लक्षण तथा मुख्य-रोग प्रकृति
(1) चोट द्वारा शरीर में कुचले जाने का-सा अनुभव होना
(2) किसी भी पुराने रोग की शुरूआत चोट लगने से होना
(3) बिस्तर का कठोर अनुभव होने के कारण करवटें बदलते रहना
(4) टाइफॉयड में आर्निका के लक्षण
(5) गठिया रोग में आर्निका के लक्षण
(6) गर्भावस्था तथा प्रसव के बाद आर्निका से लाभ
(7) किडनी, ब्लैडर, लिवर, न्यूमोनिया में आर्निका का उपयोग
लक्षणों में कमी
(i) सिर नीचा करके लेटना
(ii) अंग फैला कर लेटना
लक्षणों में वृद्धि
(i) शरीर पर चोट या रगड़
(ii) शारीरिक या मानसिक आघात
(iii) शारीरिक-श्रम
(iv) मोच
(v) हिलना-डुलना
(iv) वृद्धावस्था
(1) चोट द्वारा शरीर में कुचले जाने का-सा अनुभव – चोट लगने में सबसे पहले आर्निका की तरफ ध्यान जाता है। चोट के कारण ऐसा अनुभव होता है कि सारा शरीर कुचला गया है, शरीर को हाथ लगाने से ही दर्द होता है। ऐसा अनुभव सारे शरीर में भी हो सकता है, शरीर के किसी अंग में भी हो सकता है। रोगी किसी को अपना अंग छूने नहीं देता। कुचले जाने या चोट के सम्बंध में आर्निका के अतिरिक्त निम्न दवाओं का तुलनात्मक विवेचन उपचार के लिये लाभप्रद है:
चोट, घाव तथा क्षति की मुख्य-मुख्य औषधियाँ
कोनायम – स्तन, अंडकोश आदि कठोर ग्रन्थियों के कुचले जाने पर उनमें गांठ पड़ जाना।
हाइपेरिकम – इसे ‘Arnica of neves’ कहा जाता है। सूई, पिन, फांस आदि लगने या पशु एवं कीट के दन्त-क्षत से स्नायु (Nerve) को आघात पहुंचने तथा उसमें दर्द होने पर।
ऐनाकार्डियम – जब मांसपेशियों के बंधकों में कुचलने सरीखा दर्द हो।
सिम्फाइटम – हड्डियों पर लगी चोटों पर, टूटी हड्डियों को जोड़ देता है (कैल्केरिया फॉस), जहां हड्डी टूटी हो उस स्थान पर दर्द, ठूंठ में पीड़ा दूर करता है। बच्चे की मुट्ठी से मां की आंख पर चोट लगे तो ठीक कर देता है।
लीडम – सूआ, कील आदि चुभने पर। हाइपैरिकम और लीडम लगभग समान है।
रस टॉक्स – प्रत्येक मांस-पेशी में कुचलन का-सा दर्द जो चलना-हिलना शुरू करने के समय पीड़ा देता है, परन्तु गति शुरू होने पर दर्द दूर हो जाता है। फाइटोलैक्का – सिर से पांव तक स्पर्श सहिष्णुता, मांस-पेशियां इतनी दर्द करती हैं कि ‘आह’ निकल पड़ती है।
बैप्टीशिया – रोगी बिस्तर पर जिस अंग की तरफ भी लेटता हैं, ऐसा लगता है कि पलंग उधर ही कठोर है, उधर ही के अंग में कुचलन का-सा दर्द होने लगता है।
रूटा – शरीर का प्रत्येक अंग जिस पर उसका बोझ पड़ता है कुचला-सा अनुभव होता है, शरीर के किसी भाग पर भी बोझ नहीं डाल सकता-इतना दर्द होता है।
चायना – शरीर की हर मांस-पेशी में, जोड़ों में हड्डियों में, हड्डियों के परिवेष्टन में, मेरु-दण्ड में, त्रिकास्थि में, घुटनों में, जांघों में कुचलन सरीखा दर्द होता है।
आर्निका – चोट लगने से दर्द। अन्य औषधियों के दर्द में चोट लगना ही विशेष कारण नहीं है, इसमें यह विशेष कारण है।
