लक्षण तथा मुख्य-रोग और प्रकृति
(1) जीवन से निराशा, मरने की या आत्मघात करने की इच्छा
(2) इस प्रकार की निराशा का कारण गृह-कलह, व्यापार-हानि, शोक आदि हो सकता है
(3) आतशक या पारा-दोष-जनित टीबिया या अन्य हड्डियों का क्षय तथा उनमें दर्द
(4) एक के दो, या वस्तु का सिर्फ नीचे का हिस्सा दीखना, ऊपर का न दीखना
(5) पोतों का सूखता जाना या बड़े लोगों के पोतों का सख्त हो जाना
(6) शरीर की ग्रन्थियों के शोथ को दूर करता है।
(7) ब्लड प्रेशर की औषधि है।
लक्षणों में कमी
(i) ठंडी, खुली हवा पसन्द करना
(ii) ठंडे पानी से स्नान पसन्द करना
(iii) गर्म हो जाने से रोग में कमी
(iv) घूमने से रोग में कमी
लक्षणों में वृद्धि
(i) सूर्यास्त से सूर्योदय तक
(ii) मानसिक क्षोभ से वृद्धि
(iii) निराशाजनक घरेलू मामलों से रोग बढ़ना
(iv) शीत-ऋतु में रोग की वृद्धि
(1) जीवन से निराशा, मरने की या आत्मघात करने की इच्छा – मनुष्य में उसके आन्तरिक-जीवन को प्रकट करने वाले मन तथा हृदय-ये दो अंग हैं। मन उसके मानसिक-जीवन को सूचित करता है, हृदय उसके हार्दिक-जीवन को सूचित करता है। मानसिक-जीवन का अर्थ है -चिंतन, बुद्धि आदि; तथा हार्दिक-जीवन का अर्थ है -उसका जीवन के प्रति प्रेम, उसके जीवन के प्रति भाव आदि। कभी-कभी मनुष्य ऐसी परिस्थितियों में पड़ जाता है जबकि मानसिक शक्ति द्वारा यह जानते हुए भी कि वह जो कुछ अनुभव कर रहा है वह ठीक नहीं है, तब भी उसके हार्दिक-भाव इतने बिगड़ जाते हैं कि वह जीवन के प्रति निराशा की दृष्टि से देखने लगता है, और यह निराशा इस हद तक पहुंच जाती है कि उसमें जीने की चाह भी नहीं रहती, वह मरना चाहता है, कभी-कभी आत्मघात की उत्कट-इच्छा उस पर सवार हो जाती है और अनेक बार ऐसे रोगी आत्मघात कर बैठते हैं। उसकी बुद्धि इतनी विक्षिप्त नहीं होती जितने उसके हार्दिक-भाव विक्षिप्त हो जाते हैं, और वह बैठा-बैठा आत्मघात के उपाय सोचा करता है। ऐसी हार्दिक-अवस्था में जब उसकी जीवन के प्रति चाह ही मिट जाती है तब ओरम मेटालिकम औषधि हृदय के आत्मघात के विचारों को एकदम बदल देती है।
(2) इस प्रकार की निराशा का कारण गृह-कलह, व्यापार में हानि, शोक-सन्ताप आदि हो सकता है – मनुष्य ऐसी विकट-स्थिति में जब वह जीना ही नहीं चाहता है। इसका कारण गृह-कलह हो सकता है, ऐसा कलह जिसमें मनुष्य इतना निराश हो जाय कि मरना पसन्द करे, इसका कारण व्यापार में ऐसी हानि हो सकती है जिसे मनुष्य बर्दाश्त न कर सके और मरने के विचार उस पर हावी हो जायें, इसका कारण पुत्र-वियोग, पति-वियोग, पत्नी-वियोग कुछ भी हो सकता है। उस समय वह निराशा के विचारों में डूबा रहता है, अकेला बैठ उन्हीं विचारों में लीन रहता है। वह सोचता है कि जिस स्थिति में वह पड़ गया है उसमें उसके लिये जीवन भार है। छोटी-छोटी बात से वह चिढ़ने लगता है, झट-से गुस्से से भड़क उठता है, एकदम उत्तेजित हो जाता है। यह निराशा बढ़ती-बढ़ती पागलपन का रूप धारण कर सकती है। जब रोगी इस हालत में पहुंच जाता है कि इन विचारों की पकड़ में अकेला बैठा किसी से बोलता तक नहीं, अगर उसे इस मानसिक-स्थिति से निकालने के लिये कुछ कहा जाय तो एकदम भड़क उठता है, तब ओरम मेटालिकम दवा हृदय में संतुलन ला देती है। .
