यह ग्रन्थि मस्तिष्क में होती है। इसका आकार अण्डे के समान होता है। यह कपाल की जतूकास्थि (Sphenoid Bone) के खात में रहती है । इसके दो भाग होते हैं (Anterior Lobe) और एक पिछला (Posterior Lobe), इसका अगला भाग जतूकास्थि में रहता है और पिछला एक डण्ठल द्वारा मस्तिष्क में मिला रहता है। इसके प्रत्येक भाग में भिन्न-भिन्न रस बनता है ।
इस ग्रन्थि का आकार मटर के दाने के बराबर होता है और यह मस्तिष्क के अधर तल पर लगी रहती है । यह बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रन्थि है क्योंकि इसका प्रभाव अन्य नि:स्रोत ग्रन्थियों के कार्य पर भी पड़ता है। इसी विशेषता के कारण इसे ‘मास्टर ग्रन्थि’ (Master Gland) भी कहते हैं।
इस (पीयूष ग्रन्थि से जिसे अंग्रेजी में पिट्यूटरी ग्लैण्ड के नाम से जाना जाता है। ) 13 प्रकार के हारमोन्स उत्पन्न होते हैं जो इस ग्रन्थि के तीन अलग-अलग भागों से निकलते हैं। ग्रन्थि के पिछले पिण्ड के सत्त्व (Extract) को ‘पिट्यूट्रीन’ कहते हैं। इसमें दो प्रकार के हारमोन्स होते हैं -(1) एण्टीडाइ यूरेटिक – यह हारमोन धमनियों में रुधिर के दबाव को बढ़ाता है। (2) ऑक्सीटाक्सीन – यह हारमोन गर्माशय की पेशियों को उत्तेजित करता है ।
पीयूष ग्रन्थि के अगले भाग में लगभग 11 हारमोन्स बनते हैं । जिनका प्रभाव वृद्धि पर नियन्त्रण रखना, रक्त में शक्कर की मात्रा नियंत्रित रखना तथा अन्य नि:स्रोत ग्रन्थियों के कार्यों पर नियन्त्रण करना होता है । ग्रन्थि के इस भाग से वृद्धि हारमोन के अधिक निकलने पर मनुष्य की लम्बाई 8 से 9 फुट तक हो जाती है तथा कम मात्रा में हारमोन निकलने पर मनुष्य बौना रह जाता है जिसकी लम्बाई 3-4 फुट तक ही या इससे भी कम तक हो जाती है ।
इस ग्रन्थि के अग्रभाग से निकलने वाले अन्य हारमोन्स थायरोट्रापिक, पैराथायरोट्रापिक और एड्रीनोट्रापिक हैं जो अपना प्रभाव क्रमश: थायरायड, पैराथायरायड और अधि वृक्क ग्रन्थियों पर करते हैं ।
पीयूष-ग्रन्थि के अगले खण्ड (Anterior Lobe) के कार्य
इसका अगला खण्ड शरीर की बढ़ोतरी को नियन्त्रण (Control) में रखता है । इसके बढ़ जाने (इस रस की वृद्धि हो जाने पर) हाथ-पैर और चेहरे की हड्डियाँ बड़ी हो जाती हैं । मनुष्य दैत्याकार (Giant) हो जाता है । पुरुषों को नपुंसकता हो जाती है। स्त्रियों को मासिक-धर्म (Monthly Periods) नहीं आता । इससे सम्बन्धित मनुष्य दिन-प्रतिदिन दुबला होता चला जाता है ।
इस ग्रन्थि के अगले खण्ड में कम रस बनने से (अर्थात् इस ग्रन्थ के रस की कमी से) बच्चों की बढ़ोतरी (विकास) में कमी हो जाती है अथवा विकास बन्द हो जाता है । बच्चे बढ़ नहीं पाते । वे नाटे अथवा बौने रह जाते हैं ।
पीयूष ग्रन्थि के पिछले खण्ड (Posterior Lobe) के कार्य
पीयूष ग्रन्थि के पिछले खण्ड में जो रस बनता है उसके निम्नलिखित कार्य होते हैं ।
- अन्त्रियों की गति को शक्ति देता है ।
- रक्त नालियों (Blood vessels) को ठीक करता है।
- यह वृक्कों को उत्तेजित करता हे ।
सच्चाई तो यह है कि प्रजनन संस्थान के अंगों का विकास और नियन्त्रण इस पीयूष ग्रन्थि के द्वारा होता है । इसका स्राव (रस) यौवन दायक और शुक्राणुओं के बनाने में बहुत ही उपयोगी है। इस ग्रन्थि का भीतरी भाग निकाल देने से अण्डकोष व संतान उत्पादन अंग निर्बल हो जाते हैं, फलस्वरूप जवानी में ही बुढ़ापा आता है। इस प्रकार कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि इस ग्रन्थि का प्रभाव शरीर की समस्त ग्रन्थियों पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में पड़ता ही है । इसलिए इस ग्रन्थि को ‘प्रणाली विहीन ग्रन्थियों’ की स्वामिनी कहा जाता है ।
नोट – इस ग्रथि सो पिट्यूट्रीन (Pituitrin) नामक एक अत्यन्त उपयोगी औषधि का निर्माण किया जाता हैं, जो हृदय की शक्ति को बढ़ाती हैं ।