जो आहार हम, आप सभी जन खाते हैं उसमें प्रधान रूप से निम्न तत्व होते हैं :-
1. कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate)
2. प्रोटीन (Protein)
3. वसा (Fat)
4. लवण (Salts)
5. जल (Water)
6. (Vitamins)
यहाँ पर यह समझ लेना चाहिए कि इनमें से प्रथम तीन का भाग अधिक होता है और पाचन क्रिया में इन तीनों का स्वरूप परिवर्त्तित होता है, जो शरीर ग्राह्य होने पर ही शरीर द्वारा ग्रहण किया जाता है। जिस रूप में यह तत्त्व हमें मिलते हैं – हमारे शरीर में उसी रूप में आत्मसात नहीं हो सकते। अत: इन पर विशेष प्रक्रियाएँ होती हैं और तब ये परिवर्त्तित रूप में शरीर के अंग बनते हैं।
जैसे ही हम आहार (भोजन) को ग्रहण करते हैं, मुख में प्राप्त लाला-रस और उसमें पाये जाने वाले एंजाइम आहार द्रव्यों पर कार्य करने लगते हैं फिर आमाशयिक रस, पित्त, क्लोम-रस तथा आन्त्रिक रस की क्रिया उस पर होती है । कार्बोहाइड्रेट का पाचन निम्न विधान से होता है :-
स्टार्च (Starch) पर टायलिन और अमायलेज की क्रिया होती है और उससे माल्टोस बनता है जिस पर माल्टेस की क्रिया होती है इस तरह वह स्टार्च ग्लूकोज में परिवर्त्तित हो जाते हैं।
शुगर (Cane Sugar) पर इन्वरटेज की क्रिया होती है और इससे वह ग्लूकोज और फ्रुक्टोज में परिवर्त्तित हो जाती है।
लेक्टोज पर लेक्टेज की क्रिया होती है इससे वह ग्लूकोज और ग्लेक्ट्रोज में परिवर्त्तित हो जाता है।
1. इस तरह जो भी कार्बोहाइड्रेट हम ग्रहण करते हैं पाचन-क्रिया के पश्चात् अन्त में उसके तीन पदार्थ बनते हैं। (1) ग्लूकोज, (2) फ्रक्टोज, (3) ग्लेक्टोज और यह तीनों ही Monosaccharide हैं। इस रूप में ही शरीर में इनका शोषण हो जाता है। इनका शोषण आमाशय में प्राय: नहीं हो पाता अपितु लहवन्त्र की श्लेष्मिक कला में स्थित रक्तवाहिनियों से इनका शोषण होता है। शोषण के पश्चात् ग्लूकोज यकृत में जाता है। (यहाँ यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि ग्लूकोज की अपेक्षा गलेक्टोज अधिक शीघ्रता से शोषित होता है।) यकृत में ग्लूकोज पहुँचने के बाद Glycogen Enzyme से वह ग्लाइकोजेन में बदल जाता है। इस क्रिया को Glycogenesis कहते हैं। इस प्रकार कुछ ग्लूकोज यकृत में, कुछ माँसपेशियों में जमा हो जाता है। ग्लूकोज 1% मात्रा में रक्त में भ्रमण करता रहता है। जब कभी विशेष परिस्थिति में वसा (Fat) की आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती है तो यह वसा में भी परिवर्तित हो जाता है ।
2. प्रोटीन पर पेप्सीन की क्रिया होती है और उससे वे पेपटोन में बदल जाते हैं । पेपटोन पर ट्रिपसिन की क्रिया होती है, जिससे यह Polypeptide में बदल जाता है फिर Carboxypeptidase की क्रिया से Peptides और Amino acids में बदल जाते हैं। इस प्रकार प्रोटीन का रूप एमिनो एसिड हो जाता है । जिस रूप में यह शोषित हो जाता है। इसका शोषण आमाशय से प्राय: नहीं होता। लहवन्त्र के अंकुरों में (Villi) स्थित रक्त-वाहिनियों से शोषण कार्य होता है । कुछ वेजीटेबिल प्रोटीन (Vegetable Protein) का शोषण वृहदान्त्र में भी होता है।
