किसी विशेष स्थान, एक घेरे के भीतर त्वचा (चर्म) के नीचे किसी शरीर-यन्त्र में पीब (मवाद) उत्पन्न हो जाने का नाम ‘फोड़ा’ अथवा ‘स्फोटक’ है। यह माँस-पेशी के अन्दर, यकृत, शरीर अथवा हड्डी के ऊपरी भाग आदि में दिखाई देता है। यह चोट अथवा सर्दी लगने के कारण भी उत्पन्न हो सकता है। कभी-कभी अस्थि-प्रदाह के पश्चात् भी दिखाई देता है। फोड़ा निकलने से पहले ज्वर जैसे लक्षण दिखाई देते हैं, फिर उस स्थान पर प्रदाह अर्थात् जलन, दर्द, लाली एवं गर्मी के उपसर्ग प्रकट होते हैं। कुछ फोड़े ऐसे भी होते हैं, जिनमें मवाद (पीव) नहीं होता अथवा वे कष्ट-साध्य नासूर में परिवर्तित हो जाते हैं ।
फोड़े की विभिन्न अवस्थाओं में निम्नलिखित औषधियाँ लाभकर हैं :-
एकोनाइट 30 – फोड़े में मवाद पड़ने से पहले इस औषध के सेवन से लाभ होता है ।
बेलाडोना 30 – ज्वर, सूजन तथा तपकन के लक्षण हों परन्तु फोड़े में मवाद न पड़ा हो तो इसे देना चाहिए। अधिक दर्द, सामान्य-सूजन, लाली तथा गरम होने के लक्षणों में ‘बेलाडोना 2x‘ का प्रयोग करना उचित है ।
एपिस – फोड़े वाले स्थान के अधिक फूल जाने तथा उसमें डंक मारने जैसा दर्द होने पर इसका प्रयोग लाभकर रहता है ।
मर्कसोल 30 – इस औषध का प्रयोग फोड़े की प्रथमावस्था तथा द्वितीयावस्था में किया जाता है । विशेषकर इसे फोड़े को पकाने के लिए दिया जाता है, ताकि उसमें पस (मवाद) पड़ जाय । ‘बेलाडोना’ अथवा ‘एपिस’ किसी से भी प्रदाह कम न होने पर ‘मर्कसोल 6’ का प्रयोग हितकर रहता है ।
हिपर सल्फर 6, 200 – यदि फोड़े को फोड़ना, हो तो ‘हिपर 6’ और यदि उसके मवाद (पस) को सुखाना हो तो ‘हिपर 200’ का प्रयोग करना चाहिए । ‘हिपर 6’ चीरा लगाने जैसा काम करता है तथा ‘हिपर 200’ देने पर, यदि फोड़ा सूखने की स्थिति में होता है तो सूख जाता है यह औषध फोड़े की तृतीयावस्था में दी जाती है ।
साइलीशिया 30 – फोड़े को भरने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है । यदि फोड़े को ठीक होने में बिलम्ब हो रहा हो तो यह औषध उसके मवाद को निकाल कर ठीक कर देती है। यह फोड़े की चतुर्थावस्था में लाभकारी है। यदि पतला पीव हमेशा बहता रहता हो तथा घाव जल्दी अच्छा न हो तो इसे देना चाहिए । मल-द्वार पर फोड़ा हो तो भी इसका प्रयोग करना चाहिए ।
मर्क-वाई 30 – यदि दाँत की जड़ में फोड़ा हो तो इसका प्रयोग करें ।
पाइरोजेन 30 – यदि खून खराब होने के कारण बार-बार फोड़ा हो जाता हो तो इस औषध का प्रयोग हितकर रहता है ।
डॉ० ल्युनार्ड के मतानुसार बार-बार फोड़ा हो जाने पर ‘पाइरोजेन 200’ की शक्ति में बहुत लाभ करती है। यह दूषित रक्त की मुख्य औषध है ।
सिलिका 30, 200 – यदि पुराने फोड़े से बहुत दिनों तक मवाद निकलता रहे, तो इसे दें ।
फ्लोरिक-एसिड 6 – यदि फोड़ा नासूर के रूप में बदल गया हो ।
कैल्के-सल्फ 6x वि० – फोड़ा फूट जाने के बाद अथवा नश्तर लगवाने के बाद इसका पाँच ग्रेन की मात्रा में सेवन करना चाहिए तथा कैलेण्डुला का मरहम लगाना चाहिए।
आर्निका 30 – यदि सम्पूर्ण शरीर पर फोड़ों के झुण्ड से दिखाई दें, वे पक जायें अथवा बीच में ही सूख जाए, तब इस औषध के प्रयोग से लाभ होता है।
