प्रकृति – शीतल। जामुन कई तरह की होती हैं लेकिन सबके धर्म, गुण समान हैं। जामुन मोटी और पकी हुई अच्छी होती है। जामुन भूख बढ़ाती और भोजन पचाती है, पेशाब अधिक लाती है। जामुन ही औषधीय उपयोग में लें, लेकिन जामुन नहीं होने पर जामुन का सिरका काम में ले सकते हैं। जामुन की क्षारीयता और अम्लीयता रक्त-दोषों को दूर करती है।
जामुन के फल, वृक्ष की छाल, पत्ते और बीज ये सभी समान रूप से चिकित्सा कार्य में प्रयोग किए जाते हैं और समान रूप से उपयोगी हैं। जामुन नहीं हो तो जामुन के बीज (गुठली), पत्ते कोई भी काम में ले सकते हैं :
जामुन खाना खाने के बाद खायें। जामुन के सेवन से दो घंटे पूर्व व पश्चात् तक दूध नहीं पियें। दो घंटे के बाद ही दूध पियें। जामुन में लोहा होता है। यह इतना सौम्य और निर्दोष होता है कि इससे किसी प्रकार की हानि की सम्भावना नहीं होती। यह लोहा रक्त की सभी प्रकार की अशुद्धियाँ नष्ट कर यकृत और तिल्ली जैसे शरीर के मुख्य अंगों पर लाभकारी प्रभाव डालता है जिससे शरीर में नया रक्त बनता है।
हृदय रोगों में जामुन लाभदायक है।
स्मरण-शक्तिवर्धक – मस्तिष्क की कोशिकाओं की क्षमता घटने से बुढ़ापे में स्मरणशक्ति कमजोर हो जाती है। जामुन में एंटी ऑक्सीडेन्ट्स विशेष रूप से फ्लेबोनायड्स मिलते हैं जो आयुरोधी के रूप में काम करते हैं। इससे स्मरण-शक्ति बढ़ती है।
आग से जले के सफेद दागों पर जामुन के पत्तों का नित्य लेप करने से दाग ठीक हो जाते हैं।
मुँहासे – जामुन खाने से चेहरे के मुँहासे मिट जाते हैं। जामुन की गुठलियों को पानी डालकर, पीसकर चेहरे पर लेप करके आधे घंटे बाद धोने से मुँहासों से छुटकारा मिलेगा।
फोड़े-फुसी, मुंहासे हों तो नित्य दो सौ ग्राम जामुन खायें। जामुन की गुठली दूध में पीसकर लगायें।
काँख (Ampit) में पुंसियाँ, दुर्गन्ध हो तो जामुन के पत्तों पर पानी डालकर, पीसकर सुबह-शाम लेप करें।
बिस्तर में पेशाब करने वाले बच्चे को जामुन की गुठली को पीसकर एक चाय की चम्मच की फंकी पानी से नित्य दो बार देने पर यह रोग दूर हो जाता है।
बिस्तर में पेशाब, वृद्धों का बहुमूत्र रोगों में जामुन की गुठली व काले तिल समान मात्रा में पीसकर, दो चम्मच सुबह-शाम पानी के साथ फंकी लें।
जूता काटना – कभी-कभी तंग, खराब चमड़े के जूते पहनने से जूता काट लेता है, फफोला, जलन, घाव हो जाते हैं। जामुन की गुठली पानी में पीसकर नित्य दो बार लगाने से ये घाव ठीक हो जाते हैं। घाव गीला हो तो गुठली का पाउडर भुरकायें।
स्वप्नदोष – चार ग्राम जामुन की गुठली का चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ लेने से स्वप्नदोष ठीक हो जाता है। धातु निकलना भी बन्द हो जाता है।
दाँतों के रोग – यदि आपके दाँतों में दर्द है, रक्त निकलता है, दाँत हिलते हैं, मसूड़े फूलते हैं तो 50 ग्राम जामुन के नये मुलायम, कच्चे पते टुकड़े करके चौथाई चम्मच पिसी कालीमिर्च दो गिलास पानी में उबालकर, छानकर नित्य दो बार कुल्ले करें। जामुन खायें। जामुन की छाल बारीक पीस कर नित्य मंजन करें। दाँतों के सारे रोग ठीक हो जायेंगे। दाँत और मसूड़ों के रोग नियमित जामुन खाने से ठीक हो जाते हैं तथा प्यास अधिक नहीं लगती।
