परिचय : 1. भटकटैया दो प्रकार की होती हैं : (1) क्षुद्र यानी छोटी भटकटैया और (2) बृहती यानी बड़ी भटकटैया। दोनों के परिचय, गुणादि निम्नलिखित हैं :
छोटी भटकटैया : 1. इसे कण्टकारी क्षुद्रा (संस्कृत), छोटी कटेली भटकटैया (हिन्दी), कण्टिकारी (बंगला), मुईरिंगणी (मराठी), भोयरिंगणी (गुजराती), कान्दनकांटिरी (तमिल), कूदा (तेलुगु), बांद जान बर्री (अरबी) तथा सोलेनम जेम्थोकार्पम (लैटिन) कहते हैं।
2. भटकटैया का पौधा जमीन पर कुछ फैला हुआ, काँटों से भरा होता है। भटकटैया के पत्ते 3-8 इंच तक लम्बे, 1-2 इंच तक चौड़े, किनारे काफी कटे तथा पत्र में नीचे का भाग तेज काँटों से युक्त होता है। भटकटैया के फूल नीले रंग के तथा फल छोटे, गोल कच्ची अवस्था में हरे तथा पकने पर पीले रंग की सफेद रेखाओं सहित होते हैं।
3. यह प्राय: समस्त भारत में होती है। विशेषत: रेतीली भूमि तथा बंगाल, असम, पंजाब, दक्षिण भारत में मिलती है।
4. भटकटैया के दो प्रकार होते हैं : (क) नीलपुष्पा भटकटैया (नीले फूलोंवाली, अधिक प्राप्य) । (ख) श्वेतपुष्पा भटकटैया (सफेद फूलोंवाली, दुर्लभ)
बड़ी भटकटैया : 1. इसे बृहती (संस्कृत), बड़ी भटकटैया बनभंटा (हिन्दी), व्याकुड (बंगला), डोरली (मराठी), डमीरिंगणी (गुजराती), पाम्परामल्ली (तमिल) तथा सोलेमन इण्डिकम (लैटिन) कहते हैं।
2. बड़ी भटकटैया का पौधा 1-4 फुट ऊँचा, बैंगन की तरह अनेक शाखा-प्रशाखाओं तथा कुछ टेढ़े काँटों से युक्त होता है। पत्ते 3 से 6 इंच लम्बे, 1-4 इंच चौड़े बैंगन के पत्तों की तरह, कटे-किनारेदार तथा तीक्ष्ण काँटेवाले होते हैं। फूल बैंगनी रंग के, बैंगन के फूलों की तरह होते हैं। फल कच्ची अवस्था में हरे और सफेद रेखाओं से युक्त तथा पकने पर पीले रंग के होते हैं। यह श्वेतपुष्पा तथा नीलपुष्पा दो प्रकार की होती हैं।
3. यह विशेषत: पंजाब और दक्षिण भारत की पथरीली भूमि में होती है।
रासायनिक संघटन : छोटी भटकटैया में सोलेनिन नामक एल्केलायड, पोटेशियम क्लोराइड, पोटाशियम, नाइट्रेट, लौह तथा कुछ सेन्द्रिय अम्ल तथा फलों में सोलेनकार्पिन तत्त्व पाया जाता है। बड़ी बड़ी भटकटैया में सोलेनिडिन नामक एल्केलायड मिलती है।
भटकटैया के गुण : यह स्वाद में कड़वी, चरपरी, पचने पर कटु तथा हल्की, रूखी, तीक्ष्ण और गर्म है। इसका मुख्य प्रभाव श्वसन-संस्थान (रेस्पायरेटरी सिस्टम) पर कफहर रूप में पड़ता है। यह पीड़ाशामक, शोथहर, कृमिनाशक, संज्ञाप्रबोधक, अग्रिदीपक, रक्तशोधक, मूत्रजनक, गर्भाशय-संकोचक तथा ज्वरहर है।
भटकटैया के उपयोग
1. श्वास : भटकटैया के 1 तोला रस में थोड़ी हींग मिलाकर मधु के साथ देने पर 3 दिनों में श्वास ठीक हो जाता है।
2. कास : बच्चे जब खाँसते-खाँसते दूध डाल देते और उनका मुँह लाल हो जाता है, तो भटकटैया के फूल को केसर में पीसकर शहद के साथ दें। फूल को जलाकर मधु मिलाकर देने से भी शीघ्र लाभ होता है।
3. पथरी : दोनों भटकटैयों को पीसकर उनका रस मीठे दही के साथ सप्ताहभर सेवन करने से पथरी निकल जाती तथा मूत्र साफ आने लगता है।
4. फुन्सियाँ : सिर पर छोटी-छोटी फुन्सियाँ होने पर भटकटैया का रस शहद में मिलाकर लगायें।