दाल में मिलने वाले सम्पूर्ण पौष्टिक तत्व दाल के बनाने की तरीके पर ज्यादा निर्भर करता है। दालें बनाने से पहले सात से आठ घण्टे भिगोयें। दालें छिलकों सहित लें। छिलकों वाली दाल बिना छिलकों वाली दाल से अधिक लाभदायक है। दालों को भिगोने से उनमें व्याप्त अनेक एंजाइम तंत्र क्रियाशील हो जाते हैं जिससे दालों के पोषक तत्व बढ़ जाते हैं। दाल जब सुखी अवस्था में हो तब उसमे विटामिन ‘सी’ बिलकुल नहीं होती लेकिन भीगने के बाद विटामिन ‘सी’ प्रचुर मात्रा में प्रकट हो जाता है। इसी प्रकार सूखे दानों की अपेक्षा अंकुरित दानों में फोलिक अम्ल और अन्य ‘बी’ वर्ग वाले विटामिनों के अंश में 2-3 गुनी बढ़ोतरी हो जाती है। भीगने से अंकुरण हो जाता है।
सूखी अवस्था वाले दालों में कुछ पोषणरोधी कारक फाइटेट और टैनिन सरीखे ऐसे पदार्थ होते हैं जो शरीर को कुछ पोषक पदार्थों की उपलब्धि होने में बुरा प्रभाव डालते हैं लेकिन अंकुरण में ये हानिकारक पदार्थ तोड़कर निष्क्रिय कर दिए जाते हैं। यह देखा गया है कि केवल रात भर पानी में भिगो देने पर ही चने और अरहर से 50 प्रतिशत टैनिन अलग हो जाता है। मूंग और उड़द से इस तरह से करीब 25 प्रतिशत टैनिन निकाला जा सकता है। 24-48 घण्टे तक अंकुरण होने पर टैनिन के अंश में आगे और 10-15 प्रतिशत की कमी हो जाती है। सूखे चने में एक और पदार्थ फाइटेट होता है जो कुल फॉस्फोरस का 80 प्रतिशत से भी अधिक होता है, लेकिन 48 घण्टे तक अंकुरण के बाद यह 44 प्रतिशत ही रह जाता है और इस तरह फॉस्फोरस में कोई परिवर्तन नहीं होता। इन्हीं लाभकारी प्रभावों के कारण अंकुरण के बाद दालों से लोहे की उपलब्धि दो गुनी अधिक हो जाती है।
अंकुरण से दाने में मंड की मात्रा भी बदल जाती है। इससे दालें सुपाच्य बन जाती हैं। यह सब जानते हैं कि दालों से आध्मान या उदर-वायु (गैस बनने) की स्थिति आ जाती है। अन्य दालों की तुलना में चने से अधिक गैस बनती है। इन दालों में औलिगोसैकराइड नामक कुछ शर्कराओं की उपस्थिति गैस बनने से सम्बद्ध कारक है। मानव में उपयुक्त पाचक एंजाइमों की अनुपस्थिति से इन शर्कराओं का अवशोषण नहीं हो पाता है। लेकिन बड़ी आँत वाले जीवाणु (बैक्टीरिया) इन गैस बनाने वाली शर्कराओं पर क्रिया करते हैं। चना, मूंग, उड़द या अरहर अंकुरित होने पर इन ओलिगो-शर्कराओं को कम कर देते हैं। 24 घण्टे तक अंकुरित होने पर आरम्भिक मान की तुलना में ओलिगो-शर्कराओं की सांद्रता 50 प्रतिशत पायी गयी। 48-72 घण्टे तक यह 25-72 प्रतिशत से भी कम पायी गयी। इसका मतलब यह हुआ कि बिना अंकुरित दालें कम गैस बनाने वाली होती हैं।
दालों, विशेषकर चने और मूंग को तैयार करने की दो पारम्परिक विधियाँ भूनने और फुलाने वाली विधियाँ हैं। इन खाद्य-पदार्थों को भूनने और फुलाने पर अच्छा स्वाद आता है। ताप से इन प्रक्रियाओं के दौरान पोषणरोधी पदार्थों का नाश भी हो जाता है। भुनी दालों के आटे की लुगदी का गाढ़ापन भी कम हो जाता है। इस तरह भुनी हुई दालों के प्रयोग से हम भोजन का परिमाण कम कर सकते हैं, विशेष रूप से छोटे बच्चों को खिलाने में। दालों को पकाने की प्रचलित विधि पानी में उबालने की है। उबालने से अधिकांश वे पदार्थ निष्क्रिय हो जाते हैं जो शरीर को कुछ पोषक पदार्थों को सोखने नहीं देते, लेकिन कुछ पोषक पदार्थ पकाने वाले माध्यम में घुलकर बह जाते हैं।
अरहर के विषय में पाया गया है कि उबालने से रिबोफ्लाविन की 5-25 प्रतिशत तक हानि हो जाती है। दालों के टैनिन अंश से सम्बन्धित हाल की खोजों से पता चलता है कि पकाने के बाद पोषण-रोधी कारक का 80 प्रतिशत से अधिक अंश दाने से अलग हो जाता है। अरहर की दाल अथवा चावल के पकाने पर लोहे की जैव उपलब्धिता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
रूपनिखार – दाल-चावल का उबला हुआ पानी चेहरे पर लगाकर सूखने दें। एक घण्टे बाद धोयें। इससे चेहरे का रूप निखर उठेगा।