फाइटोलैक्का का होम्योपैथिक उपयोग
( Phytolacca Homeopathic Medicine In Hindi )
(1) ग्लैंडस की दवा – स्तनों का अथवा टांसिलों का पक जाना – इस औषधि का ग्लैंड्स पर विशेष प्रभाव है। ‘मैटीरिया मैडिका’ की किसी अन्य औषधि का स्त्री के स्तनों के शोथ पर इतना प्रभाव नहीं जितना इसका है। रोगिणी को ठंड लगी नहीं कि स्तन सूज जाते हैं, उनमें गाठें पड़ जाती हैं, स्तन दुखने लगते हैं। अगर बच्चे को दूध पिलाती स्त्री के किसी भी कष्ट से स्तन सूज जायें, या उनमें दर्द होने लगे, तो उसे फाइटोलैक्का देना चाहिये; अगर माता कहे कि उसे दूध नहीं उतरता, अगर उतरता भी है तो बच्चे के लिये बहुत थोड़ा होता है, गाढ़ा होता है, झट सूख जाता है, उसके धागे-से बन जाते हैं, सूत जैसा लटकता है, तब अन्य किसी औषध के लक्षण न होने पर फाइटोलैक्का उसकी धातुगत-औषधि (Constitutional drug) होगी। स्तनों से ऐसे पनीले रक्त मिले स्राव जो किसी भी औषधि से पांच साल में भी ठीक न हुए इस औषधि से ठीक हो गये। स्तन इतने दुखने लगते हैं कि जब माता बच्चे को दूध पिलाने बैठती है तब उसे ऐंठन पड़ जाती है। दर्द होने लगता है जो पीठ से नीचे तक फैल जाता है, सारे शरीर में भी फैल जाता है। बच्चा स्तन को मुंह लगाता है और स्तन से दर्द उठकर सारे शरीर में फैल जाता है। स्तन बड़े सख्त होते हैं, गांठ पड़ जाती हैं, सूज जाते हैं। स्तनों में ट्यूमर बनने को यह दवा रोक देती है। कोनायम, कैलकेरिया फ्लोर और साइलीशिया में भी स्तनों में गांठे पड़ जाती हैं।
(2) स्तनों की सूजन और उनमें पुराने घावों का फिर फूट पड़ना – जिन स्त्रियों के स्तनों के सूज जाने पर उनमें सख्त फोड़ा-सा बनकर रह जाता है, न पकता है न आराम होने में आता है, पक कर उसमें नासूर पड़ जाता है, घाव का मुंह खुला रहता है, उसमें से मवाद निकला करता है, सूख जाता है तो पुराने घाव का स्थान बना रहता है, उनके घाव का इलाज ऐलोपैथी में पुलटिस लगाना या अन्त में नश्तर लगाना है। जब इस स्त्री को दुबारा बच्चा होने लगता है तब ये घाव फिर ताजा हो जाते हैं, और पुराने घाव फिर सूज जाते हैं, ये घाव दूध की ग्रन्थियों को नष्ट करने लगते हैं, दर्द टपक मारने लगता है, दूध में खून आने लगता है। इस प्रकार की स्तनों की सख्त गांठों की सूजन तथा स्तन चिटकने में ग्रैफाइटिस प्रचलित औषधि है, परन्तु फाइटोलैक्का उससे भी उत्तम है। स्तनों की सूजन में अन्य औषधियां भी दी जाती हैं। उदाहरणार्थ, अगर स्तन पत्थर की तरह भारी हो, जरा-सी हरकत से दर्द होने लगे, हरकत से बचने के लिये स्त्री उन्हें हाथ से संभाले रखे तो ब्रायोनिया; अगर तेज बुखार हो, और सूजे हुए स्तन से चारों तरफ लाली फैल रही हो, तो बेलाडोना; अगर स्तन का पक जाना जरूरी दीखे और रोगी को सेक से आराम पहुंचे तो हिपर या साइलीशिया दिया जाना चाहिये।