स्टेफ़िसैग्रिया – सर्जन के शुद्ध यंत्रों से सफाई से कांट-छांट या ऑपरेशन के बाद यह घाव को जल्दी ठीक कर देता है।
(2) किसी पुराने रोग की शुरूआत चोट लगने से होना – अगर कोई पुराना रोग चोट लगने से शुरू हुआ हो, चाहे कितने ही वर्ष चोट लगे क्यों न बीत गये हों, वह रोग आर्निका से दूर हो जायेगा। उदाहरणार्थ, चोट लगने के बाद किसी को आर्निका की तरफ ध्यान देना चाहिये। जिन लोगों के शरीर पर किसी शारीरिक घाव का प्रभाव बना रहे, चाहे वह घाव भी कितना ही साधारण क्यों न हों, उन्हें आर्निका से आराम आ जाता है।
(3) बिस्तर का कठोर अनुभव होने के कारण करवटें बदलते रहना – रोगी के सारे शरीर में दर्द होता है, ऐसा दर्द जैसा चोट लगने पर होता है। रोगी जिस तरफ भी लेटता है उसे ऐसा अनुभव होता है कि बिस्तर बहुत कठोर है, सख्त है, और इस कारण वह मुलायम जगह ढूंढने के लिये करवटें बदलता रहता है।
(4) टाइफॉयड में आर्निका के लक्षण – सविराम तथा अविराम ज्वर में जब टाइफॉयड के-से लक्षण प्रकट होने लगें, जब जीभ चमकदार हो जायें, दांतों और होठों पर दुर्गन्धयुक्त मल जमने लगे, जब जी बैठता जाय और संपूर्ण शरीर में कुचले जाने की-सी पीड़ा का अनुभव हो, तब आर्निका देने से टाइफाइड की तरफ जाने से रोगी बच जाता है। टाइफायड में आर्निका तथा बैप्टीशिया के लक्षण एक से हो जाते हैं, परन्तु दोनों में अन्तर है। अन्तर यह है कि बैण्टीशिया का रोगी बेहोशी की दशा में प्रश्न का उत्तर समाप्त करने से पहले ही सो जाता हैं, या बेहोश हो जाता है, आर्निका का रोगी बेहोशी की दशा में प्रश्न पूछने पर उसका सही-सही उत्तर दे देता है और फिर सो जाता है। इसके अतिरिक्त बैप्टीशिया का रोगी बार-बार करवटें बदलता है और पूछने पर कहता है कि उसके शरीर के भाग इधर-उधर बिखरे पड़े हैं, उन्हें वह बटोर रहा है, आर्निका का रोगी भी करवटें बदलता है परन्तु उसका कारण बिस्तर का सख्त होना है। बैप्टीशिया के रोगी के मल-मूत्र से अत्यन्त बदबू आती है, आर्निका का रोगी अनजाने मलत्याग कर देता है। इस दृष्टि से आर्निका के अगर लक्षण हों तो यह टाइफॉयड के लिये एक प्रसिद्ध तथा लाभप्रद औषधि है।
(5) गठिया रोग में आर्निका के लक्षण – आर्निका का हरेक रोग में आधारभूत लक्षण कुचले जाने का अनुभव है। पुराने गठिया के रोगी को जोड़ों में नाजुकपन का अनुभव होता है। वृद्ध दादा जी जोड़ों में दर्द अनुभव करते बैठे हैं कि उनका पोता उनकी तरफ उनसे खेलने को लपकता है। वे दूर से ही कहते हैं, न-न, इधर मत आना, उन्हें डर है कि वह उनके कन्धे पर चढ़कर उनके शरीर को जो पहले से ही गठिया के दर्द से पीड़ित है और दुखा देगा। उन्हें आर्निका की एक मात्रा दे दी जाय, तो वे बड़े मजे से अपने पोते को कन्धे पर चढ़ा कर भागते फिरेंगे। गठिया में कुचले जाने का-सा अनुभव आर्निका दूर कर देता है।