मंजन – जामुन के दो किलो हरे पत्तों को सुखाकर, जलाकर महीन पीस लें। इस चूर्ण से मंजन करने पर मसूड़े और दाँत मजबूत और नीरोग होते हैं। जामुन भी खाते रहें।
पायोरिया – जामुन के रस का कुल्ला भर कर, रस मुँह में भरकर कुछ देर (4 मिनट) कुलकुलायें, रस को मुँह में घुमायें और अन्त में थूक दें। इस प्रकार चार कुल्ले करें। इससे पायोरिया में लाभ होता है।
छाले – जामुन के 40 नरम पत्तों को पीसकर एक गिलास पानी में घोल लें, छानकर कुल्ले व गरारे करें, मुँह के छाले बहुत जल्दी ठीक हो जायेंगे। जामुन खाने से भी छाले ठीक हो जाते हैं। पानी में जामुन का सिरका डालकर भी कुल्ले कर सकते हैं।
दमा – जामुन की गुठली की गिरी को कूट पीस लें। दो कप पानी में इसकी एक चम्मच डालकर इतना उबालें कि उबलते हुए एक कप पानी रह जाये। इसे छानकर स्वादानुसार दूध चीनी डालकर नित्य दो बार पीते रहें। कुछ दिन पीते रहने से दमा के दौरे धीरे-धीरे कम होते हुए बन्द हो जायेंगे।
कण्ठ में जलन, दर्द हो तो नित्य जामुन का रस पियें।
आवाज बैठना – (1) जामुन की गुठलियों को पीसकर शहद में मिलाकर गोलियाँ बना लें। दो-दो गोली नित्य चार बार चूसें। इससे बैठा हुआ गला खुल जाता है, आवाज का भारीपन ठीक हो जाता है। ज्यादा दिन उपयोग करने से बिगड़ी हुई आवाज ठीक हो जाती है। अधिक बोलने, गाने वालों के लिए विशेष चमत्कारी उपयोग है। जामुन का पाउडर एक चम्मच शहद में मिलाकर चार बार भी ले सकते हैं। (2) अच्छी पकी मोटी जामुन पर काला नमक डालकर खाने से गले की आवाज ठीक हो जाती है। बैठा गला खुल जाता है। इससे खाँसी में भी लाभ होता है।
बाँझपन – गर्भ न ठहरने की स्थिति में 100 ग्राम जामुन के पत्ते तथा 100 ग्राम अनार के पत्ते दोनों को पीसकर 200 ग्राम पानी में मिलाकर, छानकर स्री को पिलाएँ। कुछ दिनों के नियमित सेवन से गर्भ न ठहरने की समस्या दूर हो जाती है।
मासिक धर्म बन्द – मासिक धर्म रुक जाने की स्थिति में जामुन की 50 ग्राम सूखी गुठलियाँ पीस लें। फिर इसमें पाँच ग्राम कालीमिर्च का चूर्ण मिलायें। इसकी आधी चम्मच शहद में मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम दो माह तक सेवन करें। इससे मासिक धर्म खुलकर आने लगता है और नियमित भी हो जाता है।
रक्त प्रदर – पिसी हुई जामुन की गुठली दो चम्मच, एक कप चावल का भिगोया हुआ पानी या चावल के माँड के साथ नित्य एक बार लेने से रक्त प्रदर में लाभ होता है।
अतिरजस्राव – मासिक धर्म में रक्तस्राव अधिक जाता हो तो चौथाई कप जामुन का रस हर तीन-तीन घंटे के अन्तर से 5 बार नित्य लें।
पेट में रक्तस्राव हो रहा हो तो एक चम्मच जामुन की गुठली का पाउडर और इतनी ही शक्कर मिलाकर नित्य तीन बार पानी के साथ फंकी लेने से लाभ होता है।
वीर्य पतला – जिनका वीर्य पतला हो, जरा-सी उत्तेजना के साथ ही निकल जाता है, स्वप्नदोष होता है, वे जामुन की गुठली का पाँच ग्राम चूर्ण नित्य सुबह-शाम गर्म दूध या पानी से लें। इससे वीर्य भी बढ़ता है। खटाई का परहेज रखें।
