बेलाडोना के लाभ, उपयोग, एंटीडोट
इस लेख में हम BELLADONNA के माइंड रुबरिक के बारे में समझने का प्रयास करेंगे, कि आखिर BELLADONNA का रोगी कैसा होता है ?
BELLADONNA जिसको अल्प-क्रिया दवा कहा जाता है, पहली स्थिति की दवा है जहाँ पर heat, burning, redness हो। परंतु BELLADONNA, Acute के साथ साथ Chronic केसों को भी ठीक करता है। अकेले बेलाडोना के 1000 से ज़्यादा माइंड रुबरिक हैं, जो सभी दवाओं से ज्यादा हैं। सभी कुछ Repertory के Mind section में पड़ा हुआ है।
BELLADONNA के मन से सम्बंधित महत्वपूर्ण रुबरिक को आज हम समझेंगे :-
Video On BELLADONNA
Carried desire to be fast : इसका रोगी जल्दी आराम चाहता है। उसका कहना है कि होम्योपैथी दवा धीरे-धीरे असर करती है। इसलिए उसने पहले कभी होम्योपैथी दवा का सेवन नहीं किया। अब कोई ऐसी दवा दीजिए कि जल्द से जल्द ठीक कर दे।
Frivolous : अपनी बीमारी के प्रति गम्भीर नहीं होता। जैसे लोग आमतौर पर अपनी बीमारी के प्रति गम्भीर होते हैं, पर वो बीमारी के प्रति लापरवाह होता है। वह डाक्टर के पास घर के किसी सदस्य के कहने पर ही जाता है।
Superstitious : जैसे : मेरा दोस्त ठीक हुआ तो मैं दवा लेने आया हूँ। यदि वो ठीक हो सकता है आपसे, तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि मैं भी ठीक हो जाऊँगा। यहां तक कि मरीज यह कहता है, “डा. साहिब उसका जोड़ों का दर्द ठीक हुआ है, मुझे तो केवल जुकाम ही है, यदि वो ठीक हो गया तो मैं भी ठीक हो सकता हूँ। किसी पर विश्वास जल्दी कर लेता है।
Light desire for: Light का मतलब सिर्फ बिजली की रोशनी नहीं। यहाँ पर मरीज बीमारी के विषय में जानना चाहता है। पूछेगा कि डा. साहिब यह क्या बीमारी है? यह ठीक तो हो जाएगी? कोई टेस्ट, कोई ऐक्स-रे आदि करवाना हो तो बताओ ताकि पता लग सके क्या बीमारी है, पर ज्यादा गहराई में नहीं जाता, ज्यादा सवाल नहीं पूछता। ज्यादा बोझ, दबाव नहीं रख सकता। हल्के ढंग से रहना, Light रहना अच्छा लगता है।
Hides things, Hide desire to, Naked wants to be : कुछ बातें छुपा लेना इनका लक्षण है। अपने रोग को भी थोड़े समय के लिए छुपा लेना, ढकना, पर ज्यादा समय ऐसा नहीं कर सकता। BELLADONNA वाला मरीज फिर खुद ही अपनी बीमारी वाले स्थान को दिखा देता है। बीमारी का सामना करने से बचता है। शायद इसीलिए BELLADONNA का मरीज हँस-हँस कर अपने लक्षणों को बताता है। डॉक्टर के सवालों का जवाब भी हँसते हुए ही देता है। क्योंकि वो बात को गंभीरता से नहीं लेता, हल्के ढंग से रहना उसकी आदत है या वह कुछ छुपाने के लिए हँसता मुस्कराता रहता है। यह सब आप केस लेते वक्त देखोगे। बहुत डाक्टरों का कहना है कि यह साधारण बातें हैं, परन्तु साधारण बातों को पकड़ना, समझना ही होमियोपैथ का काम है।
Naive : भोला-भाला, सीधा-साधा, किसी के बात को भी मान लेने वाला।
Credulous : तुरन्त विश्वास करने वाला, जिसने बोल दिया वैसे ही मान लेना, वहीं पर ही चले जाना, उसी के पीछे पड़ जाना।