ऑरम, नेजा, आर्सेनिक, नक्स, सिमिसिफ़्यूगा, इग्नेशिया, लैकेसिस तथा एसिड फॉस में मरने की इच्छा के संबंध में आपसी तुलना – मरने की इच्छा उक्त सभी औषधियों में पायी जाती है परन्तु इनमें भेद है। अॉरम में यह इच्छा घरेलू कारणों या आतशक और पारा-दोष-ग्रस्त होने के कारण होती है, नेजा में दिल की बीमारी के कारण होती है, आर्सेनिक और नक्स में मरने की इच्छा रहती है परन्तु रोगी मरने से डरता है, किसी के प्रेम से निराशा होने के कारण मरने की इच्छा हो तो सिमि, इग्ने, लैक, एसिड फॉस उपयुक्त हैं और अगर किसी गंभीर शोक के कारण वियोग के कारण मरने की इच्छा हो तो कॉस्टिकम, कोलचिकम, इग्नेशिया की तरफ ध्यान जाना चाहिये। इस सबके अन्य लक्षणों की तरफ भी विचार करना उचित है।
(3) आतशक या पारा-दोष-जनित टीबिया, या कान, नाक, तालु आदि अन्य हड्डियों का क्षय तथा उनमें दर्द – जिन लोगों को आतशक हो जाता हैं एलोपैथी में उनका इलाज मर्करी से होता है। अन्य रोगों में भी मर्करी दिया जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि रोगी की आतशक की बीमारी के अतिरिक्त मर्करी-जनित रोग भी हो जाता है। आतशक तथा मर्करी-जनित-रोग से भी रोगी हताश, निराश, उदास रहने लगता है। आतशक के रोग से, तथा पारे के इलाज से उसे घुटने के नीचे की हड्डी ‘टीबिया’ में शोथ, दर्द होता है, कान, नाक, तालु की हड्डियां भी सड़ने लगती हैं। आतशक से जिगर पर भी प्रभाव प्रड़ता है, हृदय पर आतशकजनित-गठिये का असर होने लगता है। इन रोगों में जोड़ों में दर्द, गठिये का दर्द, जोड़ों की हड्डियों में शोथ, शरीर की ग्रन्थियों में शोथ आदि उत्पन्न हो जाते हैं जिनको ओरम मेटालिकम दूर कर देता है।
(4) एक के दो, या वस्तु का सिर्फ नीचे का हिस्सा दीखना – ओरम मेटालिकम औषधि का विशिष्ट-लक्षण यह है कि एक वस्तु की जगह दो दिखाई देती हैं। ऐसा तो कई औषधियों में है, ऐसा मोतियाबिन्द में भी होता है। परन्तु वस्तु का सिर्फ नीचे का हिस्सा दीखना, ऊपर का न दीखना इसका विशिष्ट-लक्षण है। ऐसिड म्यूर में नीचे या ऊपर कोई भी हिस्सा दिखाई दे सकता है। सिर्फ बायीं तरफ का हिस्सा दीखना, दायीं तरफ का न दीखना कल्केरिया, लिथियम तथा लाइकोपोडियम में पाया जाता है।
(5) पोतो का सूखता जाना या बड़े लोगों के पोतो का सख्त हो जाना – ओरम मेटालिकम औषधि का यह भी विशिष्ट-लक्षण है कि बच्चों के अण्डकोश सूखते जाते हैं, या बड़ों के फूल जाते हैं या सख्त हो जाते है। बच्चों के सूखने में आयोडियम भी औषधि है, परन्तु उसमें खाने की तीव्र-इच्छा बनी रहती है, और सिर्फ पोते ही नहीं सारा शरीर सूखता जाता है।
