व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग प्रकृति
(1) मलद्वार में लकवे-की-सी कमजोरी
(2) मूत्राशय में पक्षाघात की-सी कमजोरी
(3) शोथग्रस्त त्वचा, जिह्मा, गुह्य-द्वार, जरायु या फोड़े का कड़ा पड़ जाने की तरफ़ रुझान (कैंसर)
(4) टांसिल, स्तन आदि ग्रन्थियों का कड़ा पड़ जाना
(5) वृद्ध पुरुषों की खांसी
लक्षणों में कमी
(i) सिर-दर्द में गर्मी से कमी
लक्षणों में वृद्धि
(i) ठंड से रोग में वृद्धि (सिर दर्द को छोड़ कर क्योंकि सिर दर्द गर्मी से कम हो जाती है)
(ii) निद्रा में रोग का बढ़ जाना
(iii) दाईं तरफ लेटने से रोग में वृद्धि
(1) मल-द्वार में लकवे की-सी कमजोरी (दस्त के लिये भी जोर लगाना, सख्त कब्ज़) – एलूमेन औषधि में मल-द्वार में ऐसी कमजोरी होती हैं मानों पक्षाघात (Paralysis), लकवा हो गया हो। गुदा की क्रियाशीलता समाप्त हो जाने के कारण, मल गुदा में चिपट जाता है। कोलन में से मल निकलता ही नहीं। जो मल निकलता है वह अत्यन्त कठोर, सूखा हुआ, पत्थर की तरह गांठों वाला होता है। मल सप्ताह में एक बार या दो बार निकलता है।
(2) मूत्राशय में लकवे, पक्षाघात की-सी कमज़ोरी – जैसे मल-द्वार शिथिल पड़ जाता है, वैसे मूत्राशय में भयंकर शिथिलता आ जाती है। मूत्र बड़ी कठिनाई से निकलता है। पेशाब कर लेने के बाद भी मूत्राशय अधभरा ही रह जाता है। पहले तो मूत्र का प्रवाह शुरू होने में ही बहुत देर लग जाती है, और जब मूत्र आना प्रारंभ होता हैं, तो मूत्र-नली से नीचे सीधी एक धार में गिरता है, वेग से जैसा आगे की तरफ गिरना चाहिये वैसा नहीं गिरता। इस का कारण मूत्राशय की प्रणाली का पक्षाघात अर्थात् लकवे की-सी अवस्था का होना है जिस से मूत्राशय मूत्र के वेग को आगे की तरफ नहीं धकेल पाता। इसमें एलूमेन औषधि लाभ करता है।
(3) शोथग्रस्त त्वचा, जिह्वा, गुह्य-द्वार, जरायु या फोड़े का कड़ा पड़ जाने की तरफ रुझान जिससे कैंसर बनता है – एलूमेन औषधि में त्वचा के कड़ा पड़ जाने (Induration) की प्रवृत्ति है। जहाँ त्वचा में शोथ होगी वहां वह कड़ी पड़ जायगी। जिन औषधियों में भी त्वचा के कड़ा पड़ जाने की प्रवृत्ति पायी जाती है, वहां कम-अधिक रूप में कैंसर हो जाया करता है क्योंकि कैंसर का मुख्य आधार कड़ेपन की प्रवृत्ति है। जब जख्म कड़ा पड़ने लगे तो समझना चाहिये कि वह कैंसर में परिणत हो सकता है। यह कड़ापन बढ़ता-बढ़ता कैंसर बन जाता है।
ऐसे जख्म त्वचा पर कहीं भी हो सकते हैं, जिह्वा पर, गुह्य-द्वार में, जरायु में हो सकते हैं। इनका शुरू में ही उपचार एलूमेन द्वारा होने से रोगी कैंसर से बच जाता है।
(4) टांसिल, स्तन आदि ग्रन्थियों का कड़ा पड़ जाना – जैसे त्वचा में या जिह्वा आदि में कड़ापन आ जाता है, वैसे शरीर की ग्रन्थियों में – टांसिल, स्तन आदि में-भी ये ग्रन्थियां गोली की तरह कड़ी पड़ जाती हैं। यह प्रवृत्ति टांसिलों में विशेष रूप से पायी जाती है। जिन लोगों की ठंड सीधी टांसिल में बैठ जाती है, उसे कड़ा कर देती है, उनके रोग एलूमेन ठीक कर देता है यह स्मरण रखना चाहिये कि टांसिल के कड़ा होने की प्रवृत्ति जैसे एलूमेन में पायी जाती है, वैसे ही यह प्रवृत्ति बैराइटा कार्ब में भी पायी जाती है। कड़े टांसिल में बैराइटा कार्ब भी उत्तम औषधि है।
(5) वृद्ध पुरुषों की खाँसी – जिन वृद्धों की छाती में कफ बैठ जाता है, कठिनाई से निकलता है, लम्बी-लम्बी तार से निकलता है, उसे एलूमेन ठीक कर देता है। यह लक्षण एन्टिम टार्ट में भी है।
(6) शक्ति तथा प्रकृति – 30, 200 या इससे भी ऊँची (यह दीर्घकालिक एण्टी-सोरिक दवा है। औषधि ‘सर्द’- प्रकृति के लिये है)