डॉ० ज्हार के मतानुसार सामान्य फोड़ों के लिए यह सर्वोत्तम औषध है । इसकी कुछ गोलियों को पानी में घोल दें, फिर प्रति तीसरे घण्टे उस औषधीय जल को एक-एक चम्मच की मात्रा में सेवन करें। ऐसा करने पर फोड़ा या तो बैठ जाते हैं अथवा पक जाते हैं। यदि इसे देने के बाद भी फोड़े बने रहें तो ‘लाइको’ या ‘नक्स’ देने से लाभ होता है ।
सल्फर 30 – फोड़ों के पक जाने पर इस औषध की एक मात्रा देने से इनकी कील (Core) निकल जाती है और वे सूख जाते हैं। यदि कील निकल जाने पर भी वह ठीक न हों तो ‘साइलीशिया’ के प्रयोग में अन्य सभी दोष दूर हो जाते हैं।
गन पाउडर 3x – दूषित-रक्त के कारण कभी-कभी सम्पूर्ण शरीर पर अथवा चेहरे पर छोटी-छोटी फुन्सियों के दाने निकल आते हैं। डॉ० कैलोन के मतानुसार ऐसे दाने अथवा फुन्सियाँ ‘गन पाउडर 3x’ के प्रयोग से मिट जाते हैं । उनके मतानुसार उस औषध के देने से दो दिन पूर्व ‘हिप्पर सल्फर 200’ की एक मात्रा देने से गन पाउडर दवा अच्छा काम करती है। यह सड़े-गले घावों को भी ठीक करती है तथा इसके प्रयोग से कार्बन्कल में भी लाभ होता है ।
विशेष – उत्त औषधियों के अतिरिक्त कभी-कभी लक्षणानुसार आर्सेनिक तथा चायना देने की आवश्यकता भी पड़ सकती है ।
कैलेण्डुला Q – इस औषध के ‘मदर टिंक्चर’ को 10 गुने गरम पानी में मिलाकर धावन तैयार करें । इस धावन के प्रयोग से प्राय: फोड़ा पककर फूट जाता है। जब फोड़ा फूट जाय, तब एक स्वच्छ तथा महीन पतले कपड़े को इस धावन में भिगोकर फोड़े के छिद्र में डाल देना चाहिए तथा एक अन्य कपड़े के टुकड़े की भी इस धावन में भिगोकर, ऊपर से पट्टी की तरह बाँध देना चाहिए। ‘कैलेण्डुला’ के अभाव में नीम की पुल्टिस को भी फोड़े पर बाँधा जा सकता है। इनके प्रयोग से भी फोड़ा फूट जाता है। कठिन फोड़े में नश्तर लगवाने की आवश्यकता भी पड़ सकती है।
विशेष – फोड़े के रोगी को पौष्टिक, परन्तु हल्का और सुपाच्य भोजन खाने के लिए देना चाहिए ।
फोड़े में पस पड़ना (Suppuration)
फोड़े में पस पड़ने तथा निकल जाने के बाद की अवस्थाओं में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग हितकर सिद्ध होता है
बेलाडोना 3, 6, 30 – फोड़े की प्रथमावस्था में जब पस (पीव) न पड़ा हो, केवल सूजन ही हो, तब यह औषध बहुत लाभ करती है।
हिपर सल्फर 30 – फोड़े में पस पड़ना शुरू होते ही इस औषध का प्रयोग करना हितकर रहता है। यह पस को सुखा देती है ।
मर्कसोल 30 – यदि फोड़े में पस पड़ने को ‘हिप्पर’ न रोक पाये तथा उसमें पस उत्पन्न करके फोड़ने की आवश्यकता प्रतीत हो तो इस औषध का प्रयोग करना चाहिए। यह फोड़े में पूरी तरह से पस उत्पन्न कर देती है। बाद में फोड़ा फूटकर पस बाहर निकल जाता है ।
साइलीशिया 30 – फोड़े में से पस निकल जाने के बाद उसके घाव को भरने के लिए इस औषध का प्रयोग करना चाहिए ।
गन पाउडर 3x – जिन फोड़ों को भरने में अधिक देर लग रही हो, उनके लिए यह औषध चार ग्रेन की मात्रा में प्रति चार घण्टे के अन्तर से देनी चाहिए ।