अनेक ग्रंथों में नीरोगी काया के लिए उपवास एवं रसाहार पर बल दिया गया है। उपवास द्वारा जहां शरीर के रोग-निवारक तंत्र को बल मिलता है, वहीं रसाहार द्वारा विभिन्न बीमारियों से बचाव करते हुए स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। उपवास को अब चिकित्सा की विधा मान ली गई है, जबकि रसाहार शरीर के अंगों को सबल एवं पुष्ट बनाने का एक सशक्त माध्यम है।
उपवास का महत्व
भौतिकवादी इस युग में उपवास का बड़ा महत्व है। इसके द्वारा अनेक रोगों को जड़ से उखाड़ फेंका जा सकता है। वस्तुत: रोग होने पर शरीर में अनेक विजातीय पदार्थ इकट्ठे हो जाते हैं, जिनसे मुक्त होने के लिए उपवास करना उपयोगी सिद्ध होता है। इस प्रकार वे दूषित पदार्थ शरीर से निकलकर शरीर को नीरोग एवं स्वस्थ बना देते हैं। उपवास के दौरान शरीर में थोड़ी निर्बलता आ सकती है, परंतु इससे रोग-निवारक तंत्र को पर्याप्त शक्ति भी प्राप्त हो जाती है।
अमेरिका के विख्यात प्राकृतिक चिकित्सक डॉ. एरनाल्ड टुरहित ने अपने अनुसंधान के आधार पर यह सिद्ध कर दिखाया कि उपवास करने से चोट तथा घाव बहुत ही तेजी से भरते हैं। उनके अनुसार, उपवास की अवधि में पाचन से अवकाश पाकर शरीर की सारी शक्ति घाव ठीक करने में लग जाती है, इसलिए प्राणी बहुत जल्दी अच्छा हो जाता है।
अमेरिका के प्राकृतिक चिकित्सक ने अपने कई मरीजों को मात्र ‘नाश्ते के उपवास’ से ठीक किया है। डॉ. डेवी के अनुसार, 50 प्रतिशत रोग-खासकर पेट की बीमारियां-सुबह के नाश्ते से ही होती हैं। वस्तुत: रात्रि में पाचन तंत्र बहुत मंद गति से कार्य करता है। सुबह तक कार्य पूरा भी नहीं हो पाता कि उस पर फिर से बोझ लाद दिया जाता है। सुबह के नाश्ते से दोपहर के भोजन तक भूख नहीं रहती। बिना पूरी तरह भूख लगे भोजन करने से मंदाग्नि अपच एवं कब्ज आदि अनेक बीमारियां पैदा होने लगती हैं।
जब ‘नाश्ते का उपवास’ ही इतना कारगर है, तो ‘पूर्ण उपवास’ की उपयोगिता अधिक लाभदायी ही होगी। इससे दमा, बवासीर, रक्तचाप, एक्जिमा, मधुमेह आदि रोग जड़ से ठीक हो सकते हैं। बुखार, चेचक, खसरा, दस्त, सर्दी-जुकाम आदि की चिकित्सा में उपवास से तुरन्त लाभ होता है।
उपवास में केवल पानी पीकर रहना होता है। स्वाद के लिए उसमें संतरे या नीबू का रस अल्प मात्रा में मिलाया जा सकता है। शरीर में आवश्यक तत्वों का संग्रह एकदम से कम न हो जाए, इसके लिए उसमें सोडा बाई कार्ब (खाने का सोडा) भी मिला सकते हैं। इससे लार टपकना, मिचली आना, बेचैनी होना आदि की संभावना कम हो जाती है और मानसिक स्वस्थता बनी रहती है।
सामान्यत: 10 दिनों के उपवास कम अवधि के माने जाते हैं। ऐसे उपवास करने से किसी प्रकार का कोई खास जोखिम उपस्थित नहीं होता। उसमें कोई विशेष सावधानी रखने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। उपवास छोड़ने के बाद 2-3 दिनों तक रसाहार, फिर क्रमानुसार फलाहार और सीमित मात्रा में आहार शुरू करना चाहिए। तदुपरांत करीब 4 दिनों के बाद सामान्य खानपान पर आया जा सकता है। उपवास और रसाहार के साथ-साथ यदि शरीर की सफाई के प्रयोग भी किए जाएं, तो आशातीत लाभ होते हैं।
कुछ पुराने और असाध्य रोगों में 10 दिन से अधिक अवधि तक उपवास करना सुरक्षापूर्ण है। यदि विधिपूर्वक उपवास करने के बाद समझदारी के साथ नियमबद्ध रीति से धीरे-धीरे खानपान प्रारंभ किया जाए, तो अधिकांशत: सभी रोगों पर नियन्त्रण प्राप्त किया जा सकता है। उपवास छोड़ने के बाद खानपान शुरू करने में तनिक भी जल्दबाजी न करें। यदि इस प्रकार विवेक-बुद्धि का उपयोग न किया जाए, तो दीर्घकालीन उपवास खतरनाक सिद्ध हो सकते हैं।
शरीर में ऐसी प्राकृतिक शक्ति उपस्थित है, जो उपवास के दौरान अपने लिए आवश्यक तत्व स्वयं ही बना लेती है। उपवास के दौरान एनिमा, साधारण गरम पानी का स्नान अथवा स्पंज करना आवश्यक होता है। यदि संभव हो, तो प्रतिदिन कुछ देर के लिए सूर्य-स्नान तथा हल्के हाथों से पूरे शरीर की मालिश भी करनी चाहिए। इससे भी रोगों को दूर करने में सहायता मिलती है। लगभग 10 दिनों के उपवास के बाद यदि उतने ही दिनों तक रसाहार पर निर्भर रहा जाए, तो रोगमुक्ति सहज ही हो जाती है।