व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग प्रकृति | लक्षणों में कमी |
शरीर में कहीं भी पस बन जाना | ठंडे पानी में स्नान से कमी |
जहां कैलकेरिया और सल्फर दोनों के लक्षण मिलते हों वहां यह दी जाती है | खुली हवा से रोग में कमी |
कलकेरिया सल्फ और हिपर सल्फ की एक-दूसरे के साथ तुलना | फोड़े-फुन्सी पर सेक से कमी |
डॉ० नैशका ब्राइट्स डिजीज में अनुभव | शरीर पर कपड़ा न चाहना |
डॉ० केन्ट का बायोकैमिक औषधियों के विषय में अनुभव-उच्च-शक्ति लाभप्रद | लक्षणों में वृद्धि |
स्पर्श न सह सकना | |
नमीदार ठडी हवा से वृद्धि |
(1) शरीर में कहीं भी पस बन जाना – शरीर के किसी भाग में भी पस बन जानाकैल्केरिया सल्फ़ूरिका औषधि का मुख्य निर्देशक-लक्षण है। जो घाव फूट जाय, उसमें से लगातार पीला पस निकलता रहे, उसके भरने में देर लगे, तब इस औषधि से लाभ होगा। इस दृष्टि से इसके लक्षण डॉ० कैन्ट के अनुसार पाइरोजेन से मिलते-जुलते हैं। डॉ० क्लार्क का कहना है जब पस अपना मार्ग बनाकर निकलने लगे तब इसका क्षेत्र आता है।
(2) जहां कैलकेरिया और सल्फर दोनों के लक्षण मिलते हों – यह औषधि कैलकेरिया तथा सल्फर के मिलने से बनी है, इसलिये जहां कैलकेरिया तथा सल्फर दोनों के लक्षण मिले-जुले पाये जायें, और चिकित्सक निर्णय न कर सके कि दोनों में से कौन-सी औषधि निर्दिष्ट है, वहां इसका प्रयोग किया जाता है। कैलकेरिया सल्फ़ शुस्लर की 12 टिश्यू रेमेडीज में से एक है, परन्तु डॉ० क्लार्क के अनुसार शुस्लर ने आगे चलकर इसे अपनी 12 दवाइयों में से इस आधार पर निकाल दिया था कि शरीर के टिश्यू में यह क्षार नहीं पाया जाता। इसलिये जिन रोगों में वह कैलकेरिया सल्फ़ देते थे उनमें साइलीशिया तथा नैट्रम फीस देने लगे। परन्तु होम्योपैथी में इस औषधि का अपना स्थान है, और जैसा ऊपर कहा गया है, जब पस सूखने में न आता हो, तब शक्तिकृत कैलकेरिया सल्फ़ लाभ करता है।
(3) कैलकेरिया सल्फ और हिपर सल्फ की तुलना – यह औषधि हिपर सल्फ़ से बहुत मिलती-जुलती है। कैलकेरिया सल्फ़ और हिपर सल्फ दोनों भिन्न-भिन्न प्रकार के कैलकेरिया के सल्फर के साथ मिलाने से बने हैं, इसलिये इनकी क्रिया लगभग समान है। भेद यह है कि फोड़ा पका कर फोड़ने में जिस हिपर सल्फ उपयोगी है उस प्रकार कैलकेरिया सल्फ नहीं, किन्तु फोड़ा जब फूट जाता है, तब उसमें पस की अधिकता और पस रोकने के लिये जिस प्रकार कैलकेरिया सल्फ़ उपयोगी है उस प्रकार हिपर सल्फ़ नहीं। इसलिये हिपर से जब फोड़ा फूट जाय, उसके बाद कैलकेरिया सल्फ़ लाभ करता है। ट्युबकुलर फोड़ों में भी कैलकेरिया सल्फ़ लाभ देता है। दोनों स्पर्श तथा हवा को सहन नहीं करते, परन्तु हिपर खुश्क, ठंडी हवा को बर्दाश्त नहीं करता, परन्तु नमीदार हवा भी नहीं चाहता। हिपर के पांव में ठंडा पसीना आता है, कैलकेरिया सल्फ़ के पांव सल्फर की तरह जलते हैं। हिपर यद्यपि अपने घाव पर स्पर्श की असहनशीलता के कारण पांवों पर कपड़ा बर्दाश्त नहीं कर सकता, तो भी शरीर को ढके रखना चाहता है, परन्तु कैलकेरिया सल्फ़ तो कैम्फ़र की तरह शरीर पर कपड़ा बर्दाश्त ही नहीं कर सकता, उसे उतार फेंकता है।
(4) डॉ० नैश का ब्राइट्स डिजीज में अनुभव – डॉ० नैश लिखते हैं कि उनके पास एक रोगी को लाया गया जिसके गुर्दे के प्रदेश में दिन-रात दर्द रहता था। उसके पेशाब में पस की बहुत-सी मात्रा निकली और यह पस कई दिन तक जारी रहा। डॉक्टरों ने निर्णय दिया कि यह ब्राइट्स डिजीज है। डॉ० नैश ने पस निकलने के लक्षण पर उसे कैलकेरिया सल्फ दिया और रोगी को लाभ हुआ। अगर शरीर के किसी भाग में से पस बहता हो, पीला, थक्केदार, ठीक न होता हो-चाहे वह प्रदर हो, मूत्राशय हो, तब इस औषधि से अवश्य लाभ होगा।
(5) डॉ० कैन्ट का बायोकैमिक औषधियों के विषय में अनुभव – उच्च शक्ति लाभप्रद है – डॉ० कैन्ट का कथन है कि देर तक वे बायोकैमिक का 12 शक्ति में प्रयोग करते रहे, फिर 30 शक्ति में और बाद को 200 शक्ति में प्रयोग करते रहे। उनका कथन है कि ये औषधियां 200 शक्ति के ऊपर भी अच्छा काम करती है। उनका यह भी कथन है कि यत्नपूर्वक चुनी हुई दवाएं, अगर उनका क्षेत्र गहरा नहीं है, तो वे थोड़ी देर ही काम करती हैं। रोग को जड़ से निर्मूल करने के लिये गहरा तथा दीर्घकालिका कार्य करनेवाली औषधियों का प्रयोग करना चाहिए। ऐसी औषधियां ऐन्टी-सीरिक, ऐन्टी-साइकोटिक तथा ऐनटी-सिफलिटिक है। चिकित्सक को रोग को देखकर यह निर्णय करना होता है कि इन तीनों प्रकार में से किस औषधि का निर्वाचन करे। प्राय: अनेक रोगी सोरा-दोष से पीड़ित होते हैं इसलिये ऐन्टी-सोरिक दवाओं का अधिक प्रयोग करना पड़ता है। सल्फर, सोरिनम ऐन्टी-सीरिक दवायें ही हैं। कैलकेरिया सल्फ; की भी इन्हीं ऐन्टी-सोरिक दवाओं में गणना है।
शक्ति तथा प्रकृति – 3x, 6x, 12x, 30, 200 (औषधि ‘गर्म-Hot–प्रकृति के लिये है)