आमाशय से छोटी आंत मिला रहता है अर्थात् आमाशय से छोटी आंत शुरू हो जाता है। छोटी आंत (Small Intestine) से पहले का 10 इंच लम्बा भाग पक्वाशय (Duodenum) कहलाता है। यह 22 फुट लम्बी (जिसका व्यास लगभग डेढ़ इंच होता है) नली है, जो साँप की तरह गेंडुली मारे उदर में पड़ी रहती है, इसके नीचे का सिरा बड़ी आंत से मिला रहता है। यह बड़ी आंत से चौड़ी तो कम होती है किन्तु लम्बाई में उससे चौगुनी होती है। इसमें जो रस बनता है उसे क्षुद्रान्त्रीय रस कहते हैं।
आन्त्रिक रस (Succus Entericus) –आन्त्र की श्लैष्मिक-कला के नीचे एक प्रकार की ग्रन्थियाँ हैं जिन्हें Glands of Lieberkuhn कहा जाता है । इन ग्रन्थियों से आन्त्रिक स्राव निकलता है। ऐसा माना जाता है कि कुछ रासायनिक पदार्थ बनते हैं जो आन्त्रिक रस का स्त्राव कराते हैं।
आन्त्र रस में निम्नलिखित एंजाइम पाये जाते हैं
1. एण्टेरोकायनेस – यह ट्रिपसिनोजन को ट्रिपसिन में बदलता है।
2. इनवरटेस (Invertase) – यह शक्कर को Glucose तथा Fructose में बदलता है।
3. लेकटेस (Lactase) – यह शर्करा को ग्लूकोज और गैलेक्टोज में बदलता है
4. मालटेस – यह माल्टोज पर क्रिया करता है और ग्लूकोज में बदलता है।
5. डायस्टेस – यह स्टार्च पर कार्य करता है।
6. लाइपेज (Lipase) – यह वसा को तोड़ता है। इससे आंत्रस्थ क्षार मिलकर झाग की तरह बन जाते हैं।
7. इरिपसिन (Erepsin) – यह प्रोटीन पर कार्य करता है । यह साधारण Peptidase पर कार्य करते हैं।
साधारण रूप से उक्त एंजाइम ही आन्त्रिक रस में मिलते हैं। इस तरह पित्त, क्लोम रस तथा आन्त्रिक रस पाचन में सहायक होते हैं।