ज्वर आदि किसी रोग के कारण शरीर में जलन का अनुव होने पर उस रोग की चिकित्सा करने से जलन भी दूर हो जाती है, परन्तु यदि अकारण ही (अथवा किसी रोग के कारण से भी) शरीर में दाह (जलन) का अनुभव हो तो उसकी चिकित्सा आगे लिखे अनुसार करनी चाहिए। स्मरणीय है कि इस प्रकार की जलन (1) शरीर में ऊपर की ओर व (2) भीतर की ओर – दो प्रकार की होती है । साथ ही यह रोग नया और पुराना – दोनों प्रकार का हो सकता है ।
इस रोग में निम्नलिखित औषधियों द्वारा उपचार करें :-
आर्सेनिक 3x, 30, 200 – शरीर में असह्य जलन, बेचैनी, मध्य-रात्रि अथवा मध्य दिन में जलन का बढ़ जाना – इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है। इस औषध का रोगी शीत-प्रकृति का होता है, फिर भी उसे ठण्ड लगने के स्थान पर भीतर ही भीतर जलन का अनुभव होता है। प्यास लगने पर भी वह एक साथ पानी न पीकर, थोड़ा-थोड़ा पानी पीता है । उसे सेंक से आराम मिलता है । वह आग के सामने अथवा धूप में बैठना चाहता है तथा अत्यधिक जलन का अनुभव होने पर शरीर से कपड़े नहीं उतारना चाहता । ज्वर, जख्म, फोड़ा आदि में जब रोगी एकदम सुस्त हो जाता है, तब भी उसे इसी प्रकार की जलन का अनुभव होता है। किसी भी बीमारी में शरीर में जलन का अनुभव होने वाली नयी अवस्था की यह सर्वोत्तम औषध है।
सल्फर 30, 200 – सम्पूर्ण शरीर में आग जलने जैसा अनुभव, हाथ-पाँव तथा विशेष कर पाँवों के तलवों में जलन, जलन के कारण रोगी द्वारा अपने पाँवों को बिस्तर के बाहर निकाल देना, स्त्रियों को बड़ी आयु में मासिक-धर्म बन्द हो जाने के बाद उठने वाली गर्मी की लहरें तथा किसी भी पुरानी बीमारी में जलन की ऐसी स्थिति हो जाने पर यह औषध बहुत लाभ करती है ।
फास्फोरस 6, 30 – सम्पूर्ण शरीर में अथवा भिन्न-भिन्न स्थानों में जलन का अनुभव, पेट अथवा पीठ में तथा हथेलियों और बाँहों में जलन का अनुभव, हथेलियों में जलन के अनुभव के साथ ही पसीना भी आ जाना अर्थात् उनका पसीज जाना, पीठ तथा कटि-प्रदेश में विशेष रूप से जलन की अनुभूति – इन सब लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।
एकोनाइट 1x, 6, 30 – नये प्रदाहिक-ज्वर अथवा शोथ की प्रारम्भिक अवस्था में बेचैनी के साथ जलन का अनुभव होना, अत्यधिक प्यास लगना तथा रोगी द्वारा पानी खूब पीना – इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है।
सिकेल 3x, 30 – आग की चिनगारी द्वारा सम्पूर्ण शरीर के जलाये जाने का अनुभव, परन्तु जब कोई अन्य व्यक्ति रोगी के शरीर पर हाथ रखकर देखे तो उसे शरीर ठण्डा प्रतीत होना, रोगी द्वारा हर समय पंखा (हवा) करने के लिए कहना, फिर भी शरीर के कपड़े न उतारना – इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है। प्राय: हैजा तथा सड़ने वाली बीमारियों में ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं ।
एपिस-मेल 3x, 3, 30, 200 – शरीर में डंक मारने जैसा दर्द तथा सूजन के साथ ही अंग अथवा किसी विशेष अंग में जलन, ठण्ड से आराम का अनुभव तथा प्यास न लगना – इन लक्षणों में यह औषध लाभप्रद है। सूजन होने पर इसे निम्न शक्ति में देना चाहिए। इस औषध की क्रिया देर में प्रकट होती है। जब प्रकट होती है, तब रोगी के पेशाब की मात्रा बढ़ जाती है ।
ऐगारिकस 3, 30 – शरीर के विभिन्न अंगों में खुजली तथा लाली के साथ जलन एवं बर्फ सेवन आदि के कुप्रभाव से त्वचा में जलन – इन लक्षणों में हितकर है । यह जलन ठण्डक से और अधिक बढ़ती है तथा गर्मी से आराम का अनुभव होता है ।
कैन्थरिस 3x, 3, 6, 30 – कण्ठ, पेट, गुह्य-द्वार तथा मूत्र-नली में जलन, पेशाब करते समय असहय जलन का अनुभव तथा पेशाब की इच्छा का निरन्तर बने रहना – इन लक्षणों में लाभकारी है ।
एन्थ्रासीनम 3 – गले-सड़े फोड़े, घाव तथा बिसहारी आदि की जलन में यह औषध लाभ करती है ।
एकोनाइट 1x, 6 – नवीन प्रदाहिक-ज्वर आदि की प्रथमावस्था में तथा बेचैनी के बाद जलन का अनुभव होने पर इसे दें ।
ब्रायोनिया 3, 30 – पित्त-प्रधान मनुष्य के हाथ-पाँव आदि में जलन का अनुभव होने पर इसका प्रयोग करें ।
बेलाडोना 1x, 30 – शरीर में दाह के साथ किसी अंग में सूजन तथा लाली होने पर प्रदाहित स्थान को छूने पर आग निकलने जैसा अनुभव होने पर इसे देना चाहिए ।
कैप्सिकम 3, 6 – सम्पूर्ण शरीर में पिसी हुई मिर्च लगा देने जैसी तीव्र जलन का अनुभव होने पर इसे देना चाहिए ।