दस्त का कारण – दस्त लगने के मुख्य कारण अधिक मद्यपान, संदूषित आहार, संक्रामक आमाशयिक-आंत्रिक शोथ, पेचिश एवं स्नायविक सम्बन्धी हैं। दस्त प्राय: अजीर्ण से होता है अत: पेट साफ रखना चाहिए।
दस्त के लक्षण – जब थोड़े-थोड़े अंतराल से बार-बार पतला मल त्याग होता है जो इस स्थिति को दस्त लगना कहते हैं। पेट में दर्द, मरोड़, गुड़गुड़ाहट, खटटी डकारें आना आदि इसके लक्षण हैं।
दस्त का इलाज घरेलू आयुर्वेदिक/जड़ी-बूटियों द्वारा
– जामुन और आम की गुठली का चूर्ण बनाकर भुनी हुई हरड़ के साथ सेवन करने से जीर्णातिसार शीघ्र नष्ट होता हैं।
– पका हुआ बेल का गूदा दही के साथ खाने से दस्तों में लाभ होता है। बकरी का दूध भी दस्त बन्द कर देता है।
– जीरा और चीनी का चूर्ण बनाकर छाछ के साथ पीने से दस्त बन्द होते हैं।
– कुटज और अनार के वृक्ष की छाल – इन दोनों का काढ़ा बनाकर शहद के साथ देने से अतिसार तथा रक्तातिसार में तुरन्त लाभ पहुँचता हैं।
– बहुत पतले दस्त हो रहे हों तो आंवला मोटा पीसकर नाभि के चारों ओर लगा दें, इस घेरे के बीच में अदरक के रस में भिगोया कपड़ा रखें और उस पर थोड़ा-थोड़ा अदरक का रस डालती रहें। साथ ही अदरक का रस पिलायें भी। इससे दस्त काबू में आ जाता है।
– अतिसार दस्त होने पर डेढ़ आम की गुठली की गिरी के पाउडर को शहद के साथ चाटने पर बहुत लाभ होता है।
– आम की गुठली का चूर्ण 10 ग्राम ताजा दही मिलाकर खाने से अतिसार के दस्त बन्द होते हैं।
– अतिसार विसूचिका होने पर अर्क विसूचिकान्तक रस में 5 बूंदें मिलाकर देने से तथा लवण भास्कर चूर्ण 3 ग्राम में 5 बूंदें अमृतधारा मिलाकर देने से लाभ होता है।
– बड़ी आयु के स्त्री पुरुषों को अतिसार होने पर जायफल का चूर्ण 1 ग्राम (1 माशा) आधा कप पानी के साथ सुबह-शाम फाँकने से बार-बार पतले दस्त होना तथा पेट फूलना और पेट दर्द में आराम होता है।
– कच्ची बेल को आग पर भूनकर उसका गूदा खा लें। भुना हुआ गूदा दस्त रोकने में बड़ा कारगर है।
– अतिसार होने पर केले को दही में मथकर लेने से लाभ करता है।
– कैसा भी तेज दस्त हो, जामुन के पेड़ की ढाई पत्तियाँ जो न ज्यादा मोटी हों न ज्यादा मुलायम हों, उन्हें पीस लें। फिर उनमें जरा-सा सेंधा नमक मिलाकर उनकी गोली बना लें। एक-एक गोली सुबह-शाम लेने से अतिसार तुरन्त बन्द हो जाता है।
– एक अनार पर चारों तरफ मिट्टी लगाकर भून लें। जब भुन जाये तो दानों का रस निकाल लें। इस रस में शहद मिलाकर पियें। हर प्रकार के दस्त ठीक हो जायेंगे।
– दस्तों में अनार का रस पीना लाभदायक है।
– कच्चा पपीता उबालकर खाने से पुराने दस्त ठीक हो जाते हैं।
– गाजर का रस या गाजर खाने से पुराने दस्त, अपच के दस्त, संग्रहणी ठीक हो जाती है।
– मोगरे के दो-चार कोमल एवं ताजा पत्तों को भाँग की तरह, एक कप ठण्डे पानी में घोंटकर कपड़छन कर लें। इस घोल में थोड़ी-सी मिश्री मिलाकर दिन में तीन बार देने से खूनी दस्तों में तुरन्त लाभ होता है।
– 2.50 ग्राम मेथी की पत्ती को 10 ग्राम घी में तलकर सुबह-शाम खाने से पतले दस्त (अतिसार) में लाभ होता है।