कमजोरी – जामुन का चूर्ण और मिश्री (पिसी) करीब 15 ग्राम की मात्रा में प्रात: सायं दूध के साथ लेने से हर प्रकार की कमजोरी दूर होती है।
मधुमेह – कहा जाता है कि भगवान शिव और पार्वती के सामने एक बार विकट समस्या उत्पन्न हो गई। उसका कारण था लाडले गणेश का मधुमेह ग्रस्त हो जाना। उस समय के चिकित्सकों ने अपनी-अपनी राय रखी। किसी ने करेला, किसी ने नीम पत्र, बेलपत्र, मेथी इत्यादि अनेकों तरह के औषध और उपाय सुझाए लेकिन भरपेट लडू खाने वाले को यह सब इच्छानुकूल नहीं था। गणेश जी जामुन खाने के लिए तैयार हो गए और उनका मधुमेह इसी से नियंत्रित हो गया।
मधुमेह के रोगियों को नित्य 150 ग्राम जामुन खाना चाहिए। जामुन के नियमित सेवन से रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है। होम्योपैथी में मधुमेह के लिए जामुन का रस सीजीजीयम जेम्बोलिनम मदर टिंचर के नाम से काम में लिया जाता है। तीन बार जामुन की गुठली का चूर्ण एक-एक चम्मच सुबह-दोपहर-शाम पानी के साथ लेने से शर्करा आना ठीक हो जाता है। इसके साथ ही आम की गुठली का चूर्ण तीन-तीन ग्राम की मात्रा में पानी से लें। आम की गुठली की मिंगी का चूर्ण इन्सुलिन की सिक्रेशन को बढ़ाता है। परिणामस्वरूप मधुमेह नियन्त्रित हो जाता है। बढ़ा हुआ गुरुत्व ठीक हो जाता है। बार-बार पेशाब जाना ठीक होता है। मधुमेह नियंत्रण में आ जाता है। जामुन की गुठली के अन्दर की मिंगी या गिरी कूट कर सेंक लें। एक चम्मच चूर्ण को दो कप पानी में डालकर उबाल कर एक कप पानी रहने पर छानकर आधा चम्मच शहद डालकर नित्य दो बार पियें। इस योग में शहद का मीठा मधुमेह पर प्रभाव नहीं डालता। जामुन की गुठली हमारे भोज्य पदार्थों में उपलब्ध श्वेतसार और स्टार्च को शक्कर में नहीं बदलने देती। गुठली का अर्थ है अन्दर की गिरी। जामुन की गुठली में जम्बोलिन नामक ग्लूकोसाइड होता है। यह तत्व स्टार्च को शक्कर में बदलने से रोकता है। गुठली में पदार्थ मिलते हैं। इनमें उड़नशील तेल भी होता है। जहाँ इन्सुलिन और ट्राइप्सोजन जैसी औषधियाँ असफल हो जाती हैं वहाँ जामुन की गुठली का प्रयोग सफल होता है। जामुन की गुठली मधुमेह के लिए रामबाण है। गुठली का पाउडर निर्धारित मात्रा में ही लें, अधिक मात्रा में लेना हानिप्रद है।
200 ग्राम जामुन एक गिलास उबलते हुए पानी में डालकर कुछ देर उबालें। फिर उतार कर ठंडा होने दें। इसी पानी में उन्हें मथकर, छानकर एक चम्मच शहद मिलाकर नित्य तीन बार पियें। इससे धातु-दौर्बल्य और मधुमेह में लाभ होता है। जामुनों को धूप में सुखाकर पीस लें। इस पाउडर की तीन चम्मच नित्य तीन बार पानी के साथ फंकी लेने से मधुमेह में लाभ होता है।
अर्श रक्तस्रावी – जामुन के नरम 20 पत्तों को आधा कप दूध में पीसकर अच्छी तरह घोंट लें, फिर छान लें और आधा कप दूध में मिला लें। नित्य तीन बार इसे पीने से रक्तस्रावी बवासीर में लाभ होता है। चार चम्मच जामुन की नरम पत्तियों के रस में स्वादानुसार शक्कर और चार चम्मच पानी मिलाकर नित्य तीन बार पीने से बवासीर से रक्त गिरना बन्द हो जाता है।
पेट की बीमारियों में जामुन लाभदायक है। इसमें दस्त बाँधने की विशेष शक्ति है। पेट दर्द, दस्त लगना, अग्निमांद्य होने पर जामुन के रस में सेंधा नमक मिलाकर पीना चाहिए।
