जीभ का फटी हुई सी होना (Tongue Cracked)
जीभ के फट जाने के लक्षणों में निम्नलिखित उपचार हितकर रहते हैं:-
रस-टाक्स 30 – जीभ के बीच में से सीधी फट जाने पर इसका प्रयोग करना लाभकारी है ।
ऐल्यूमिना 30 – जीभ में जलन अथवा जीभ के कटी या सूखी प्रतीत होने पर इसे दें।
ऐरम-ट्रिफाइलम 3, 30 – जीभ में दरारें पड़ जाना तथा उनमें से खून निकलना – इन लक्षणों में हितकर है।
बेलाडोना 30 – जीभ पर खुश्की, उसके फटी हुई एवं भुनी हुई सी होने के लक्षणों में प्रयोग करें ।
रैनाक्युलस स्केलेरेटस Q, 3, 30 – जीभ पर नक्शा सा बन जाना, जीभ से छिलके उतरना, जीभ का फट जाना और उनमें जलन तथा दुखन होने के लक्षणों में हितकर है ।
रस-वेन 3 – जीभ के खूब सूखी रहने तथा फट जाने के लक्षणों में लाभकारी है।
जीभ में दर्द ( neuralgia of the tongue )
ऐगारिकस 30 – जीभ में खपच्ची चुभने जैसा दर्द होने पर इसके प्रयोग से लाभ होता है |
आर्सेनिक 30 – यदि जीभ में खपच्ची चुभने जैसे दर्द के साथ ही जलन भी हो तो इसे दें ।
जीभ का जख्म (Ulcer of the Tongue)
जीभ पर कभी-कभी छोटी-छोटी तथा लाल फुन्सियाँ हो जाती हैं, ये फूल कर दर्द करती हैं। कभी-कभी उनके कारण जीभ फटी हुई-सी भी दिखायी देती है । इसमें निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग हितकर सिद्ध होता है :-
मर्क-बिन आयोड 2x वि० – यदि पारे का अपव्यवहार न हुआ हो तो यह इस रोग की सर्वश्रेष्ठ औषध हैं ।
आर्सेनिक 6 अथवा हाइड्रैस्टिस 2x – ये दोनों भी इस रोग की अच्छी औषधियाँ हैं ।
नाइट्रिक एसिड 3 अथवा हिपर-सल्फर 6, 30 – यदि पारे के अपव्यवहार के कारण जीभ में छाले हो जायें तो इनमें से किसी भी औषध का प्रयोग लाभकारी सिद्ध होता है ।
बोरैक्स 30 – जीभ पर लाल रंग की फुन्सियाँ, जीभ हिलाने पर कष्ट होना तथा नमक एवं मसालेदार वस्तुएं खाने पर तकलीफ का बढ़ जाना-इन लक्षणों में हितकर है ।
‘डाइल्यूट नाइट्रिक-एसिड‘ अथवा ‘हाइड्रेस्टिस‘ के ‘मूल-अर्क’ की 5-6 बूंदें काँच के एक बड़े गिलास भर पानी में डाल कर, उस लोशन के द्वारा प्रतिदिन तीन-चार बार कुल्ला करते रहने से इस रोग में शीघ्र लाभ होता है ।
जीभ का अल्सर ( Ulceration of the tongue )
जीभ के अल्सर में निम्नलिखित औषधियां लाभ करती हैं :-
लाइकोपोडियम 30 – यदि जीभ के नीचे अल्सर हो तो इसका प्रयोग करें।
ग्रैफाइटिस 30 – दुर्गन्धयुक्त अल्सर में, जो ठीक होने में न आता हो – इस औषध का प्रयोग हितकर रहता है ।
मर्क-सोल 30 – जीभ पर उपदंश के अल्सर में इस दें ।
नाइट्रिक-एसिड 6 – कुकर-खाँसी के समय जीभ के नीचे अल्सर हो जाने पर इसे दें ।
म्युरियेटिक एसिड 6, 30 – जीभ पर बार-बार अल्सर होना, जीभ का सूख जाना तथा कड़ी पड़ जाने के लक्षणों में ।
जीभ के नीचे अर्बुद या ट्यूमर
जीभ के नीचे अर्बुद (ट्युमर) हो जाने पर निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग हितकर सिद्ध होता है :-
थुजा 3 – जीभ के नीचे अर्बुद हो तथा जीभ और मुँह की शिराएँ उभरी हुई हों तो इसे प्रति 2 घण्टे के अन्तर से देना चाहिए ।
मर्क-सोल 6 – यदि जीभ का अर्बुद बड़ा और कड़ा हो तो इस औषध को प्रति 4 घण्टे के अन्तर से देना चाहिए। इसे ‘थूजा’ के साथ पर्याय-क्रम से भी दिया जा सकता है, अर्थात् एक दिन ‘थूजा’ और दूसरे दिन ‘मर्क’ देना लाभकर रहता है।
जीभ की अन्य बीमारियाँ
जीभ की अन्य बीमारियों में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ दें :-
सियानोथस 3x – जीभ के दूषित फोड़े में हितकर है।
लाइकोपोडियम 30 – जीभ के नीचे फुन्सियाँ होने पर इसके प्रयोग से लाभ होता है ।
फ्लोरिक-एसिड 3 – उपदंश के कारण जीभ की बीमारी में हितकर है।
हाइड्रेस्टिस 1x, 30 – जीभ के गहरी लाल होने तथा उस पर दाँत का दाग दिखायी देने पर दें।
नेट्रम-म्यूर 6 – जीभ पर छोटे-छोटे सफेद गड्ढे जैसे दिखायी देने पर दें।