छोटी आंत के बाद, बड़ी आंत आरम्भ हो जाती है अर्थात् छोटी आंतें बड़ी आँतों से जुड़ी रहती हैं । बड़ी आंत, छोटी आंत से अधिक चौड़ी होती है, यह उदर में छोटी आंत के चारों ओर घेरा डाले पड़ी रहती है। इसकी लम्बाई लगभग 5-6 फुट होती है। इसका अन्तिम डेढ़ या दो इंज का व्यास ‘गुदा’ कहलाता है, जिसका अन्त मलद्वार पर होता है। गुदा के ऊपर का 5 इंच लम्बा भाग ‘मलाशय’ कहलाता है।
बड़ी आंत के तीन भाग होते हैं – एसेण्डिंग कोलन – जहाँ छोटी आँत इससे जुड़ती है और यह भाग नीचे से ऊपर की ओर आता है, फिर मुड़ता है और उदर में तिरछा पड़ा रहता है जिसको ट्रांसवर्स कोलन (Transverse Colon) कहते हैं, फिर यह नीचे की ओर मुड़ता है और इस भाग को डिसेण्डिग कोलन (Descending Colon) कहते हैं।
बड़ी आंत यद्यपि पाचन में विशेष सहयोग नहीं करता है। इसका प्रधान कार्य शोषण का है । इसके अन्दर स्थित कोषा आहार रस में से रसांश का शोषण करते हैं और मलांश नीचे को जाता रहता है। छोटी आंत के समान बड़ी आंत में भी कृमिवत् आकुंचन हुआ करता है । इस आकुंचन (गति) से क्षुद्रान्त्र से आये हुए ‘आहार रस’ (Chyme) के जल भाग का शोषण होता है !
आंतों की गतियाँ (Movements of Intestines) – लहवन्त्र एवं बड़ी आंत में विशेष प्रकार की गतियाँ होती हैं। इन गतियों के कारण ही भोजन का पाचन एवं शोषण होता है। लहवन्त्र में चार प्रकार की गतियाँ शरीर शास्त्रियों ने बतलाई हैं :-
1. Peristalsis – इस गति से भोजन ऊपर से नीचे की ओर चलता है । इसमें संकोच की तरंग ऊपर से आरम्भ होती हैं और नीचे को जाती हैं। प्रत्येक 3-4 मिनट में एक संकोच की लहर दौड़ती है जिससे Peristalsis होता है।
2. Segmentation Contraction – इस प्रकार की गति 1 मिनट में 10 बार होती है। इसमें संकोच एक स्थान पर होता है और पुन: दूसरे स्थान पर। इस प्रकार की गति से भोजन आगे नहीं बढ़ता अपितु मिश्रित होता रहता है।
3. Pendulum Movement – यह भी 1 मिनट में 10 बार होता है। यह आन्त्र की लम्बायमान मांसपेशियों के संकोच से उत्पन्न होता है । इससे भोजन कभी आगे की ओर और कभी पीछे की ओर जाता है।
4. Vermiform Movement – यह गति कोलन के अनियमित संकोच के कारण होती है।
लहवन्त्र से भोजन बड़ी आंत में आता है, वहाँ उसमें से जलीयांश का शोषण होता है। बड़ी आंत में भी लहवन्त्र की भाँति Segmentation Contraction होते हैं, जिससे भोजन और भी मिश्रित हो जाता है, जिससे जलीयांश का शोषण सरलता से होता रहता है । फिर Peristalsis Movement होती है जिससे मल नीचे को चला जाता है और ‘रेक्टम’ में एकत्रित होता रहता है। आमाशय में आहार के पहुँचने पर बड़ी आंत में भी गति होने लगती इसे ही (Gastrocolic Reflex) कहते हैं।
बड़ी आंत के कार्य – छोटी आंत से बचा हुआ आहार रस बड़ी आंत में आता है। जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि बड़ी आंत में पाचन का कार्य बिल्कुल नहीं होता है, इसमें केवल आहार-रस का शोषण होता है। भोजन करने के साढ़े चार घण्टे बाद बड़ी आंत में आना आरम्भ हो जाता है। जिस समय यहाँ भोजन आता है उसमें 95% जल रहता है। साथ में प्रोटीन, कार्बोज और वसा का भी कुछ भाग होता है। बड़ी आंत में इन सबका आत्मीकरण (Absorption) होता है। इसमें जल का बहुत बड़ा भाग सोख लिया जाता है। अनुमान लगाया गया है कि बड़ी आंत में 24 घण्टे में 400 सी०सी० अनुपयोगी (बेकार) जल का शोषण होता है।
बड़ी आंत में भोजन बहुत धीरे-धीरे आगे चलता है। यहाँ से भोजन का जलीय भाग (Liquid Portion) रक्त में चला जाता है और गाढ़ा भाग (मल) मलाशय की ओर चलता है जो मलाशय से गुदा में होता हुआ मलद्वार (Anus) से बाहर निकल जाता है। बड़ी आंत में सड़ांध उत्पन्न करने वाले अनेक कीटाणु होते हैं जो कई प्रकार के हानिकारक पदार्थ ‘इण्डोल’ और ‘स्कटोल’ आदि बनाकर मल में बदबू पैदा कर देते हैं। मल में दुर्गन्ध इन्हीं के कारण आया करती है।
मल में जीवाणुओं (Germs) की संख्या बहुत अधिक होती है। एक बार के मल त्याग में लगभग 12800,00,00,00,000 जीवाणु मल के साथ बाहर निकलते हैं।
नोट – प्रोटीन का आत्मीकरण (Absorption) आमाशय और छोटी आंत में, कार्बोज का मुँह, आमाशय, पक्वाशय और छोटी आंत में, वसा का छोटी आंत में, लवण का मुँह, आमाशय, छोटी आंत और बड़ी आंत में जल का कुछ-कुछ छोटी आंत में और विशेषकर बड़ी आंत में आत्मीकरण होता है ।