हृदय-रोग के कारण छाती में जल-संचय हो जाने पर लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग हितकर सिद्ध होता है :-
एपिस 3x – हृदय-रोग के फलस्वरूप छाती में पानी भर जाय तथा रोगी लेट न सके, गले में घुटन जैसी अनुभूति हो, खुश्क-खाँसी उठती हो और जब तक थोड़ा कफ ढीला न होकर निकल जाय, तब तक रोगी खाँसता ही रहे – ऐसे लक्षणों में यह औषध लाभ करती है । इसे प्रति 4 घण्टे के अन्तर से देना चाहिए।
लैकेसिस 30 – पेशाब का स्याही की भाँति काला रंग हो, त्वचा का रंग नीला-सा हो गया हो तथा हृदय रोग के कारण छाती में जल-संचय हुआ हो तो इस औषध के प्रयोग से लाभ होता है । यदि हृदयावेष्टन-झिल्ली में पानी भर गया हो और रक्तसंचार विकृत, पाँवों का ठण्डा पड़ जाना, दिल का धड़कना, दिल की जकड़न, सोकर उठने पर छाती पर बोझ का अनुभव, साँस का भारी होना तथा रोगी का लेट न पाना – ये लक्षण भी हो तो यह औषध अधिक लाभ करती हैं।
कैलि-कार्ब 30, 200 – यदि रोग का कष्ट प्रात: 3 बजे उग्र रूप धारण कर लेता हो तो इस औषध के प्रयोग से लाभ होता है ।
मर्क्यूरियस सल्फ्यूरिकम 6, 30 – डॉ० फैरिंगटन के मतानुसार जिगर अथवा हृदय – किसी की भी विकृति के कारण यदि छाती में पानी भर गया हो तो इस औषध का प्रयोग हितकर रहता है। इसके प्रयोग से पनीले दस्त आकर रोगी को बहुत राहत मिलती हैं ।
आर्स-आयोड 3x – यदि हृदय-रोग के कारण छाती में पानी भर गया हो तो इस औषध को 2 ग्रेन की मात्रा में दिन में तीन बार, भोजनोपरान्त देते रहने से लाभ होता है ।
आर्सेनिक 30 – हृदय-रोग के कारण छाती में पानी भर जाने से साँस का भारी आना, मध्य-रात्रि में अथवा लेटने पर वमन का बढ़ जाना तथा रोगी को शरीर में गर्मी एवं जलन का अनुभव होना-इन लक्षणों में यह औषध हितकर है।
डिजिटेलिस Q, 6 – हृदय की कमजोरी के कारण छाती में जल-संचय होने में यह औषध लाभकर है । हृदयावरक श्लैष्मिक-झिल्ली अथवा छाती में पानी भर जाने पर इसका प्रयोग अवश्य करना चाहिए । आरम्भ में इस औषध की कुछ प्रतिक्रिया होना भी संभव रहता है ।