Unreliable in promises : वादा करना और तोड़ देना, वादे को निभाना नहीं । डाक्टर ने कहा कि, परहेज रख लेना, वादा कर जाना, पर फिर आकर कहना (हँसते हुए) कि डा. मुझसे रहा नहीं गया, खा लिया था, या पहले कहना कि नहीं खाया, फिर हँसते हुए बताना कि “खाया गया था जी डाक्टर”।
Attention seeking : अपनी तरफ ध्यान आकर्षित करने के लिए बीमारी को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करना, ताकि उससे पूछा जाए। “क्या हो गया?” “क्या तकलीफ है?” जब रोगी महिला देखती है कि उसके पतिदेव घर में प्रवेश कर चुके हैं, तो वह रोना शुरु कर देती है, “हाये मर गई. हाय! हाय! करने लग जाती है। उनका ध्यान वो अपनी तरफ इसलिए खींचती है ताकि वो उससे पूछे कि उसका क्या दुखता है? क्या तकलीफ है? वो ज्यादा भी पूछताछ नहीं चाहती।
BELLADONNA का मरीज जब डॉक्टर के पास जाता है तो, 2 प्रकार की अवस्था वाला होता है, अगली वीडियो में मैं केस के आधार पर इन दो अवस्था को समझाने का प्रयास करूँगा।
Belladonna Uses, Benefits, Antidote In Hindi
(1) शोथ तथा ज्वर में भयंकर उत्ताप, रक्तिमा तथा बेहद जलन – बेलाडोना के शोथ में उत्ताप, रक्तिमा तथा बेहद जलन इसके विशिष्ट लक्षण है। इन तीनों की स्थिति निम्न है:
भयंकर उत्ताप – फेफड़े, मस्तिष्क, जिगर, अंतड़ियों अथवा किसी अन्य अंग में शोथ हो तो भयंकर उत्ताप मौजूद होता है। इस रोगी की त्वचा पर हाथ रखा जाय, तो एकदम हटा लेना पड़ता है क्योंकि त्वचा में भयंकर गर्मी होती है। इतनी भयंकर गर्मी के हाथ हटा लेने के बाद भी कुछ समय तक गर्मी की याद बनी रहती है। रोगी के किसी अंग में भी शोथ क्यों न हो, उसे छूने से भयंकर उत्ताप का अनुभव होता है।
टाइफॉयड के उत्ताप में बेलाडोना न दे – टाइफॉयड में अगर इस प्रकार का उत्ताप मौजूद भी हो, तो भी उसमें बेलाडोना कभी नहीं देना चाहिये। इसका कारण यह है कि औषधि की गति तथा रोग की गति में सम-रसता होना आवश्यक है। बेलाडोना की शिकायतें यकायक, एकदम, बड़े वेग से आती हैं और यकायक ही चली भी जाती हैं। टाइफॉयड यकायक नहीं आता, धीरे-धीरे आता है और धीरे-धीरे जाता है। बेलाडोना की गति और टाइफॉयड की गति में सम-रसता नहीं है, इसलिये इसमें बेलाडोना देने से रोग बढ़ सकता है, घट नहीं सकता। बेलाडोना उसी ज्वर में देना उचित है जिसमें ज्वर यकायक आये, धीमी गति से न आये। बेलाडोना में ताप होता है, बेहद ताप, भयंकर ताप।
रक्तिमा – बेलाडोना के शोथ में दूसरा मुख्य-लक्षण रक्तिमा है। अंग के जिस स्थान पर शोथ हुआ है, वह बेहद लाल दिखाई देता है। लालिमा के बाद इसका रंग हल्का पड़ सकता है, कुछ काला पड़ सकता है, ऐसा भी हो सकता है कि विशेष रूप से पहचाना न जाय परन्तु शुरू में चमकीला लाल होता है। शरीर की गांठों में शोथ होगी तो वह भी लाल रंग की, गला पकेगा तो लाल रंग जैसा, ऐसा जैसे अंगारा हो, फिर उसका रंग फीका पड़ सकता है, परन्तु शुरू में देखते ही लाल रंग होता है।
