स्तनों में दूध रुक जाने, स्तनों के गन्दा होकर संक्रमित अथवा स्तनों में खराश या व्रण होने से घाव या फोड़ा हो जाने के कारण दूध का ज्वर हो जाता है। इतना ही नहीं, ज्वर के साथ तमाम शरीर में दर्द, हरारत, स्तन-शोथ, माथे में दर्द, बेचैनी आदि कष्ट भी होने लग जाते हैं ।
दूध के ज्वर का एलोपैथिक चिकित्सा
• 250 मि.ली. जल में दो छोटे चम्मच बोरिक एसिड पाउडर भली-भाँति मिलाकर तथा खूब उबालकर स्वच्छ कपड़े को इसमें भिगोकर पीड़ित स्तन पर टकोर करें ।
• टेरामायसिन स्किन आयण्टमेण्ट (फाईजर कंपनी) को पीडित स्तन पर दिन में 1-2 बार लगाते रहें। स्तनों में दूध हो और निकालना सम्भव हो तो ब्रेस्ट पम्प से निकाल दें।
• पैण्टिड्स (साराभाई कंपनी) अथवा सायनास्टाट या सेप्ट्रान की टिकिया तथा एस. जी. पायरिन (डिक्लोनेक + पैरासिटामोल) अथवा ब्रूजेसिक (आइबूप्रोफेन + पैरासिटामेल) का आयु तथा रोगानुसार व्यवहार लाभकारी है ।
• अन्य औषधियों में – क्लोरोमायसेटिन कैपसूल (पी. डी. कम्पनी), वायसोलान टैबलेट (वाईथ कम्पनी) की टिकिया 1-1 मिलाकर प्रत्येक 6-6 घण्टे के बाद ज्वर के पूर्ण आराम होने तक खिलाना लाभकारी है। इससे ज्वर, हरारत, सिरदर्द आदि दूर हो जाते हैं ।
• बिस्ट्रेपेन (निर्माता : एलेम्पिक) अथवा डाइक्रिस्टीसीन (निर्माता : साराभाई) – आधी ग्राम दवा का मांसपेशी में प्रतिदिन इन्जेक्शन लगायें । दुबली-पतली और क्षय रोग से ग्रसित स्त्री के दूध के ज्वर या साधारण स्त्री के दूध के ज्वर में यह लाभकारी है।
• सेरिडॉन टिकिया (निर्माता : रोश) – आवश्यकतानुसार 1 से 2 टिकिया 1-2 बार प्रतिदिन खिलायें । ज्वर, सिरदर्द, हरारत एवं स्तन के दर्द को यह औषधि शान्त करती है ।