अपच होने पर (1) 100 ग्राम जामुन पर नमक डालकर नित्य खायें। एक कप पानी में एक चम्मच जामुन का सिरका डालकर नित्य तीन बार पियें। इससे पेट के प्रायः सभी सामान्य रोग ठीक हो जाते हैं। भूख अच्छी लगती है।
पेट दर्द होने पर एक कप पानी में एक चम्मच जामुन का सिरका, जरा-सा काला नमक मिलाकर पियें।
पाचक – प्लीहा (तिल्ली), यकृत, आमाशय (मेदा) और क्लोम (पैक्रियास) को जामुन के सेवन से बल मिलता है। इससे भूख लगती है, भोजन पचता है, दाँत मजबूत होतेहैं।
यकृत (Liver) – जामुन नियमित सेवन किए जाने पर यह यकृत की क्रिया में अभूतपूर्व सुधार करती है। यह ‘लीवर एक्सट्रेक्ट’ की तरह काम करती है। 200 ग्राम जामुन नित्य खायें या रस पियें तो इससे यकृत के रोगों में लाभ होगा। तिल्ली, यकृत, पीलिया में जामुन नित्य खाना लाभदायक है। जामुन का सिरका भी लाभप्रद है।
यकृत बढ़ना – एक गिलास गुनगुने पानी में आधा चम्मच जामुन का सिरका घोलकर एक बार पीने से लाभ होता है।
पेचिश – (1) दस ग्राम जामुन की गुठली पानी में पीसकर आधा कप पानी मे घोलकर सुबह-शाम पिलाने से खूनी दस्त बन्द हो जाते हैं। (2) एक कप जामुन के रस में दो चम्मच चीनी मिलाकर पीने से भी लाभ होता है। (3) जामुन के 10 हरे पत्ते पीस कर आधा कप पानी में घोलकर, छानकर नित्य दो बार पियें। खिचड़ी खायें।
दस्त – (1) कैसे भी तेज दस्त हो, जामुन के पेड़ की 4 पत्तियाँ, तो न ज्यादा मोटी हो और न ज्यादा मुलायम, लेकर पीस लें, फिर उसमें जरा-सा सेंधा नमक मिलाकर उसकी गोलियाँ बना लें। एक गोली सुबह, एक गोली शाम को लेने से दस्त तुरन्त बन्द हो जाते हैं। जामुन की पत्तियाँ और नमक मिलाकर चबायें, रस चूसें, गूदा थूक दें। इससे भी लाभ होगा। (2) जामुन और आम की गुठली को सुखाकर समान मात्रा में पीस लें। दस्त लगने पर दो चम्मच सुबह-शाम इसे पानी के साथ फाँकें, आँव, पतले दस्त बंद हो जायेंगे। (3) समान मात्रा में जामुन व आम की गुठली (अन्दर की मींगी) तथा सौंफ और गुलाब के गुलाबी रंग वाले फूल, सबको पीसकर दो-दो चम्मच चूर्ण छाछ से नित्य फंकी लें। नये, पुराने कैसे भी दस्त हो, लाभ होगा। (4) बार-बार होने वाले दस्तों में जामुन के कोमल पत्तों का दस ग्राम रस लेकर थोड़े से शहद में मिलाकर दिन में तीन बार लेने से काफी लाभ होता है। (5) जामुन का रस पीने से दस्त बन्द हो जाते हैं।
पथरी – पका जामुन खाने से पथरी रोग में आराम होता है। पथरी गलकर निकल जाती है। जामुन की गुठली का चूर्ण दो चम्मच, आधा कप दही और इतना ही पानी मिलाकर लस्सी बनाकर नित्य तीन बार पीने से पथरी पिघलकर निकल जाती है। यह एक माह तक लें।
सावधानी – जामुन में वातज गुण होने के कारण इसे भूखे पेट खाना उचित नहीं है। जामुन खाना खाने के बाद खाना लाभदायक है। अति-मात्रा में जामुन खाने से हानि होती है। सूजन, वमन, प्रसूति तथा उपवास में जामुन या इसका रस न दें। हमेशा जामुन का पका हुआ फल ही खायें। अधपके फल के सेवन से पाचन संस्थान में घाव हो सकते हैं। अधिक जामुन खाने से शरीर में जकड़ाहट तथा बुखार हो सकता है, इसलिए अधिक नहीं खाना चाहिए। स्वाद के लिए जामुन पर नमक लगाकर खायें। जामुन पर नमक लगाकर खाने से किसी प्रकार का उपद्रव नहीं होता और जल्द ही हजम हो जाता है। जामुन खाने से पहले इसे एक घण्टा ठण्डे पानी में डालकर खाने से अधिक गुणकारी होगा।