3. वसा का पाचन क्रिया के पश्चात् फेट्टीएसिड और ग्लीसरोल में परिवर्तन हो जाता है। यह आन्त्रिक रस के कुछ क्षारीय द्रव्यों के कारण साबुन की भाँति Saponification बन जाती है। इसी अवस्था में इसका लहवन्त्र में शोषण हो जाता है। इस प्रकार पाचन एवं शोषण की प्रक्रिया होती है। इस प्रक्रिया से हमारा शरीर आहार द्वारा पोषण ग्रहण करता रहता है। इस सारी प्रक्रिया को ‘चयापचय प्रक्रिया’ (Metabolism) कहते हैं। इसमें न केवल पाचन सम्बन्धी अवयव ही भाग लेते हैं, अपितु शरीर के कुछ और भी भाग अपने स्त्रावों द्वारा उसमें सहायक होते हैं।
आहार द्वारा शरीर का पोषण (Metabolism)
जैसा कि उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि हम जिस रूप में आहार खाते हैं, हमारा शरीर उसको उस रूप में ग्रहण नहीं करता और पाचक विषयक अनेक प्रक्रियाओं के पश्चात् वह शरीर द्वारा ग्राह्म होता है। भोजन के मुख में जाते ही लाला-रस का कार्य आरम्भ हो जाता है। भोजन जब आमाशय में पहुँचता है तो आमाशयिक रस का कार्य होता है। आमाशय में यह भोजन 4 घण्टे से कुछ अधिक समय तक रहता है, फिर छोटी आंत में पहुँचता है। उसके प्रथम भाग में पित्त एवं क्लोम रस का मिलन होता है। आन्त्र रस निकलता है और इस तरह इन तीन की क्रिया उस आहार पर होती है। क्षुद्रान्त्र में उसका पाचन होता है और शोषण भी होता है। बड़ी आंत में आहार का पाचन नहीं होता। इस भाग में लहवन्त्र द्वारा बचे हुए भाग का शोषण होता है। इस भाग में जल का शोषण ही प्रधान रूप से होता है। यहाँ से शोषित भाग शरीर का अंश बन जाता है और मल भाग मलाशय में चला जाता है जहाँ से शरीर से बाहर निकल जाता है।
पाचन की इतनी प्रक्रिया ही आहार को शरीर में आत्मसात कराने वाली नहीं होती है, बल्कि इस सम्बन्ध में और अन्य कार्य भी होता है जिसकी जानकारी निम्नवत् है :-
Metabolism of Carbohydrate
जैसा कि हम आपको पहले बता चुके हैं कि कार्बोहाइड्रेट का पाचन होने के पश्चात् वह ग्लूकोज, फ्रक्टोज और ग्लेक्टोज के रूप में आन्त्रस्थ रक्त-वाहिनियों द्वारा शोषित हो जाता है। वहाँ से Portal vein के द्वारा यकृत में पहुँचता है। यकृत में सर्वप्रथम यह कार्य होता है कि वे समस्त पदार्थ ग्लूकोज बन जाते हैं। विशेष प्रक्रिया द्वारा वह ग्लूकोज यकृत में ग्लाइकोजेन में परिवर्तित हो जाता है। यकृत का एन्जाइम ग्लूकोज को ग्लायकोजीन में परिवर्तित करना है ग्लूकोज यकृत से माँसपेशियों में आता है और वहाँ पर Muscle Glycogen के रूप में जमा हो जाता है। कार्य करते समय उत्पन्न होने वाले माँसपेशी के संकोच के अन्तर्गत रासायनिक परिवर्तन में यह ग्लूकोज टूट जाता है और इसका कारण होता है (Oxidise) और उससे शक्ति उत्पन्न होती है। (यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि जब आवश्यकता पड़ती है और कार्बोहाइड्रेट से उतना ग्लूकोज नहीं पहुँचता तो प्रोटीन और वसा को भी यकृत ग्लूकोज में बदल देता है।)
