विभिन्न कारणों से गले में छोटी-बड़ी अनेक प्रकार की बीमारियाँ हो जाया करती हैं। अन्न-नली, श्वास-नली, तालु-मूल, गल-कोष, उप-जिह्वा-ये सभी गले के ही विभिन्न भाग हैं । गले की दुखन में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभकर सिद्ध होती हैं
कालि बाइक्रोम 3x, 30 – गले की दुखन में इस औषध को ‘स्पेसिफिक’ माना जाता है। गल-कोष से लिपटने वाला तारयुक्त श्लेष्मा, रोगी जिसे खुरच कर बाहर निकालने का प्रयत्न करता हो तथा कर्ण-नली में दर्द – इन लक्षणों में यह औषध बहुत लाभ करती हैं ।
अमोनिया-म्यूर 30 – गले में कफ इस तरह चिपटा हो कि खुरचने तथा टुकड़े-टुकड़े करने पर भी न निकले तो इसके प्रयोग से लाभ होता है ।
कालि-म्यूर 12x, 30 – गले में सफेद श्लैष्मा हो, टॉन्सिल का सूज जाना, उन पर भूरे रंग के दाग अथवा जख्मों का हो जाना एवं गले के समीप की ग्रन्थियों का सूज जाना – इन सब लक्षणों में यह औषध लाभ करती है। यदि पेट की गड़बड़ी के कारण यह रोग उत्पन्न हुआ हो तो इसे सर्वोत्तम औषध समझना चाहिए।
बेलाडोना 3, 30 – गले में खुश्की, गले का भीतर से शीशे की तरह चमकना, मुख-गहवर में सूजन, टॉन्सिल का सूजकर लाल हो जाना, रोगी द्वारा हर समय निगलने की हरकत करते रहना अथवा उसे निगलने की इच्छा होना, रोग का विशेष प्रकोप दायीं ओर को होना, किसी वस्तु को निगलते समय गले का रुँधा हुआ-सा प्रतीत होना, द्रव तथा ठोस पदार्थों को गल-कोष द्वारा सहन न कर पाना, अत: कभी-कभी उनका नाक से निकल पड़ना, जुकाम के कारण गले का दुखना, गले में खुश्की तथा रोग का तीव्रता से बढ़ते जाना – इन लक्षणों के स्पष्ट होने पर यह औषध अत्युत्तम लाभ करती है। इस औषध का विशिष्ट लक्षण गले की दुखन के समय पानी पीने में अरुचि होना है । इसमें गले का दर्द दायें कान तक अनुभव होता है ।
सिस्टस 3, 30 – उक्त लक्षणों के समान ही इस औषध में भी गले में खुश्की का अनुभव होता है, परन्तु इसके रोगी को ऐसा प्रतीत होता है, जैसे गले में रेत का कण अटका हुआ हो, अत: वह खुश्की को दूर करने के लिए पानी पीता है।
मर्क-सोल 30 – गले में खुश्की और अत्यधिक दर्द, रोगी का लगातार निगलते रहना, गले में सूजन, टॉन्सिल का भीतर-बाहर से सूज जाना, गला भीतर से लाल और सूजा हुआ होना तथा मुँह एवं श्वास से अत्यधिक दुर्गन्ध आना – इन लक्षणों में लाभकारी है।
मर्क-आयोडाइड 3 – गले में गाढ़ा तथा चिपटने वाला थूक जमा हो जाना, रोग के पुराने हो जाने पर सूजन में कमी, परन्तु गाढ़े कफ की अधिकता-इन लक्षणों में हितकर है ।
गुआएकम Q, 3, 6 – यह गला दुखने की ‘स्पेसिफिक औषध’ मानी जाती है। गले का इतना अधिक दुखना कि रोगी वात करते समय अपने गले को पकड़े रहे, गले में मिर्च लगने जैसी जलन, गले का इतना सूख जाना कि कुछ भी निगलने के लिए पानी का सहारा लेना पड़े, रोग का प्रकोप गले के दायें हिस्से में होना तथा टॉन्सिलों का सूज जाना – इन सब लक्षणों में हितकर है।
