पाइरोजेन का होम्योपैथिक उपयोग
( Pyrogenium Homeopathic Medicine In Hindi)
(1) विषैले-ज्वर (Septic fevers) की औषधि – यह औषधि सोरिनम की तरह एक ‘नोसोड’ (Nosode) है। इसका प्रारंभ डॉ० द्रिसडेल ने किया था। उनके बाद डॉ० स्वान ने, जैसे अन्य नोसोड्स की उच्च-शक्तियों का निर्माण किया, वैसे इसका भी सड़ी हुई पस से शक्तिकरण किया। यह ज्वरों के लिये महान औषधि है। ये ज्वर एकोनाइट की तरह के तरुण-ज्वर (Acute fevers) नहीं, परन्तु जिन ज्वरों में सड़ांद आती है, बेहद बदबू – ऐसे ज्वरों में, टॉइफ़ायड, प्रसूत-ज्वर, भ्रूण के गर्भाशय में मर जाने पर अन्दर सड़ते रहने पर आनेवाला ज्वर, नार-बेल (Placenta) के न निकलने परन्तु अन्दर सड़ने पर होने वाला ज्वर, विषैली-गैस सूंघने से आने वाला ज्वर, ऑपरेशन से डाक्टर की अंगुली आदि कट जाने से विष चढ़ जाने पर ज्वर – इस प्रकार के सब विषैले ज्वरों में यह औषधि उपयोगी है।
(2) शरीर की ‘पीड़ा’ (Soreness) के कारण बिस्तर का कड़ा अनुभव करना (जैसे टाइफॉयड-ज्वर में) – टाइफॉयड एक विषैला-ज्वर है। इसमें अगर ठीक समय पर यह औषधि दे दी जाय, तब या तो रोग होता नहीं, या उसकी मियाद घट जाती है। रोगी को बिस्तर कड़ा अनुभव होता है, रोगी बिस्तर पर पड़ा ऐसा अनुभव करता है मानो चट्टान पर पड़ा हो, तकिया बड़ा कड़ा प्रतीत होता है। सारा शरीर छिटा-पिटा महसूस होता है। शरीर की इस ‘पीड़ा’ (Soreness) में इसके लक्षण आर्निका तथा बैप्टीशिया से मिलते हैं।
(3) हड्डियों में दर्द – रोगी की सिर्फ शरीर की मांस-पेशियां ही दर्द नहीं करती, उसकी हड्डियों में भी दर्द होता है।
(4) बेचैनी जो गर्मी और हरकत से कम होती हो – ज्वर के लक्षणों में शरीर की पीड़ा तथा हड्डियों में दर्द के अतिरिक्त इसका तीसरा लक्षण यह है कि रोगी बेचैन रहता है, और यह बेचैनी ‘गर्मी’ और ‘हरकत’ से कम होती है। इन दो लक्षणों में रस टॉक्स तथा पाइरोजेन एक समान हैं, परन्तु इनमें भेद यह है कि रस टॉक्स जब पहली हरकत करता है तब दर्द बढ़ता है, जब लगातार हरकत जारी रहती है तब दर्द कम हो जाता है, पाइरोजेन जब पहली हरकत करता है, तब दर्द घटता है, परन्तु थोड़ी देर बाद फिर दर्द शुरू हो जाता है, वह फिर हरकत करता है जिससे दर्द घटता है, परन्तु कुछ देर बाद फिर दर्द शुरू हो जाता है। पाइरोजेन के बुखार का रोगी थोड़ी-थोड़ी देर के बाद हरकत करता रहता है। रस टॉक्स में पहली हरकत में दर्द बढ़ता है, पाइरोजेन में हर पहली हरकत में दर्द घटता है।
(5) प्रसूत-ज्वर (Puerperal fever) – प्रसूत-ज्वर भी विषैला-ज्वर है, और जैसे हर विषैले-ज्वर में पाइरोजेन लाभ करता है, वैसे इस में भी लाभ करता है।
विषैले-ज्वर में झुरझुरी चढ़ा करती है। प्रसूत-ज्वर में दोनों कंधों के फलकों के बीच से जाड़ा चढ़ता है, शरीर में दर्द होता है, हड्डियों में भी दर्द होता है, रोगी को बिस्तर कड़ा अनुभव होता है, बेचैनी होती है, गर्मी और हरकत से आराम मिलता है। बुखार बहुत ऊंचा चला जा सकता है।
(6) भ्रण या नार-बेल के गर्भाशय में सड़ जाने या ‘मैला-पानी’ न निकलने से ज्वर – अगर गर्भाशय में भ्रूण मर जाय या गर्भपात के बाद ‘नार-बेल’ (Placenta) न निकले, अन्दर ही सड़ जाय, तो विषैला-ज्वर (Septic fever) हो जाता है। कभी नार-बेल आधी निकलती है, आधी भीतर रह जाती है और भीतर सड़ती है, ज्वर आ जाता है। कभी-कभी प्रसव के बाद जरायु से जो ‘मैला-पानी’ निकलना चाहिये वह नहीं निकलता और ज्वर हो जाता है। इन सब में पाइरोजेन अमोघ-औषधि है। गर्भपात या प्रसव के बाद यदि नार-बेल (Placenta) पूरा बाहर न निकले, और उसका कुछ अंश भीतर रह जाय, तो कैन्थरिस से वह निकल जाता है। इसके अलावा सिमिसिफ़्यूगा (जिसे एक्टिया रेसिमोसा भी कहते हैं) इस कार्य के लिये दिया जाता है। इन दोनों से फल न मिले, तो पाइरोजेन का प्रयोग करना चाहिए।
(7) विषैली-गैस को सूंघने से ज्वर – अगर विषैली गैस को सूंघने से ज्वर चढ़ जाय, और विषैले-ज्वर के उक्त लक्षण प्रकट होने लगें, तो इसे स्मरण करना चाहिये।
(8) ऑपरेशन से विषैला-ज्वर (Surgical infection) – कभी-कभी ऑपरेशन करते हुए डॉक्टर को ही नश्तर लग जाता है और उसे विषैला ज्वर हो जाता है। उसमें भी यह लाभ करता है।
(9) असहनीय दुर्गन्ध – रोगी के प्रत्येक स्राव से असहनीय दुर्गन्ध आती है। ऋतु-स्राव, मैला-पानी, पसीना, सांस, मुंह – इन सब से अत्यंत बदबू का आना इस औषधि में पाया जाता है।
(10) प्रसूत-ज्वर के बाद के उपद्रव – अगर किसी स्त्री को प्रसूत-ज्वर के बाद से ही तरह-तरह की शिकायतें चली आ रही हों, तो इस औषधि के समान दूसरी औषधि नहीं है।
(11) शक्ति तथा प्रकृति – 6, 30, 200 ( औषधि ‘सर्द’-प्रकृतिक लिये है, मात्रा को दोहराना ठीक नहीं है। )