बुखार : यदि किसी व्यक्ति के शरीर का तापमान लगातार अधिक बना रहे (सामान्य 98.4 फारेनहाइट) तो फिर उसका कारण जानना आवश्यक है। इसके लिए रोगी का इतिहास, बुखार की अवधि, अन्य परेशानियां, शारीरिक जांच, रक्त कोशिकाओं की संख्या की जांच, छाती का एक्स-रे, टट्टी एवं पेशाब की सूक्ष्मदर्शीय जांच आदि आवश्यक होती है।
बुखार आने के कारण
अकारण अथवा अप्रत्यक्ष रूप से रहने वाले बुखार के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं
1. रक्त के अंदर संक्रमण करने वाले जीवाणुओं, जैसे स्ट्रेप्टो कोकाई, स्टेफाइलो कोकाई आदि के कारण।
2. रक्त के बाहर किसी कारण से –
श्वसन तंत्र में किसी खराबी के कारण, जैसे निमोनिया अथवा फेफड़ों में हवा भर जाने या फोड़ा हो जाने अथवा फेफड़ों के छिद्रों के चौड़ा हो जाने के कारण; उदर में किसी भी गड़बड़ी, यथा किसी स्थान पर फोड़ा बन जाना आदि के कारण; जननांग एवं मूत्राशय में गड़बड़ी के कारण, जैसे गुर्दे में किसी संक्रमण के कारण; मूत्राशय में फोड़ा बनने के कारण, प्रोस्टेट ग्रंथियों के बढ़ने के कारण, स्त्रियों में वस्ति प्रदेश में फोड़ा बनना आदि कारणों से; मस्तिष्क की सिल्लियों में सूजन अथवा संक्रमण के कारण।
3. कुछ विशेष प्रकार के संक्रमणों के कारण, जैसे –
सालमोनेला जीवाणु, जो कि टायफाइड रोग उत्पन्न करते हैं; प्लेग विषाणु, मलेरिया, फाइलेरिया रोग के जीवों के कारण; विषाणुओं के संक्रमण के कारण; सिफालेस वगैरह उत्पन्न करने वाले स्पाइरोकिप्ल प्रजाति के जीवाणुओं के कारण; जूं, लीख अथवा विशेष मक्खियों इत्यादि परपोषी सूक्ष्म जीवों के कारण; कुछ अन्य विशेष प्रकार के जीवाणुओं एवं सूक्ष्म जीवों के कारण; टी.बी. (क्षय रोग) अथवा कुष्ठ रोग के कारण।
4. गांठ अथवा गिल्टी के कारण – फेफड़ों, यकृत, गुर्दे, पेट, आंत आदि में कैंसर के कारण; हृदय की एंडीकाडियम झिल्ली में संक्रमण के कारण।
5. रक्तहीनता के कारण।
बुखार की होमियोपैथिक दवा
वैसे तो लक्षणों की समानता के आधार पर अनेक औषधियां प्रयुक्त की जा सकती हैं, फिर भी उचित जांच आवश्यक है, जिससे वास्तविक बीमारी के बारे में ज्ञान हो सके और तदनुसार इलाज किया जा सके। लक्षणों के आधार पर निम्न औषधियां दी जा सकती हैं –
आर्सेनिक एल्बम : बुखार की अनियमितता,प्यास अधिक, थोड़ी-थोड़ी देर पर थोड़ा-थोड़ा गर्म पानी पीना, दोपहर में (1-2 बजे) एवं आधी रात के बाद परेशानियां बढ़ जाना, बदन ढककर सोना, किन्तु मुंह उघड़ा रखना, पसीने से आराम मिलना आदि लक्षण मिलने पर उक्त दवा 30 शक्ति में कुछ खुराकें प्रयोग करनी चाहिए।
नेट्रमम्यूर : सुबह 10-11 बजे ठंड महसूस होना, दर्द से सिर फटा जा रहा हो, सुइयां-सी चुभ रही हों, पसीने से आराम मिले, प्यास अधिक, शरीर ठंडा हो, तो उक्त दवा 30 अथवा 200 शक्ति में प्रयोग करनी चाहिए।
एकोनाइट : जब दक्षिण-पूर्वी हवाएं चल रही हों, बदन जल रहा हो, किन्तु पसीना न आता हो, मृत्यु का भय रहता हो, ठंडा पानी पीने की इच्छा हो, बेचैनी एवं छटपटाहट हो, तो उक्त दवा 30 शक्ति में लेनी चाहिए।
बेलाडोना : सिरदर्द, चेहरा लाल, सिर में रक्त-प्रवाह अधिक, जितने हिस्से पर ओढ़ रखा हो, सिर्फ उतने पर ही पसीना, बहुत तेज बुखार, अधिक नीद, सपनों में कुत्ता-बिल्ली एवं डरावनी चीजें दिखाई पड़ना, बुखार के साथ प्यास बिलकुल नहीं, छूने पर भी परेशानी बढ़ जाए, तो उक्त दवा 30 अथवा 200 शक्ति में प्रयुक्त करनी चाहिए।
रसटॉक्स : बुखार की गर्मी की अवस्था में बेचैनी, जीभ सूखी, ठंड की अवस्था में खांसी, लेटे-लेटे बदन दर्द, आराम के लिए करवटें बदलना आदि लक्षण मिलने पर 30 शक्ति में दवा प्रयोग करनी चाहिए।
लगातार उल्टी महसूस हो, जी मिचला रहा हो, तो ‘इपिकॉक‘ दवा। कुछ समय बुखार बना रहना, कुछ समय बुखार न रहे, तो ‘जेलसीमियम’ एवं ‘एण्टिमकूड’ दवाएं। यदि जीभ सफेद परत से ढकी हो, पेट की भी गडबडियां हों, प्यास अधिक, रात में बुखार चढे, नाक एवं मुंह के किनारे फटे हुए हों और इनमें दर्द हो, तो ‘एण्टिमक्रूड’ दवा उपयोगी रहती है। सुबह 7-9 बजे के बीच जाड़ा देकर बुखार आए, प्यास भी लगे, तो ‘यूपेटोरियम’ दवा कारगर औषधि है। इन सबके अलावा ‘आर्निका’, ‘सिड्रान’, ‘केप्सिकम’, ‘इग्नेशिया’, ‘यूपेटोरियम’, ‘एण्टिमटार्ट’, ‘नक्सवोमिका’, ‘वेरेट्रमविरीड’, ‘फॉस्फोरस’ दवाएं भी लक्षणों की समानता के आधार पर अत्यंत फायदेमंद रहती हैं। यदि उदासी निष्क्रियता हो, नींद अधिक हो, सिर दर्द हो, प्यास लगे, तो ‘जिलारीमियम’ दवा लेनी चाहिए।