ठंड लगने से मासिक-धर्म की गड़बड़ हो जाती है, अगर उसकी माता ने पहले से सावधानीपूर्वक उसे शरीर के इन परिवर्तनों के विषय में सचेत नहीं कर दिया, तो कभी-कभी मन की ऐसी विक्षिप्त अवस्था हो जाती है जो इस दवा से दूर हो जाती है।
(4) जहरीले कीटों के जलन के विष तथा आग से जलने की औषधि – कभी-कभी कोई जहरीला कीड़ा काट जाता है जिसका विष त्वचा पर अत्यन्त जलन पैदा करता है। यह जलन कैन्थरिस से एकदम दूर हो जाती है। इसके अतिरिक्त आग की जलन को दूर करने की यह अचूक दवा है। डॉ० हैरिंग का कहना था कि अगर कोई होम्योपैथी के सिद्धान्त की सत्यता को जानना चाहे तो उसके लिये कैन्थरिस बड़ा अच्छा सुबूत है। एलोपैथी में कैन्थरिस छाले डालने के लिये त्वचा पर लगाया जाता है। सिर के बाल बढ़ाने के लिये जो तेल बनाये जाते हैं उनमें किसी-न-किसी रूप में कैन्थरिस अवश्य डाला जाता है ताकि वह खोपड़ी की त्वचा को उत्तेजित करे। डॉ० हेरिंग का कहना है कि अगर कोई होम्योपैथिक कैन्थरिस का प्रभाव जानना चाहे, तो पहले शुद्ध गर्म जल में कैन्थरिस डाल कर रख ले, और फिर अपनी अंगुलियां जलाकर उसे जल में डुबो दे। वह देखेगा की एक-दो मिनट में ही जलन दूर हो जायेंगी और छाले भी नहीं पड़ेंगे। कैन्थरिस के बाहर के प्रयोग के साथ भीतर भी 30 या 200 शक्ति की कुछ मात्राएं दे देनी चाहियें।
(5) कैन्थरिस तुरंत प्रभाव करता है – त्वचा पर कैन्थरिस डाला जाय, तो एकदम छाले पड़ जाते हैं। छालों का एकदम पड़ना सिद्ध करता है कि यह औषधि अपना प्रभाव एकदम डालती है। जो औषधि एकदम कुप्रभाव डालती है वह शरीर को स्वस्थ करने में भी एकदम प्रभावशाली होती है, न बिगाड़ने में देर लगती है, न सुधारने में देर लगाती है। होम्योपैथिक औषधियों के विषय में यह जानना आवश्यक है कि उनकी गति धीमी है या तीव्र है। रोगों की भी गति धीमी या तीव्र हुआ करती है। जैसा एकोनाइट बेलाडोना तीव्र-गति की औषधियां हैं, सर्दी लगी और रात तक बुखार आ गया। इस प्रकार के तीव्र-गति से आने वाले बुखार में तीव्र-गति वाला एकोनाइट काम देगा। ब्रायोनिया धीमी गति से आता है, सर्दी लगी तो पहले दिन दो-चार छीके आयेंगी, अगले दिन जुकाम होगा, फिर बुखार होगा। इसलिये ब्रायोनिया धीमी गति से आने वाले टाइफॉयड में काम आता है। औषधि की गति और रोग की गति में समता देखकर उपचार करना आवश्यक है।
(6) शक्ति तथा प्रकृति – बाहरी प्रयोग में मूल-अर्क, 1x, 2x, 3x तथा भीतरी प्रयोग में 6, 30, 200 (औषधि ‘सर्द’-Chilly-प्रकृति के लिये है)