बेहद जलन – बेलाडोना के शोथ में तीसरा मुख्य-लक्षण बेहद जलन है। शोथ में, ज्वर में, रक्त-संचय में, टांसिल में बेहद जलन होती है। इतना ही नहीं कि यह जलन हाथ से छूने से अनुभव की जाय, रोगी को अपने आप भी जलन महसूस होती है। उदरशोथ (Gastritis) में पेट में जलन होती है। इस प्रकार उत्ताप, रक्तिमा तथा जलन-ये तीनों बेलाडोना औषधि में मुख्य स्थान रखते हैं।
उत्ताप, रक्तिमा, तथा जलन के लक्षणों में सूजन, आंख दुखना, डिसेन्ट्री, बवासीर तथा गठिया के रोग – यह हम कह चुके हैं कि बेलाडोना में तीन लक्षण आधारभूत हैं उत्ताप, रक्तिमा तथा जलन। इन तीन को ध्यान में रखते हुए यह बात आसानी से समझ आ जाती है कि शोथ, आँख दुखना, डिसेन्ट्री तथा बवासीर में इसकी कितनी उपयोगिता है। इनके अलावा जहां भी ये तीन लक्षण हों, वही बेलाडोना उपयोगी है।
सूजन जिसमें उत्ताप, रक्तिमा और जलन हो – अगर किसी अंग में सूजन हो जाय, सूजन के स्थान को छुआ तक न जा सके – स्मरण रहे कि स्पर्श के लिये असहिष्णुता बेलाडोना औषधि का चरित्रगत-लक्षण है – दर्द हो, ऐसा अनुभव हो कि सूजन का स्थान फूट पड़ेगा, इसके साथ उस स्थान में गर्मी, लाली और जलन हो, तो बेलाडोना औषधि है, सूजन के विषय में स्मरण रखना चाहिये कि अगर सूजन के बाद सूजन पकने लगे तब बेलाडोना लाभ नहीं कर सकता, पकने से पहले की अवस्था तक ही इसकी सीमा है।
आंख दुखना जिसमें उत्ताप, रतिमा और जलन हो – आंख में गर्मी, रक्तिमा और जलन जो बेलाडोना के लक्षण हैं, उनके मौजूद होने पर यह इसे ठीक कर देता है। आँख से पानी आना, रोशनी में आंख न खोल सकना, आंख में गर्मी लाली और जलन के बाद कभी-कभी आख में ‘टीर’ (Squint) रह जाता है। उसे बेलाडोना औषधि ठीक कर देती है।
डिसेन्ट्री जिसमें उत्ताप, रक्तिमा और जलन हो – रोगी बार-बार जोर लगाता है, मुँह तपने लगता है, चेहरा लाल हो जाता है, सिर और चेहरे पर जलन शुरू हो जाती है, हाथ-पैर ठन्डे और सिर गर्म, बहुत जोर लगाने पर भी बहुत थोड़ा मल – ऐसी डिसेन्ट्री में बेलाडोना लाभप्रद है।
बवासीर जिसमें उत्ताप, रक्तिमा और जलन हो – ऐसी बवासीर जिसमें सख्त दर्द हो, मस्से बेहद लाल हों, सूज रहे हों, छुए न जा सकें, जलन हो, रोगी टांगें पसार कर ही लेट सके – ऐसी बवासीर में बेलाडोना लाभ करेगा।
गठिया जिसमें उत्ताप, रक्तिमा और जलन हो – गठिये में जब सब या कुछ जोड़ सूज जाते हैं, तब इन जोड़ों में उत्ताप, लाली और जलन होती है। ऐसी गठिये में उत्ताप, रक्तिमा और जलन मौजूद रहते हैं। इसके साथ रोगी स्वयं ‘असहिष्णु’ (Sensitive) होता है और जोड़ों को किसी को छूने नहीं देता। जरा-सा छू जाने से उसे दर्द होता है। वह बिस्तर पर बिना हिले-जुले पड़ा रहना चाहता है। जोड़ों में दर्द के साथ तेज बुखार में वह शान्त पड़ा रहता है। बेलाडोना का रोगी शीत को बर्दाश्त नहीं कर सकता, कपड़े से लिपटा रहता है, हवा के झोंके से परेशान हो जाता है, गर्मी से उसे राहत मिलती है।