पल्सेटिला 3, 6 – उक्त लक्षणों के साथ ही, इसमें यह अन्तर होता है कि रोगी का गला तो सूखा रहता है, परन्तु उसे प्यास नहीं लगती । इस औषध के रोगी के गले की दुखन में रक्त-वाहिनियों की हालत शिरा-शोथ जैसी हो जाती है तथा गला नीला-सा पड़ जाता है।
फाइटोलैक्का 3 – गले की श्लैष्मिक -झिल्ली का काला अथवा राख के रंग का हो जाना, निगलते समय जीभ की जड़ में दर्द, इसके साथ ही पीठ तथा अन्य अंगों के दर्द के लक्षणों में उपयोगी है। इस औषध का रोगी अपने गले में फंसे कफ को निकालने का निरन्तर प्रयास करता रहता है । दर्द प्राय: दायीं ओर को होता है, जो दाँये कान तक पहुँचता है। गले में दुखन, बेचैनी, कमजोरी, गले में थक्का पड़ जाना तथा गरम पानी न पी सकना – इन सब लक्षणों में यह औषध विशेष लाभकारी है ।
लैकेसिस 30 – गले में कफ का थक्का अटका हुआ सा प्रतीत होना-जो पानी पीते समय अथवा भोजन निगलते समय नीचे उतरने लगता हो, परन्तु फिर तुरन्त ही ऊपर आ अटकता हो । खाली निगलने का प्रयास करने पर भी दर्द न होना, गले को बाहर से छूने पर दुखन का अनुभव तथा भीतर से वह नीला-लाल दिखायी देना, स्पर्श-असहिष्णुता तथा आवश्यकता से अधिक दर्द का अनुभव होना एवं नींद से जगने के बाद अथवा नींद के बीच में ही जग जाने पर रोग का बढ़ जाना-इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।
हिपर-सल्फर 3, 6, 30 – गले में खपच्ची लगने जैसी दुखन अथवा गले में किसी ढेले के अटके होने जैसा अनुभव तथा गले में पस पड़ जाना – इन सब लक्षणों में उपयोगी है।
कैन्थरिस 6, 30 – गले में आग लगी होने जैसा अनुभव, गले के पिछले भाग में दर्द, गले के शोथ के प्रारम्भ अथवा समाप्ति पर जलन तथा दर्द के लक्षणों में बहुत लाभकारी है ।
एपिस 6, 30 – यदि गले में चुभन जैसे दर्द के साथ भीतर सूजन हो, तब इसका प्रयोग हितकर रहता है ।
अर्जेण्टम-नाइट्रिकम 6, 30 – निगलते समय गले में खपच्ची जैसी अनुभूति होना, गले में चिपटने वाला श्लेष्मा तथा गला बैठ जाना – इन लक्षणों में दें ।
कालि-कार्ब 6, 30 – गले में मछली की हड्डी अटक जाने जैसी अनुभूति साथ ही गले से श्लेष्मा निकालने के लिए कठिन परिश्रम करना-इन लक्षणों में दें ।
नाइट्रिक-एसिड 6, 30 – गले में खपच्ची अटकने जैसी अनुभूति तथा गले में जख्म हो जाना-इन लक्षणों में प्रयोग करें ।
नेट्रम-म्यूर 30 – गले में शोथ, जलन तथा बाल-अटका होने जैसी अनुभूति के लक्षणों में हितकर है ।
नक्स-वोमिका 30 – सिगरेट अथवा शराब पीने वालों एवं व्याख्यान-दाताओं के गले की दुखन में, जबकि गले में अटके हुए कफ को खुरच-खुरच कर निकालने का प्रयत्न करना पड़ता हो – यह औषध लाभकारी है ।
ऐलूमिना 6, 30 – गायकों तथा व्याख्यान-दाताओं के गले की दुखन में यह औषध भी लाभ करती है ।
फेरम फॉस 6x अथवा सेनेगा 3x – गले की सामान्य दुखन में इनमें से किसी भी एक औषध का प्रयोग हितकर सिद्ध होता है । यह भी गायकों तथा व्याख्यान-दाताओं के गले की दुखन में हितकर है।
इग्नेशिया 6, 30 – गले में निगलते समय दर्द, जो ठोस पदार्थ के निगलते समय तो नहीं होता, परन्तु तरल पदार्थ के समय होता हो – ऐसे लक्षणों में दें।