यदि किसी स्थान की त्वचा मोटी पड़ गई हो तो उसमें निम्नलिखित औषधियों के प्रयोग से लाभ होता है :-
रस-टाक्स 6, 30 – त्वचा के नवीन छालों के लिए यह औषध हितकर है । लाल रंग के छाले, अध्यधिक खुजली तथा शोथ (सूजन) के लक्षणों में इसका प्रयोग करना चाहिए। इस औषध में त्वचा लाल रंग की हो जाती है तथा लाली के साथ छाले भी हो सकते हैं ।
आर्सेनिक 30 – यदि त्वचा पर छाले पड़ने का पुराना रोग हो, छालों में जलन हो तथा जख्म पड़ने लगें – तो इस औषध का प्रयोग करना चाहिए।
मर्क-कोर 30 – यदि उपदंश दोष के कारण त्वचा पर छाले हों तो इसे देना चाहिए ।
मैन्सिनेल्ला 6, 30 – त्वचा पर अत्यधिक संख्या में छोटी-छोटी फुन्सियाँ, जिनमें से मवाद निकल कर पपड़ियाँ जम जाती हों अथवा उबलता पानी पड़ जाने तथा गरम भाप लग जाने के कारण उत्पन्न होने वाले छालों में यह औषध लाभ करती है ।
त्वचा पर होने वाले छाले (Herpes)
इस रोग में त्वचा पर छालों के झुण्ड हो जाते हैं, जिनमें से पतला स्राव निकलता रहता है और उस पर खुरण्ड जम जाते हैं, जो बाद में बिना कोई चिन्ह छोड़े अपने-आप झड़ भी जाते हैं। तत्पश्चात् उस स्थान पर अत्यधिक खुजली तथा परेशान करने वाली जलन होने लगती है । ऐसे छालों को ‘हरपीज’ कहा जाता है । स्नायु-मार्ग पर ऐसे छाले पड़ने को ‘हरपीज-जोस्टर कहा जाता है ।
इस रोग में निम्नलिखित औषधियाँ लक्षणानुसार लाभ करती हैं :-
मर्क-सोल 30 – जननेन्द्रिय पर ऐसे छालों का होना – जिनमें खुजली तथा जलन होती हो – इस औषध के प्रयोग से लाभ होता है ।
आर्सेनिक 30 – मुंह, होंठ अथवा किसी अन्य जगह पर दानेदार, खुजली तथा जलन युक्त छालों के हो जाने पर औषध लाभ करती है। इस रोग का कष्ट रात को 12 से 4 बजे के बीच बढ़ जाता हैं ।
रस टाक्स 30 – नितम्ब प्रदेश, मुख तथा होंठों पर दानेदार छाले, जिनमें खुजली तथा जलन हो – इस औषध के प्रयोग से ठीक हो जाते हैं। यह इस रोग की मुख्य औषध मानी जाती है । ‘बार्बर्स-इच’ में भी यह औषध लाभ करती है ।
रैननक्युलस 3, 30 – ‘हरपीज’ के सूख जाने पर अत्यधिक खुजली मचना, नीले रंग के छाले, खुली हवा तथा तर हवा तथा हरकत से रोग बढ़ना -इन लक्षणों में हितकर है ।
विशेष – उपरोक्त औषधियों के अतिरिक्त निम्नलिखित औषधियां भी इस रोग में लक्षणानुसार लाभ करती हैं :-
नेट्रम-म्यूर 30, नाइट्रिक-एसिड 6 तथा सार्सा पैरिल्ला ।
हरपीज जोस्टर (Herpes Zoster)
इस रोग में त्वचा के किसी स्नायु-मार्ग पर छालों की एक पूरी अथवा आधी माला सी बन जाती है । यह छाती तथा पेट के नीचे विशेष रूप से बनती है । इस रोग में उग्र स्नायुशूल तथा जलन के लक्षण प्रकट होते हैं । इसके छाले स्नायु-मार्ग में पड़ते हैं ।
इस रोग में निम्नलिखित औषधियों का लक्षणानुसार प्रयोग करना चाहिए :-
वेरियोलीनम 6 – छाले पड़ना, दर्द तथा जलन के लक्षणों में इसे प्रति 4 घण्टे के अन्तर से देना चाहिए। यह इस रोग की मुख्य औषध मानी जाती है ।
रैननक्युलस 3, 30 – स्नायु में दर्द के साथ छोटे-छोटे जलनयुक्त छालों में हितकर है ।
आइरिस-वर्सिकोलर 30 – यदि हरपीज जोस्टर के साथ पेट की गड़बड़ी का भी सम्बन्ध हो तो इसे देना चाहिए ।
रस-टाक्स 30 – यह मध्य-आयु से नीचे वाले लोगों के रोग में हितकर है ।
मेजेरियम 30 – यह वृद्धावस्था के रोगियों में लाभकर है ।
आर्सेनिक 30 – रोग की पुरानी अवस्था में इसे दें।
कैन्थरिस 3x – डॉ० क्लार्क के मतानुसार एक औंस पानी में 10 बूंद ‘कैन्थरिस 3x‘ को डालकर लोशन तैयार करें । इस लोशन को लिनेन पर डालकर छालों पर लगाने से लाभ होता है ।