(2) रक्त-संचय की अधिकता तथा सिद-दर्द – अभी हमने उत्ताप, रक्तिमा तथा जलन का उल्लेख किया। उत्ताप, रक्तिमा तथा जलन क्यो होते हैं? इसका कारण रुधिर का किसी जगह एकत्रित हो जाना है। बेलाडोना इस प्रकार रुधिर के किसी अंग-विशेष में संचित हो जाने पर औषधियों का राजा है। यह रक्त-संचय कहीं भी हो सकता है – सिर में, छाती में, जरायु में, जोड़ों में, त्वचा पर-शरीर के किसी भी अंग पर यह संचय हो सकता है। इस प्रकार के रुधिर-संचय में विशेष लक्षण यह है कि यह बड़े वेग से आता है और एकदम आता है। हम अभी देखेंगे कि लक्षणों का वेग से आना और एकदम जाना बेलाडोना का चरित्रगत-लक्षण है। बेलाडोना के रोग वेग से आते हैं और एकदम जाते हैं, इसके रोगों की गतियां मन्द वेग से नहीं चलती। बिजली के से वेग से आना बेलाडोना की विशेषता है। बच्चा जब सोया था तब बिल्कुल ठीक था, परन्तु मध्य-रात्रि में ही एकदम उसे दौरा पड़ गया, हाथ्र-पैर ऐंठने लगे, पेट में दर्द उठ खड़ा हुआ – ये सब एकदम और वेग से आने वाले रक्त-संचय के लक्षण बेलाडोना औषधि के हैं। इन्हीं लक्षणों के कारण हाई-ब्लड प्रेशर की भी यह उत्कृष्ट दवा है।
रक्त-संचय से सिरदर्द – रक्त की गति जब सिर की तरफ़ चली जाती है तब सिर दर्द होने लगता है। बेलाडोना में भयंकर सिर-दर्द होता है। ऐसा दर्द मानो सिर में कुछ छुरे चल रहे हों। बेलाडोना का रोगी हरकत को बर्दाश्त नहीं कर सकता, स्पर्श को सहन नहीं कर सकता, रोशनी और हवा को भी नहीं सह सकता। बच्चा बिस्तर पर पड़ा सिर-दर्द से चीखता है, तकिये पर सिर इधर-उधर पटकता है यद्यपि सिर का हिलना सिर-दर्द को और बढ़ाता है। यह सिर-दर्द सिर में रक्त-संचय के कारण होता है। जब ज्वर तेज हो तब ऐसा सिर-दर्द हुआ करता है। रोगी अनुभव करता है कि रुधिर सिर की तरफ दौड़ रहा है। बेलाडोना के सिर दर्द में सिर गरम होता है और हाथ-पैर ठंडे होते हैं, आंखें लाल, कनपटियों की रंगों में टपकन होती है, लेटने से सिर-दर्द बढ़ता है, रोगी पगड़ी से या किसी चीज से सिर को कस कर बांधता है, तब उसे आराम मालूम देता है।
रक्त के सिर की तरफ़ दौर से प्रलाप – बेलाडोना में रक्त का सिर की तरफ दौर इतना जबर्दस्त होता है कि रोगी की प्रबल प्रलाप तथा बेहोशी की-सी अवस्था हो जाती है। यद्यपि उसे नींद आ रही होती है तो भी वह सो नहीं सकता। वह सिर को तकिये पर इधर-उधर डोलता रहता है। कभी-कभी वह प्रगाढ़ निद्रा में जा पहुंचता है जिसमें उसे घबराहट भरे स्वप्न आते हैं। वह देखता है हत्याएं, डाकू, आगजनी। वह प्रलाप भी करने लगता है – उसे भूत-प्रेत, राक्षस, काले कुत्ते, भिन्न-भिन्न प्रकार के कीड़े-मकौड़े दिखाई देने लगते हैं। यह सब रक्त का सिर की तरफ दौर होने का परिणाम है।
पागलपन – जब रक्त का सिर की तरफ दौर बहुत अधिक हो जाता है, तब बेलाडोना में पागलपन की अवस्था आ जाती है। वह अपना भोजन मंगवाता है, परन्तु खाने के बजाय चम्मच को काटने लगता है, तश्तरी को चबाता है, कुत्ते की तरह नाक चढ़ाता और भौंकता है। वह अपना गला घोंटने का प्रयत्न करता है, और दूसरों को कहता है कि वे उसकी हत्या कर दें। हाय-हाय करना – इस औषधि की विशेषता है। ठीक हालत में हो या न हो, वह हाय-हाय किये जाती है। जल्द-जल्द कुछ बड़बड़ाता जाता है जिसका कुछ अर्थ नहीं होता। उसे ऐसे काल्पनिक भयंकर दृश्य दिखाई देते हैं जिनसे जान बचाने के लिये वह भाग या छिप जाना चाहता है। उसका पागलपन उत्कट उन्माद का रूप धारण कर लेता है जिसमें वह तोड़-फोड़, मार-काट, गाली-गलौज करता है। दूसरों पर थूकता है, दांत पीसता, किटकिटाता है। डॉ० नैश ने पागलपन की तीन दवाओं पर विशेष बल दिया है – बेलाडोना, हायोसाइमस तथा स्ट्रैमोनियम। इनकी तुलना निम्न प्रकार है।