यकृत की रस विशेष प्रक्रिया में पैंक्रियास से निकलने वाले एक अन्त:स्राव जिसे ‘इन्सुलिन’ कहते हैं, इसका अत्यन्त महत्व है। यहाँ पर केवल इतना समझना चाहिए कि पैंक्रियास में एक विशेष प्रकार के कोष होते हैं, जिनको (Islets of Langerhans) कहते हैं। इनसे ही इन्सुलिन नाम का अन्त:स्राव निकलता है। इन्सुलिन का प्रधान कार्य ग्लायकोजिन का निर्माण, एकत्रीकरण तथा उपभोग करना है । इसी की कमी से मधुमेह रोग हो जाया करता है इस रोग में मूत्र में चीनी निकलने लगती है।
वृक्क (Kidney) की रक्त वाहिनियों के रक्त में यदि 0.1 से 0.18 प्रतिशत शर्करा हो तो वह छनती नहीं हैं, यदि इससे अधिक हो जावे तो छन जाती है और Tubules भी उसे पूर्णतय: शोषित नहीं कर पाते। इसी के फलस्वरूप वह शर्करा मूत्र में आने लगती है। इन्सुलिन की कमी होने पर ग्लूकोज का ग्लायकोजेन में परिवर्तन और उसका यकृत में एकत्रीकरण नहीं हो पाता, इसका कारण है कि दोनों कार्यों के लिए इन्सुलिन की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है अर्थात् 0.18% से अधिक हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप वह मूत्र द्वारा बाहर निकलने लगती है और इस प्रकार के मानव को मधुमेह के रोगी के नाम से चिकित्सा जगत में जाना जाता है।
Metabolism of Fat
पाचन के पश्चात् वसा का रूपान्तर फैटीऐसिड और ग्लायसरोल में होता है । लगभग 60% वसा आन्त्रस्थ लसिका वाहिनी से (Lymphatics) द्वारा इसी रूप में शोषित होती है। 35% वसा आन्त्रस्थ रक्त वाहिनियों के द्वारा न्यूटरल फैट के रूप में शोषित होती है । शोषण के पश्चात् यह यकृत में जाती है। अगर शरीर को ग्लूकोज की आवश्यकता होती हैतो Glycerol और Neutral Fat ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाते हैं, अन्यथा वसा में ही रहते हैं।
जब कार्बोहाइड्रेट का जारण होता है तो उससे उत्पन्न ताप द्वारा वहाँ ऊतकों (Tissues) में स्थित वसा का जारण होता है और उससे शक्ति उत्पन्न होती है। वह कार्बोहाइड्रेट से उत्पन्न शक्ति से अधिक होती है।
Metabolism of Protein
प्रोटीन का पाचन होने के पश्चात् उसका अन्तिम रूप एमिनो एसिड होता है, उसी रूप में इसका शोषण होता है और यह यकृत में पहुँचता है। वहाँ पर एक एन्जाइम के कारण दो भागों में विभाजित हो जाता है :-
(अ) Nitrogenous
(ब) Non Nitrogenous
उनमें से प्रथम भाग (Nitrogenous) यूरिया में परिवर्तित हो जाता है और मूत्र द्वारा निष्कासित हो जाता है।
Non Nitrogenous भाग Glucose में बदल जाता है और Oxidised हो जाता है तथा शक्ति प्रदान करता है, Nucleoprotein भी Amino acid और Nucleic acid में टूटती है । एमिनो एसिड यकृत में जाकर यूरिया में परिवर्तित हो जाता है, Nucleic acid भी यकृत में जाकर यूरिक एसिड में बदल जाता है। इस तरह अमीनो एसिड शरीर में शक्ति देते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि आहार का पाचन के अनन्तर शरीर ग्राहय अंश बनता है, उससे शरीर में शक्ति उत्पन्न होती है। यह शरीर की वृद्धि और क्षतिपूर्ति करता है।