पैंटोथेनिक एसिड (Pantothenic Acid) – यह विटामिन भी ‘बी’ समूह का आवश्यक तत्त्व है। यह वनस्पति और प्राणिज आहार में खूब उपलब्ध होता है। खमीर, यकृत, गुर्दे, चोकर तथा मटर इसकी उपलब्धि के सर्वोत्तम साधन हैं। इसके अतिरिक्त अखरोट, गेहूँ की सूजी, सलाद, मुर्गी के अण्डे, छोटी मछली, पत्ता गोभी, पालक का शाक, सूरजमुखी के फूलों के बीजों की मींगी, तिल, बादाम, मूंगफली पशुओं के यकृत, वृक्क दालों, शलजम या मूली के पत्ते, टमाटर इत्यादि में यह पर्याप्त मात्रा में रहता है। गेहूँ के आटे में चोकर निकालने से यह तत्त्व निकल जाता है । अंकुरित अनाजों में इसकी मात्रा बढ़ जाती है। अनेक जीवाणु तथा हरे पौधे पैंटोथेनिक एसिड का संश्लेषण करते हैं ।
यह विटामिन तथा बायोटिन केशों (Hairs) को काला करने के कार्य में पैराएमिनो बेन्जोइक एसिड की सहायता करता है । यह मनोविकार और तन्त्रिका संस्थान के रोगों में और नाड़ी शोथ में लाभप्रद है । इस विटामिन की कमी होते ही बाल सफेद होने लग जाते हैं, बाल झड़ने लगते हैं तथा समस्त शरीर में जलन, दाह और पीड़ा होती रहती है । इस अवस्था में ‘कैल्शियम पेण्टोथेनेट’ के योग का प्रयोग करने से बाल नार्मल कलर (प्राकृतिक रंग) में आ जाते हैं तथा सभी उपद्रवों की सम्भावना मिट जाती है।
चिकित्सकीय मात्रा – रोग निवारणार्थ इसे 200 से 400 मि. ग्रा. की मात्रा में (आवश्यकतानुसार) दिन में 2-3 बार प्रयोग कराना लाभप्रद है ।
विशेष नोट – मनुष्य में इसकी उपयोगिता और आवश्यकता के बारे में अभी निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। संभव है यह कार्बोज और वसा के संवर्तन से सम्बंधित हो। 1946 में गोपालन ने बताया कि बर्निंगफीट सिंड्रोम जिसमे व्यक्ति के हाथ पांव जलते रहते हैं में यह विटामिन विशेष उपकारी है। इसके अतिरिक्त शिथिलता असंतोष, उदर के अपचजनित लक्षणों के लिए भी यह हितकारक है। यकृत के सिरोसिस डायबिटीज तथा एडिसन रोग में यह सहायक औषध के रूप में उपयोगी है। ऑपरेशन के बाद आँतों में पैदा होने वाली एटोनी की चिकित्सा में इसके अच्छे परिणाम होते हैं। गर्भावस्था में मांसल स्पाज्म को रोकने के लिए इसकी 500 मिलीग्राम की मात्रा अच्छा प्रभाव दिखलाती है।