– बथुए के पत्तों को पानी में उबालकर तथा उस पानी में शक्कर मिलाकर पीने से दस्त साफ होते हैं।
– दस्त में आंव या खून आता हो तो आंवला चूर्ण को शहद के साथ लेकर ऊपर बकरी का दूध लेना चाहिए। यह प्रयोग लम्बा रखना चाहिए अन्यथा लाभ नहीं होता तथा बाद में जो लाभ होगा, वह स्थाई होगा।
– आम के फूल उपयोगी होते हैं। 1-2 चम्मच ताजे फूल के रस को दही के साथ लेने से दस्त रुक जाते हैं।
– दस्त मरोड़ में दही में केला एवं थोड़ी-सी केसर मिलाकर सेवन करें आशातीत लाभ होगा |
– भोजन के ठीक से नहीं पचने तथा मल पतला व आंव होने पर काली मिर्च, सेंधा नमक, अजवायन, सूखा पुदीना और बड़ी इलायची-ये सब समान मात्रा में लेकर पीस लें और भोजन के पश्चात् एक चम्मच पानी के साथ लें। कुछ दिनों में ही बहुत लाभ होगा |
– अतिसार में भुनी व कच्ची सौंफ का समभाग चूर्ण दो-दो चम्मच मट्ठे से चार बार लेना लाभप्रद है।
दस्त का बायोकेमिक/होमियोपैथिक इलाज
कोलोसिन्थ 6, 30 – दस्त बार-बार होते हैं। पेट फूल जाता है। नाभि के आसपास, तेज असहनीय दर्द होता है-तब दें।
क्यूप्रम 6, 30 – दस्तों के साथ पेट की पेशियों में ऐंठन होती है। हाथ-पैरों की उँगलियों एवं पिंडलियों में खींच-सी महसूस होने पर इस औषधि का प्रयोग करें।
चायना 30 – दस्त भूरे, पीले, बदबू वाले एवं पतले, साथ ही दस्त के साथ गैस भी निकलती है। किन्तु दस्त के समय दर्द नहीं होता। पेट में वायु चक्कर काटती है। डकारें आती हैं किन्तु राहत नहीं मिलती। रोगी अत्यंत कमजोर हो जाता है। ऐसे रोगी के लिये यह उत्तम है।
पोडोफाइलम 6, 30, 200 – दस्त पनीले होते हैं और दर्द के साथ आते हैं। दस्त सुबह प्रारम्भ होकर दोपहर तक आते हैं। यह सिलसिला अगली सुबह फिर शुरू हो जाता है। पेट में हवा भर जाती है। अपान वायु बदबूदार निकलती है। कभी-कभी दस्त के साथ अपच भोजन भी निकलता है।
ऐलू 6, 30 – पानी पीने के तुरन्त बाद अथवा खाना खाते ही दर्द एवं दस्त की शिकायत। पेट में गड़बड़, पेट भरा हुआ लगता है। गुदा की माँसपेशियाँ ढीली पड़ जाती हैं। कभी-कभी मल अपने आप ही बाहर निकल जाता है, मल में श्लेष्मा भी मिली होती है।
नक्सवोमिका 30 – दस्त भारी नहीं होते। बार-बार थोड़े-थोड़े आते हैं। दस्त के साथ आंव भी आती है। मल त्यागते समय शक्ति का प्रयोग भी करना पड़ता है। ऐसे में यह औषधि लाभकारी है।
क्रोटन टिग 6, 30 – दस्त निकलते समय आँतों में पानी-सा महसूस होता है। दस्त नल के पानी की तरह तेजी से निकलता है। बेचैनी बढ़ती है। दस्त के साथ जी मिचलाता है।
सल्फर 3, 30 – रोगी पूरी रात आराम से लेटा रहता है, किन्तु सुबह चार-पाँच बजे दस्त की शिकायत होती है। रुका नहीं जाता। दस्त हरे पीले एवं पनीले हो सकते हैं। बदबू इतनी होती है कि रोगी अपने शरीर में भी बदबू महसूस करता है। दस्त में आंव एवं खून की धारियाँ भी हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में यह औषधि सर्वोतम है।
आर्सेनिक 30 – पेट में जलन, दर्द व भोजन के संक्रमण के कारण दस्त होने पर उपयोगी है।