जामुन का शर्बत – जामुन का शर्बत पीने से थकान दूर होकर ताजगी अनुभव होती है। बच्चों को बदहजमी, खून के साथ उल्टी और साधारण उल्टी, दस्त लगे हों तो यह जामुन का शर्बत प्रयोग में लायें।
जामुन का सिरका – यह सौंदयवर्धक है। जामुन का सिरका नियमित पीने से स्री, पुरुष, बच्चों का सौन्दर्य बढ़ता है। एक कप पानी में एक चम्मच सिरका मिलाकर पियें।
पेट के रोग – कंठ में दाह हो रहा हो और खट्टी और कड़वी उल्टी हो रही हो तो सिरके का प्रयोग नहीं करना चाहिए। जामुन का सिरका तिल्ली और वायु गोला, पेट की गैस को दूर करने वाला, पौष्टिक, संकोचक और शांतिदायक होता है।
जामुन का सिरका यकृत को ताकत देता है। यह सूजन को दूर करता है। खूनी और तेजाबी दस्तों में लाभप्रद है।
तिल्ली – जामुन का सिरका एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार देते रहने से कुछ ही दिनों में तिल्ली ठीक हो जाती है। यकृत वृद्धि भी ठीक होती है।
मसूढ़े सूजना – जामुन के सिरके की चौथाई चम्मच पानी में डालकर 3 बार कुल्ला करने से मसूड़ों की सूजन दूर हो जाती है और हिलते हुए दाँत भी मजबूत हो जाते हैं।
सिरके का प्रयोग – सिरका स्वाद में खट्टा होता है। अतः सिरके को पीने योग्य बनाने के लिए आवश्यकतानुसार पानी मिलायें। इससे भूख बढ़ती है और पुराने उदर विकार भी ठीक हो जाते हैं। कमजोरी दूर होती है। सिरका बाजार में मिलता है।
जामुन का रस – जामुनों को दो घंटे पानी में पड़ी रखने के बाद गुठलियाँ निकाल कर रस निकालें।
मात्रा – जामुन की गुठली के पाउडर की मात्रा एक बार में एक चाय चम्मच है।
होम्योपैथी में जामुन – सिजिजियम जम्बोलेनम नामक होम्योपैथिक औषधि जामुन से बनी है। यह मार्टेसी जाति का पेड़ है।
बहुमूत्र – बहुमूत्र रोग में यह औषधि बहुतायत में प्रयोग की जाती है। बार-बार बहुत अधिक मात्रा में पेशाब होता है, इसके साथ प्यास अधिक लगती है। जितना अधिक पानी पिया जाता है, पेशाब भी उतनी ही अधिक मात्रा में आता है। पेशाब का आपेक्षिक गुरुत्व भी बहुत अधिक होता है। यह सिजिजियम जम्बो का प्रमुख लक्षण है। रक्तशर्करा और मूत्रशर्करा को यह बहुत जल्दी कम करती है।
शरीर के ऊपरी भागों में चुभनयुक्त गर्मी मालूम पड़ना; छोटे-छोटे लाल दानों में बहुत खुजली; पेशाब अस्वाभाविक और अत्यधिक मात्रा में होने के साथ यदि ज्वर या कोई अन्य ही रोग हो तो भी सिजिजियम जम्बो से लाभ होता है।
सेवन – इसका मूलार्क (मदर टिंचर) होम्योपैथिक दवा विक्रेता से लेकर एक खुराक में दस बूंद चार चम्मच पानी में मिलाकर नित्य चार बार पियें। कुछ दिन इसे देकर यही दवा 200 पोटेन्सी में गोली नम्बर 40 में चार गोली की एक मात्रा नित्य चूसें। यदि होम्योपैथी का मूलार्क उपलब्ध नहीं हो तो जामुन की गुठली के पाउडर की एक-एक चम्मच तीन बार सेवन करके लाभ उठा सकते हैं। दोनों में से कोई एक काम में ले सकते हैं।