पागलपन में बेलाडोना, हायोसाइमस तथा स्ट्रैमोनियम की तुलना – इन तीनों को मस्तिष्क के रोगों की औषधि कहा जा सकता है। बेलाडोना में उन्माद की प्रचंडता प्रधान है, हायोसाइमस में प्रचंडता नहीं होती, निरर्थक गुनगुनाना प्रधान होता है, प्रचंडता तो कभी-कभी ही आती है। बेलाडोना का चेहरा लाल, हायोसाइमस का चेहरा पीला और बैठा हुआ होता है। हायोसाइमस कमजोर होता है, और कमजोरी बढ़ती जाती है। इस कमजोरी के कारण उसके उन्माद में प्रचंडता देर तक नहीं रह सकती। हायोसाइमस की शुरूआत प्रचंडता से हो सकती है परन्तु कमजोरी बढ़ने के साथ वह हटती जाती है। स्ट्रैमोनियम में उन्माद की प्रचंडता पहली दोनों औषधियों से अधिक है। वह चिल्ला-चिल्लाकर गाता, ठहाके मारकर हँसता, चिल्लाता, प्रार्थना करने लगता, गालियां बकने लगता-बड़ा बकवादी हो जाता है। उन्माद की प्रचंडता में स्ट्रैमोनियम तीनों से अधिक, फिर बेलाडोना, और सब से कम हायोसाइमस है। प्रचंडता के अतिरिक्त अन्य लक्षणों को भी निर्वाचन के समय ध्यान में रखना चाहिये। उदाहरणार्थ, बेलाडोना प्रकाश को सहन नहीं कर सकता, स्ट्रैमोनियम अन्धेरे को नहीं सहन कर सकता। बेलाडोना अन्धेरा चाहता है, स्ट्रैमोनियम प्रकाश।
(3) दर्द एकदम आता है और एकदम ही चला जाता है – लक्षणों का बड़े वेग से आना, और एकदम आना बेलाडोना का चरित्रगत-लक्षण है। इसी लक्षण का रूप तब स्पष्ट हो जाता है जब हम देखते हैं कि कोई भी दर्द एकदम आये और एकदम ही चला जाये, तो वह बेलाडोना से ठीक हो जाता है। सर्दी लगी, एकदम दर्द शुरू हुआ, बीमारी ने अपना जितना समय लगाना था लगाया, और दर्द जैसे एकदम आया था वैसे एकदम शान्त हो गया। कभी-कभी यह दर्द कुछ मिनट रहकर ही चला जाता है। स्ट्रैमोनियम में दर्द मीठा-मीठा शुरू होता है, धीरे-धीरे बढ़ता जाता है, उच्च-शिखर पर जाकर फिर धीरे-धीरे शान्त होता है। मैग्नेशिया फॉस का सिर-दर्द एकाएक आता है, चिरकाल तक बना रहता है और एकाएक ही जाता है। सल्फ्यूरिक ऐसिड में धीरे-धीरे शुरू होता है, पर एकदम जाता है।
(4) रोग का प्रचंड तथा एकाएक रूप में आना – बेलाडोना के इन दो लक्षणों को भूला नहीं जा सकता। रोग बड़े वेग से, प्रचंड रूप में आक्रमण करता है, और यह आक्रमण यकायक होता है। ‘प्रचंडता’ और ‘एकाएकपना’ इस औषधि के मूल में पाया जाता है। किसी प्रकार का दर्द हो, प्रचंड सिर-दर्द, धमनियों का प्रचंड-स्पन्दन, प्रचंड-डिलीरियम, प्रचंड-पागलपन, प्रचंड-ऐंठन। रोग की प्रचंडता और एकाएकपने में एकोनाइट तथा बेलाडोना का सादृश्य है, इसलिये इनकी तुलना कर लेना आवश्यक है।
