Urinary System के अन्तर्गत दो वृक्क (Kidney), दो मूत्र प्रणालियाँ (Ureters), मूत्राशय (Bladder) आदि अंग सम्मिलित हैं किन्तु त्यागन संस्थान के अन्तर्गत त्वचा, नख और केश (बाल) इत्यादि की भी गणना कर ली जाती है।
रक्त जब घूमता हुआ वृक्क (किडनी) में पहुँचता है तो किडनी अनावश्यक वस्तुओं को रक्त से पृथक् (अलग) कर लेता है और जलीय तरल के रूप में जिसे साधारण बोल-चाल की भाषा में ‘मूत्र’ कहा जाता है, को मूत्राशय (Bladder) में धकेल देता है। इस मूत्राशय से मूत्र प्रणालियों द्वारा मूत्र शरीर से बाहर निकल जाता है। इस प्रकार यह ‘मूत्र वाहक संस्थान’ मूत्र को शरीर से बाहर निकालकर हमारे शरीर की शुद्धि करता रहता है।
वृक्क की बनावट (Structure of Kidneys)
मूत्र वाहक संस्थान का मुख्य अवयव किडनी है। इनको उर्दू में गुर्दा तथा हिंदी में वृक्क के नाम से जाना जाता है। किडनी संख्या में दो होते हैं। एक बाईं तरफ तथा दूसरा दाँयी तरफ । किडनी की आकृति हरी खाने वाली सब्जी ‘सेम’ के बीज जैसी होती है। ये रीढ़ (Vertebral Column) के दाहिनी तथा बाँयी ओर बारहवीं पसली के सामने रहते हैं। इनकी शक्ल की ‘लोबिये’ के बीज से भी तुलना की जा सकती है। यह 4 इंच लम्बा, ढाई इंच चौड़ा और 1 इंच मोटा होता है। इसका भार लगभग 2 छटांक होता है। इसका रंग कुछ बैंगनी सा होता है। दाहिना किडनी जरा नीचे तथा बाँया किडनी जरा ऊपर होता है। किडनी के ऊपर के सिरे के ऊपर टोपी की तरह एक प्रणाली विहीन ग्रन्थि होती है जिसे ‘उपवृक्क’ (Adrenal) कहते हैं। इस उपवृक्क से एक अमूल्य औषधि Adrenit Hydrochloride प्राप्त होती है । दाहिने किडनी की स्थिति बाँये किडनी से इसलिए नीचे है, क्योंकि दाहिनी तरफ यकृत (Liver) अधिक स्थान को घेर कर रहता है।
वृक्क में एक छिद्र होता है जहाँ से धमनी तथा वात-वाहिनियाँ प्रवेश करती हैं। धमनी द्वारा रक्त किडनी में प्रवेश करता है।
किडनी की रचना में अन्दर बहुत सूक्ष्म फुहारे की तरह की रचना है, इनको बोमेन कैप्सूल (Bowman’s Capsule) कहते हैं । ये अंगुलमात्र स्थान में 90 होते हैं। इन स्रोतों में टयूबवैल होते हैं और Glomeruli होते हैं। जो रक्तवाहिनी वृक्क में प्रवेश करती है, उसकी शाखा-प्रशाखा होती हुई सूक्ष्म रचना बन जाती है, उससे रक्त का छानने का कार्य (Glomeruli) होता है। बाद में Tubes द्वारा कुछ जलीयांश का पुनः शोषण होता है। रक्त में से यूरिया, यूरिक एसिड और सोडियम आदि दूषित पदार्थ निकलते हैं। रक्त से छना हुआ मूत्र इन दूषित पदार्थों से युक्त होता है । किडनी से यह सब एक नलिका द्वारा जो ‘गवीनी’ (Ureter) कहलाती है, मूत्राशय में चला जाता है। दोनों वृक्कों में एक-एक गवीनी जाती है। .
वस्तुत: किडनी शरीर के शोधक यन्त्र हैं। यह मूत्र को बाहर निकालकर शरीर को शुद्ध करते रहते हैं। इनका मुख्य कार्य रक्त से यूरिया, यूरिकाम्ल और सोडियम आदि बेकार वस्तुओं से रक्त को छानकर अलग कर लेना है। यह छनी हुई व्यर्थ वस्तु ही मूत्र (Urine) है। किडनी बूंद-बूंद करके मूत्र बनाते हैं और मूत्राशय में भेजते रहते हैं।
नोट – इस बात का सदैव धयान रखें कि मूत्र अवयव वास्तव में किडनी के अंदर तैयार नहीं होते, बल्कि मूत्र के अवयव शरीर के दुसरे भागों में बनते हैं। किडनी तो इन्हे रक्त से अलग करके मूत्र द्वारा बाहर निकाल देते हैं।