(6) शरीर की ग्रन्थियों के शोथ को दूर करता है – शरीर के भिन्न-भिन्न स्थानों में भिन्न-भिन्न ग्रंथियां हैं। गले में, बाजुओं की कोख में, पेट में, जांघों के जोड़ में, स्त्री के स्तनों में ग्रन्थियां हैं। अण्डकोश तथा डिम्बकोश भी तो ग्रन्थियां ही है। ओरम मेटालिकम औषधि का इन सब ग्रन्थियों पर आश्चर्यजनक प्रभाव है। इन ग्रन्थियों के शोथ को ओरम मेटालिकम दूर करता है।
(9) हाई-ब्लड-प्रेशर – रुधिर का एक स्थान पर संचय ओरम मेटालिकम औषधि का विशेष-लक्षण है। इसीलिये हाई-ब्लड-प्रेशर में ओरम 30 की मात्रा रोग को ठीक कर देती है। हाई-ब्लड-प्रेशर में बैराइटा म्यूर 6x, ग्लोनॉयन और डिजिटेलिस भी ध्यान देने योग्य है।
ओरम मेटालिकम औषधि के अन्य लक्षण
(i) रात में रोग की वृद्धि – पारे के सभी रोगों की तरह इसमें तकलीफ शाम को शुरू होकर सारी रात रहती है। दर्द घनघोर होता है, हड्डियां ऐसा दर्द करती हैं मानो टूट जायेंगी, बुखार में नहीं परन्तु आशतक के पुराने मरीजों में। हड्डी के परिवेष्टन में ऐसा दर्द होता है मानो कोई चाकू से छील रहा हो। जोड़ों में रात को दर्द होता है। रोगी दर्द के मारे बिस्तर में टिक नहीं सकता, उसका जिगर बढ़ जाता है, जोड़ सूज जाते हैं, रात को दर्द होता है। ऐसे रोगी के लिये यह लाभप्रद है।
(ii) रोगी खुली हवा चाहता है – रोगी पल्सेटिला की तरह खुली हवा चाहता है। अन्तर यह है कि पल्स का रोगी कोमल, मृदु स्वभाव का होता है, कहने से बात मान जाता है, ओरम का पल्स से उल्टा स्वभाव होता है – चिड़चिड़ा, क्रोधी। यद्यपि वह खुली हवा पसन्द करता है परन्तु सिर-दर्द में सिर को लपेट लेना चाहता है, फॉसफोरस से उल्टा क्योंकि फॉसफोरस शरीर को लपेटना और सिर को खुला रखना चाहता है, आर्सेनिक की तरह। हमने अभी कहा कि ओरम, पल्सेटिला की तरह खुली हवा पसन्द करता है, परन्तु इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि वह खुली हवा पसन्द करते हुए भी कपड़ा उघाड़ना पसन्द नहीं करता, कपड़ा लपेटे रखना चाहता है। दमे में भी ओरम मेटालिकम का रोगी खुली हवा चाहता है, गर्मी से उसके दमे में वृद्धि हो जाती है। ठंडे पानी से स्नान करने से उसके बहुत-से लक्षण मिट जाते हैं। जब ओरम मेटालिकम का रोगी उत्तेजना से परेशान हो, उसकी धमनिया स्पन्दन कर रही हों, तब वह दरवाजे और खिड़कियां खुलवा देना चाहता है, खुली हवा चाहता है, शरीर का कपड़ा परे फेंक देना चाहता है, यद्यपि अन्य अवसरों पर वह कपड़े से लिपटा रहना पसन्द करता है। स्त्रियों को मासिक-धर्म के बन्द होने पर जैसी तरेरें आती हैं वैसी तरेरें ओरम मेटालिकम में भी पायी जाती है। इन तरेरों के बाद पसीना आता है, और कभी-कभी सर्दी लगने लगती है। आँख के दर्द में भी रोगी ठंडा पानी पसन्द करता है।
शक्ति तथा प्रकृति – 6, 30, 200 (औषधि ‘गर्म’ प्रकृति को लिये है परन्तु कई बातों में ‘सर्द’ प्रकृति के लिये भी है)