बेलाडोना और एकोनाइट की तुलना – ये दोनों औषधियों हृष्ट-पुष्ट शरीर के लोगों के लिये उपयोगी हैं। हृष्ट-पुष्ट स्वस्थ बच्चा या एक तगड़ा नौजवान यह समझ कर कि उसे सर्दी क्या कर लेगी, ठंड में कम कपड़े पहन कर निकलता है और रात में ही या सवेरे तक शीत के किसी रोग से आक्रान्त हो जाता है। रोग का आक्रमण एकदम होता है और जोर से होता है। दोनों इस बात में समान हैं, परन्तु बेलाडोना में मस्तिष्क में तूफ़ान उठता है, बुखार के साथ असह्य सिर-दर्द हो जाता है, एकोनाइट में रुधिर की गति में तूफान उठता है, छाती या हृदय में दर्द हो जाता है, न्यूमोनिया, खांसी, जुकाम हो जाता है।
(5) प्रकाश, शोर, स्पर्श आदि सहन नहीं कर सकता – इस रोगी की पांचों इन्द्रियों में अत्यन्त अनुभूति उत्पन्न हो जाती है। रोगी आंखों से रोशनी, कानों से शब्द, जीभ से स्वाद, नाक से गंध, त्वचा के स्पर्श की अनुभूति साधारण व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक करने लगता है, वह रोशनी, शब्द, गन्ध, स्पर्श आदि को सहन नहीं कर सकता। उसका स्नायु-मंडल उत्तेजित रहता है। स्नायु-मंडल की उत्तेजना बेलाडोना का मुख्य-लक्षण है। ओपियम इससे ठीक उल्टा है। उसमें ‘सहिष्णुता’ (Sensitivity) रहती ही नहीं। बेलाडोना के रोगी में मस्तिष्क में जितना रुधिर संचित होगा उतनी असहिष्णुता बढ़ जायगी। स्पर्श की असहिष्णुता उसमें इतनी होती है कि सिर के बालों में कघी तक नहीं फेर सकता, सिर के बालों को छूने तक नहीं देता। इस प्रकार की असहिष्णुता अन्य औषधियों में भी पायी जाती है। उदाहरणार्थ, हिपर पर रोगी दर्द को इतना अनुभव करता है कि बेहोश हो जाता है, नाइट्रिक ऐसिड का रोगी सड़क पर चलती गाड़ियों की आवाज को सहन नहीं कर सकता, उससे उसकी तकलीफें बढ़ जाता हैं, कॉफिया का रोगी तीन मंजिल ऊपर के मकान पर भी किसी के चलने की आवाज सुन लेता है तो उससे परेशान हो जाता है यद्यपि अन्य किसी को वह आवाज नहीं सुनाई पड़ती, नक्स वोमिका के रोगी के शरीर की पीड़ा लोगों के पैरों की आहट से बढ़ जाती है।
(6) मूत्राशय की उत्तेजितावस्था – बेलाडोना के अतिरिक्त दूसरी कोई औषधि ऐसी नहीं है जो मूत्राशय तथा मूत्र-नाली की उत्तेजितावस्था को शान्त कर सके। पेशाब करने की इच्छा लगातार बनी रहती है। इस औषधि में स्पर्शादि को सहन न कर सकने का जो लक्षण है, उसी का यह परिणाम है। पेशाब बूंद-बूंद कर टपकता है और सारी मूत्र-नाली में दाह उत्पन्न करता है। सारा मूत्र-संस्थान उत्तेजित अवस्था में पाया जाता है। मूत्राशय में शोथ होती है। मूत्राशय में रक्त-संचय और उसके उत्तेजितावस्था होने के कारण उस स्थान को छुआ तक नहीं जा सकता। मानसिक अवस्था भी चिड़चिड़ी हो जाती है। यह अवस्था मूत्राशय में मरोड़ पड़ने की-सी है। मूत्र में रुधिर आता है, कभी-कभी शुद्ध खून। ऐसी अवस्था में पायी जाती है कि मूत्राशय भरा हुआ है परन्तु मूत्र नहीं निकल रहा। शिकायत का केन्द्र स्थूल मूत्राशय की ग्रीवा है जहां मूत्राशय में थोड़ा-सा भी मूत्र इकट्ठा होने पर पेशाब जाने की हाजत होती है, परन्तु दर्द होता है मूत्र नहीं निकलता।
Antidote of Belladonna : Coffee, Hepar Sulphur, Henbane, Pulsatilla, Wine.