प्राय: मासिक की गड़बड़ी में पल्स तथा सीपिया मुख्य दवाएं हैं। पल्स स्त्रियां काले रंग पर, सीपिया गोरे रंग पर होती हैं, पल्स मोटी तथा ‘ऊष्णता प्रधान’ तथा सीपिया पतली एवं ‘शीत-प्रधान’ होती हैं।
स्त्रियों के मासिक-धर्म की गड़बड़ी के मुख्य पांच प्रकार हैं-
(1) ‘रजः रोध’ – मासिक प्रारंभ होकर बन्द हो जाना
(2) देर में रज-स्राव होना (Delayed menses);
(3) ‘अति-रज:’ – मासिक में बहुत ज्यादा खून जाना
(4) ‘ऋतु-शूल’ – मासिक में ज्यादा दर्द होना
(5) ‘अन्त ऋतु-स्राव’ – दो मासिकों के बीच में जरायु से रुधिर जाना। मासिक-धर्म की इन पाँचों प्रकार की गड़बड़ी की मुख्य-मुख्य होम्योपैथिक औषधियां निम्न हैं:-
(1) रजः रोध (Amenorrhea)
पल्सेटिला – दर्द, थोड़ा, अनियमित; रुक-रुक कर होना; दिन को ज्यादा; पहली माहवारी में देर; खुली हवा पसन्द; कोमल, मृदु स्वभाव। पल्सेटिला तथा सल्फर रज: रोध की खास दवाएँ हैं।
साइक्लेमेन – रज: रोध में शोकाकुल; हतोत्साह; घुमेरी; खुली हवा नापसन्द।
सल्फर – अगली बार के मासिक आने के समय उसका न होना; 11 बजे जी बैठने का-सा अनुभव होना।
नैट्रम म्यूर – रज: रोध के साथ सोकर उठने पर सिर-दर्द, ठंड लगना; हतोत्साह; कब्ज।
कैलि कार्ब – अगर नैट्रम म्यूर के लक्षणों पर उससे लाभ न हो तब दो।
एकोनाइट – एक बार रजः स्राव होकर एकाएक सर्दी लगकर या डर से ऋतु बन्द हो जाना।
ब्रायोनिया – रज: स्राव के बदले नाक से खून जाना।
ग्रैफाइटिस – बहुत देर में, बहुत थोड़ा, बहुत दर्द, मासिक का पीला रंग, कब्ज।
(2) देर में रजः स्राव (Delayed Menstruation)
पल्सेटिला तथा सल्फ़र – ये दोनों इसकी भी मुख्य दवाएँ हैं।
कैलकेरिया फॉस – काला खून, कभी-कभी पहले लाल फिर काला, सख्त दर्द के साथ रजः स्राव होना।
सेनेशियो – पहली बार रज-स्राव होकर ठंडे स्नान आदि से या अन्य कारण से माहवारी बन्द हो जाना; बन्द होने से फेफड़े आदि से रुधिर जाना, लड़की का पीला पड़ जाना; मासिक बन्द होने से खों-खों की-सी खांसी (Hacking cough) हो जाना। मूल-अर्क लाभ करता है।
(3) अति रजः स्राव (Menorrhagia)
हाइड्रैस्टिस – डॉ० वाफोड का कहना है कि हाइड्रैस्टिस 1x इसमें बहुत लाभ करता है।
हैमेमेलिस तथा चायना – इनको पर्याय-क्रम, अर्थात् एक-दूसरे के बाद देने से यह रोग अच्छा हो जाता है।
नक्स वोमिका – समय से कुछ दिन पहले हो, खून की मात्रा अधिक, कई दिन तक चले, पहला समाप्त नहीं होता कि दूसरे का समय आ जाता है। इस अवस्था में नक्स की बहुत तारीफ़ हुई है।
कैलकेरिया कार्ब – यह नक्स की तरह की है, परन्तु दोनों का स्वभाव तथा शरीर की रचना भिन्न-भिन्न है। नक्स पतली-दुबली, कैलकेरिया थुलथुल होती है। दोनों शीत-प्रधान हैं।
चायना – अति रज:, काले-काले टुकड़े निकलें।
कैमोमिला – अगर मानसिक-विक्षोभ को कारण मासिक ज्यादा हो।
इपिकाक – मितली के साथ या बिना मितली के अति रज:स्राव, चमकीला लाल खून।
मैग कार्ब – अति रज: लेकिन रात को स्राव का बढ़ जाना।
फेरम मेट – रज: स्राव का बहुत बढ़ जाना।
(4) ऋतु-शूल (Dysmenorrhea)
मैग फॉस – ऋतु-शूल में अगर गर्म सेक से आराम हो तो 3x या 6x गर्म पानी के साथ दस-दस मिनट बाद दो। दर्द दूर करने की यह बढ़िया दवा है।
क्सैन्योक्साइलम – इसकी 1x या 3x मात्रा देने से 80 फ़ीसदी रोगी ठीक हो जाते हैं।
वाइबरनम औप्युलस – इस दर्द में मूल-अर्क या 3x बहुत अच्छी दवा है। दर्द एकाएक पैदा होकर 8-10 घंटे रहता है। जरायु से दर्द उठकर समूचे पेट में फैल जाता है।
बेलाडोना – चाहे ज्यादा खून जाय या कम, परन्तु दर्द बहुत होता है। मासिक होने से पहले थकावट, भूख न होना; मासिक के दिनों में छाती पर रात को पसीने आना; कभी-कभी ठंड की फुरहरी; लाल परन्तु बहुत गर्म खून।
कैक्टस – दर्द के मारे रोगिणी चिल्लाती है, अत्यन्त कमजोरी।
सीपिया – जब ऋतु-धर्म कम जाने के कारण दर्द हो।
(5) दो मासिकों के बीच में जरायु से रुधिर (Metrorrhagia)
इग्नेशिया – हर दसवें या पन्द्रहवें दिन रज:स्राव, प्रभूत, काला, थक्केदार रुधिर।
इपिकाक – डॉ० का कहना है कि अगर कोई अन्य औषधि निर्दिष्ट न हो और जरायु से रुधिर बहुत जाने लगे, तो वे सदा इपिकाक से लाभ उठाते रहे हैं।
सिकेल कौर – अगर इपिकाक से लाभ न हो तो सिकेल से लाभ होता है।
चायना – अगर सिकेल से भी लाभ न हो तो चायना उपयोगी है। अगर रोगिणी रुधिर-स्राव से अत्यंत निर्बल हो गई हो तो चायना का तुरंत प्रयोग करना चाहिये। डॉ० का अनुभव है कि इपिकाक, सिकेल, चायना – इन तीन में से किसी-न-किसी से यह रोग पकड़ा जाता है।