(6) गर्भावस्था तथा प्रसव के बाद आर्निका से लाभ – गर्भावस्था में माता के जरायु तथा कोख में नाजुकपन आ जाता है और गर्भस्थ-भ्रूण के जरा-से हिलने-डुलने के भीतर दर्द-सा अनुभव होने लगता है, रात को नींद नहीं आती। इस दशा में आर्निका की 200 शक्ति की एक मात्रा से दर्द शान्त हो जायगा। इसी प्रकार प्रसव के बाद आर्निका की उच्च-शक्ति की एक मात्रा अवश्य दे देनी चाहिये, इससे प्रसव के समय यन्त्रादि के प्रयोग से सेप्टिक होने का डर नहीं रहता। प्रसव के बाद माता को मूत्र न आने पर भी आर्निका उपयोगी हैं। नवजात शिशु को मूत्र न आने पर एकोनाइट से लाभ होता है।
(7) किडनी, ब्लैडर, लिवर, न्यूमोनिया में आर्निका का उपयोग – यद्यपि औषधि की परीक्षा में आर्निका से कभी न्यूमोनिया नहीं हुआ, तो भी अगर न्यूमोनिया में भी कुचले जाने का-सा अनुभव हो, तो आर्निका ही औषधि है। अगर गुर्दे, मूत्राशय, यकृत् आदि के रोग में शरीर में शोथ के साथ संपूर्ण शरीर में कुचले जाने की अनुभूति हो, तो आर्निका अवश्य लाभ करेगा। होम्योपैथी में रोग का इलाज नहीं होता, रोगी का इलाज होता है, रोग का नाम भले ही कुछ क्यों न हो। रोग का नाम जानना इलाज में बाधक हो सकता है क्योंकि उस अवस्था में चिकित्सक, इनी-गिनी, रटी-रटाई दवाओं के इर्द-गिर्द ही चक्कर काटता रहता है, और लक्षणों के अनुसार जो औषधि सूचित हो रही हो उसे छोड़ बैठता है।
आर्निका औषधि के अन्य लक्षण
विशेष-लक्षण – ज्वर में देखने में आता हैं कि आर्निका के रोगी का सिर तथा शरीर का ऊपरी भाग गर्म होता हैं और हाथ-पैर तथा नीचे के भाग ठंडे होते हैं। अपेन्डिसाइटिस – अगर चिकित्सक को ब्रायोनिया, रस टॉक्स, बेलाडोना और आर्निका का पूरा-पूरा परिचय हो, तब रोगी को सर्जन को पास जाने की जरूरत नहीं पड़ती।
मानसिक लक्षण – रोगी किसी को अपने पास नहीं आने देना चाहता जिसको दो कारण हैं। पहला तो यह कि वह किसी से बातचीत नहीं करना चाहता, और दूसरा यह कि उसका शरीर कुचले जाने के दर्द की अनुभूति से इतना व्याकुल होता है कि किसी के भी छू जाने से डरता है। वह किसी से बात तो इसलिये नहीं करना चाहता क्योंकि वह चिड़चिड़ा होता है, दु:खी, भयभीत, समझता है कि वह किसी भयानक रोग से पीड़ित है। जो लोग किसी दुर्घटना के शिकार हो चुके हैं, रेल गाड़ी की दुर्घटना हुई या अन्य कोई शारीरिक या मानसिक आघात पहुंचा, वे रात को यकायक मृत्यु के भय से जाग उठते हैं। ओपियम में भी ऐसा मृत्यु-भय है, परन्तु वह भय दिन को भी बना रहता है, आर्निका का मृत्यु-भय तो रात को स्वप्न में ही होता है, दिन को नहीं। रात की तरह-तरह के डरावने स्वप्न दिखाई देते हैं-चोर, डाकू कीचड़, कब्र, बिजली की कड़क आदि भयावह दृश्य सामने आते हैं।
चोट से नील आदि पड़ जाने पर आर्निका लोशन लगाना चाहिए। इस लोशन को बनाने के लिए 1 औस ठंडे पानी में 5 बूद आर्निका टिंक्चर डाल दो।
शक्ति – 3, 30, 200, 1000