त्वचा की संरचना
अन्तस्त्वक में स्पर्श को ग्रहण करने वाली कुछ पतली और कुछ मोटी सूक्ष्मग्राही अंकुरिकायें होती हैं । इनके मूल भाग में नाड़ी की शाखायें घुसी हुई रहती हैं जिनसे स्पर्श का ज्ञान संवहन मस्तिष्क तक होता है । जब स्पर्श को ग्रहण करने वाली अंकुरिकाओं पर थोड़ा भी दबाव पड़ता है तो इनकी नाड़ियाँ, उत्तेजित हो जाती हैं तथा यही उत्तेजना मस्तिष्क में पहुँचकर स्पर्श की संज्ञा पैदा करती है ।
उष्ण, शीत, स्पर्श और दर्द (Pain) इन सबके ग्रहण करने के लिए अलग-अलग – चार प्रकार की स्पर्शाकुरिकायें होती हैं । त्वचा में संज्ञावह एवं चेष्टावह दोनों प्रकार की तन्त्रिकाएँ या नाड़ियाँ एवं उनकी तन्तुएँ (Nerve Fibers) होती है । जो विशेषकर स्वेद ग्रन्थियों आदि में अधिक दृष्टिगोचर होती हैं ।
त्वचा के कार्य
त्वचा मांस आदि कोमल धातुओं की रक्षा करती है । यह रोगोत्पादक जीवाणुओं, कीड़ों एवं विषों को शरीर के भीतर प्रविष्ट होने से रोकती है तथा तापक्षय को नियन्त्रित करती है । त्वचा के कटने-फटने अथवा छिलने पर ही जीवाणु, कीटाणु अथवा विष शरीर के भीतर प्रविष्ट होकर विकार एवं उपद्रव उत्पन्न करते हैं ।
उपर्युक्त कार्यों के अतिरिक्त त्वचा सर्दी, गर्मी, कोमलता, कठोरता, पीड़ा, सुख, स्पर्शानुभव को महसूस करती है। रक्त, पसीना, रोम, नख आदि को बाहर निकालती है तथा सूर्य की किरणों से जीवनीय द्रव (Vitamin D) की उत्पत्ति में सहायक होती है। त्वचा के रंजक-कण द्वारा सूर्य के संतप्त किरणों से शरीर के आभ्यान्तरिक अंग-प्रत्यंगों की रक्षा करती है ।
स्वेद ग्रंथियाँ (Sweat Glands)
त्वचा में मात्र दो प्रकार की ग्रन्थियाँ पाइ जाती है – (1) स्वद ग्रथियाँ, (2) वसा ग्रन्थियाँ ।
स्वेद ग्रन्थियाँ त्वचा के नीचे रहती हैं। ये ग्रन्थियाँ हथेली और तलुओं में पाई जाती हैं। हथेली की 1 वर्ग इंच त्वचा में लगभग 3,500 स्वेद छिद्र होते हैं। सारे शरीर में 25,00,000 के लगभग स्वेद ग्रन्थियाँ होती हैं जिनको यदि लम्बा करके (लम्बाई) में मिला दिया जाये तो 25 मील लम्बी एक नाली बन जायेगी।
इन स्वेद ग्रन्थियों में एक प्रकार का तरल बना करता है, जिसे आम बोलचाल में ‘पसीना’ (sweat) कहते हैं । यह पसीना उपचर्म रोम कूपों (Hair Follicle) के मार्ग से बाहर निकलता है ।
वसा ग्रन्थियाँ (Sebaceous Glands)
वसा या तेल ग्रन्थियाँ त्वचा के ऊपर के भाग में रहती हैं। यह नन्हीं-नन्हीं थैलियों की तरह होती हैं । इनकी दीवारें एक प्रकार की चिकनी चीज पैदा करके, बालों की जड़ों में पहुँचाती रहती हैं, जिनसे हमारे बाल चिकने और चमकदार बने रहते हैं ।
ये तेल या वसा ग्रन्थियाँ चेहरे की त्वचा में अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक होती हैं । इसी से हमारे चेहरे चिकने और चमकदार रहते हैं ।