(3) टांसिलों का पक जाना – टांसिलों के पक जाने के लक्षण में यह अमूल्य औषधि है। गले के टांसिल सूज जाते हैं। पहले वे तेज लाल रंग के होते हैं, फिर उन पर सफेद निशान पड़ने लगते हैं जो आगे चलकर मिल जाते हैं और डिफ्थीरिया की-सी शक्ल धारण कर लेते हैं। इन टांसिलों से एक या दोनों कानों में टीस पड़ती है। टांसिल की ग्रन्थियां सूज जाती हैं, सख्त हो जाती हैं, गला दर्द करने लगता है और कान के पास तथा जबड़े के नीचे ग्लैंड्स सूज जाते हैं। गले में टांसिलों की सूजन के साथ गाढ़ा, लसदार श्लेष्मा इकट्ठा हो जाता है, रोगी गर्म पानी नहीं पी सकता। इस औषधि के ग्लैंड्स पर प्रभाव के कारण ही स्तनों तथा गले की ग्रन्थियों के शोथ में यह लाभ करता है।
(4) पारे के दोष से गठिया तथा वात-रोग की दवा – इस औषधि का शरीर के तंतुओं, हड्डी पर की झिल्ली-अस्थि-परिवेष्टन-मांसपेशियों के आवरणों पर विशेष प्रभाव है। इसीलिये वात-रोग की भी यह उत्तम दवा है। दर्द बिजली की तरह टीस मारता है, एक स्थान पर होता है, झट दूसरे स्थान पर चला जाता है। रात के समय इस वात-रोग में वृद्धि होती है। अगर रोगी के वात रोग के पीछे सिफ़िलिस का विष छिपा हो, तो भी यह लाभ करती है। प्राय: सिफ़िलिस में पारे से इलाज किया जाता है। रोगी की हड्डियों आदि पर पारा मला जाता है जिससे पारे का दोष शरीर में जा बैठता है। परिणाम यह होता है कि रोगी को रात को हड्डियों में दर्द होने लगता है, मांसपेशियां दुखती हैं, खासकर जोड़ों में और हड्डियों में जहां पतली त्वचा है वहां दर्द होने लगता है, मुंह से लार टपकती है। ऐसे वात-रोग में यह लाभ करती है।
(5) सारे शरीर में दर्द (जब रस टॉक्स और ब्रायोनिया से लाभ न हो) – रोगी का सारा शरीर दुखता है। रोगी जब भी हिलता है, हरकत करता है, तब सम्पूर्ण शरीर में टीसें पड़ती है। सिर तथा पीठ का दर्द बेहद होता है, परन्तु दर्द सिर्फ पीछ या सिर तक ही सीमित नहीं रहता, शरीर के प्रत्येक भाग में पीड़ा होती है। रोगी सोचता है कि उसे हिलना-डुलना चाहिये, हरकत करनी चाहिये कि इस लक्षण को देखकर रस टॉक्स का ख्याल आता है, परन्तु जब भी वह हिलता है, उसका सारा शरीर दर्द करने लगता है। इस लक्षण को देखकर ब्रायोनिया का ख्याल आता है। परन्तु इन दोनों दवाओं से लाभ नहीं होता। डॉ० एलन का कहना है कि फाइटोलैक्का उक्त दोनों दवाओं के बीच की औषधि है, इसलिये जब ब्रायोनिया लाभ न करे तो इस औषधि से लाभ होता है। फाइटोलैक्का सिर से पैर तक हर अंग में पीड़ा अनुभव करता है, मुश्किल से हिल-डुल सकता है, हिलने पर कराह उठता है।
(6) शियाटिका का दर्द अंग के बाहर से नीचे को जाता है – हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि पीड़ा के लक्षण पर शियाटिका के दर्द को भी यह दूर कर देता है। शियाटिका के दर्द में यह सफल दवाओं में से एक है। इस रोग में इसका मुख्य लक्षण यह है कि दर्द जांघ के बाहर की तरफ से नीचे को जाता है। अंग के बाहर की तरफ से दर्द के नीचे को जाने के लक्षण में इससे लाभ होता है।