कुछ समय के लिए दिमाग के सरिब्रल हिस्से में अनियमितता (बाधा आ जाने) के कारण अचेतनावस्था आ जाती है और दिमाग के उक्त हिस्से की नसों का आवेग ( विद्युत प्रवाह) बढ़ जाता है। फलत: रोगी को कुछ क्षणों के लिए दौरा पड़ जाता है। मिर्गी के रोगी को ऐसा बार-बार होता है। यह सब अचानक और बहुत जल्दी हो जाता है।
मिर्गी के कारण
(क) अज्ञात कारणों से
(ख) अपायचय संबंधी
1. ऑक्सीजन शून्यता होने पर ( दिमागी उतकों को आक्सीजन न मिल पाने की स्थिति में) ।
2. रक्त में शर्करा की अधिक कमी हो जाने की स्थिति में।
3. शरीर में शर्करा की कमी और क्षारीय तत्वों की अधिकता होने पर।
4. रक्त में प्रोटीन उपाचय के बाद बचे अवयवों जैसे यूरिया आदि की अधिकता होने की स्थिति में, जिसके कारण उल्टी आना, जी मिचलाना, चक्कर आना, ऐंठन एवं दौरा पड़ना आदि हो सकता है।
5. यकृत की खराबी के कारण होने वाली अचेतनावस्था, जिसमें रोगी बहुत देर तक पड़ा रहता है व इस अवस्था से रोगी को मुश्किल से मुक्ति मिल पाती है।
6. कोकेन निकेथमाइड आदि अंग्रेजी दवाओं के प्रभाव स्वरूप।
7. अधिक तेज बुखार की अवस्था में
(ग) दिमागी ऊतक के एक हिस्से की कार्यक्षमता क्षीण हो जाने के कारण :
1. चोट लगने की वजह से
2. किसी अनियमित कोशिका वृद्धि की वजह से
3. बच्चे के पैदा होते समय सिर पर चोट लगने के कारण
4. धमनियों व शिराओं में रक्तप्रवाह बाधित होने के कारण।
5. संक्रमण, यथा – क्षयरोग, फोड़ा, दिमाग की झिल्लियों की सूजन, सिफलिस रोग आदि।
6. केंद्रीय नाड़ी तंत्र के सफेद द्रव्य में बीच-बीच में से नसों की मायनिल झिल्ली नष्ट होने लगती है।
मिर्गी के लक्षण एवं प्रकार
(क) ग्रांडमाला मिर्गी का प्रकार : –
1. दौरा : दौरे से पूर्व की अवस्था का आभास लगभग 60% रोगियों में होने लगता है। रोगी को एक प्रकार की असत्यता का आभास होने लगता है। अजीब-अजीब सी दुर्गध सुंघाई पड़ने लगती है। मुंह में विभिन्न प्रकार के स्वाद का भ्रम हो जाता है। रोगी हर आस-पास दिखाई पड़ने वाले व्यक्ति से मेलजोल बढ़ाने का प्रयास करता है।
2. शरीर ऐंठने लगता है, रोगी चेतना शून्य हो जाता है, मांसपेशियों में खिंचाव एवं ऐंठन होने लगती है, और फिर क्रमबद्ध तरीके से मांसपेशियों में खिंचाव व ढीलापन होने लगता है।
3. ऐंठन के बाद की अवस्था : इसमें रोगी देर तक अचेतन पड़ा रहता है।
(ख) -मालः
1. अज्ञात कारणवश, मुख्यतया बच्चों में होती है।
2. बच्चे की आँखे उठ जाती हैं, अचानक बोलना बंद कर देता है और कुछ पल के लिए अचेतन अवस्था आ जाती है। बच्चा आकाश में टकटकी लगाकर घूरने लगता है।
3. टेम्पारल लाब एपिलेप्सी : दिमाग के कनपटी के हिस्से में किसी परेशानी, बीमारी के कारण अचेतन अवस्था आ सकती है और दौरा पड़ने लगता है। इसे साइकोमीटर एपिलेप्सी भी कहते हैं।
4. स्टेट्स एपिलेप्टिकस : इस अवस्था में रोगी को लगातार जल्दी-जल्दी दौरे पड़ते हैं और रोगी चेतन अवस्था में नहीं आ पाता अर्थात् इससे पूर्व कि रोगी की चेतनावस्था लौटे एक दौरे के बाद दूसरा दौरा आ जाता है।
प्रबंध-नियंत्रण एवं उपचार :
1. ऐसे रोगियों एवं इनके रिश्तेदारों को इस रोग के कारणों एवं इसके उपचार आदि के बारे में समझाना आवश्यक है। यह न तो अभिशाप है और ना ही कलंक।
2. ऐसे रोगियों को बहिष्कार की नहीं अपितु आत्मविश्वास एवं आशा की आवश्यकता होती हैं।
3. बच्चों पर (जिन्हें मिर्गी रोग है) एक सीमा तक ही अंकुश लगाना ठीक रहता है। हां, जब तक वे ठीक न हो जाएं, सड़क पर साइकिल चलाना अथवा अकेले तैरने जाना आदि कार्यों पर प्रतिबंध होना चाहिए।
4. बच्चों को, जब तक कि मिर्गी रोग ठीक न हो जाए, साधारण स्कूल में ही पढ़ाना चाहिए। ठीक होने तक पढ़ाई आदि का मानसिक तनाव ठीक नहीं होता।
5. यदि रोगी को सोते समय दौरे पड़ते हों तो उसे कार आदि नहीं चलानी चाहिए।
6. दौरे के समय रोगी के दांतों के बीच में कपड़ा रख देना चाहिए, जिससे उसकी जीभ बगैरह न कटे।
मिर्गी का होमियोपैथिक उपचार : लक्षणों की समानता एवं रोगी की सामान्य प्रवृत्ति, स्वभाव एवं शारीरिक संरचना और रोग के पूरे विवरण के आधार पर निम्नलिखित होमियोपैथिक औषधियां प्रयोग की जाती हैं।
अर्जेण्टम नाइट : दौरे से पूर्व आंखों की पुतलियां फैल जाती हैं। दौरे की अवस्था में शरीर ऐंठ जाता है और अत्यधिक बेचैनी रहती है। रोगी की मानसिक अवस्था अजीब सी हो जाती है। उसे लगता है (दौरे से पूर्व अथवा बाद में) कि समय बहुत धीरे-धीरे बीत रहा है, जल्दबाजी रहती है, रोगी को जरा-जरा सी बात पर उत्तेजना आ जाती है, मीठा खाने की इच्छा होती है, रोगी गरमी बदाश्त नहीं कर पाता।। 30 शक्ति में दवा का प्रयोग करें।
क्यूप्रम मेटेलिकम : इसमें रोगी के घुटनों, अंगुलियों व अंगूठे में ऐंठन, दौरे से पूर्व ही प्रारंभ हो जाती है। रोगी में दौरे से पूर्व की अंवस्था का प्रारंभ (‘ओरा’ की अवस्था) प्राय: घुटनों से होता है जो कि ऊपर की बढ़ता है।
‘ओरा’ की अवस्था में हाथ-पैरों एवं घुटनों की ऐंठन, चलाने-फिराने व छूने से भी बढ़ती है। स्त्रियों में माहवारी से पूर्व में ऐसे लक्षण मिलते हैं। पसीना आने के बाद रोगी बेहतर महसूस करने लगता है। ऐसी अवस्था में 6 से 30 शक्ति के मध्य दवा का प्रयोग करना चाहिए।
कैल्केरिया आर्सेनिका : दौरे से पहले सिर में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है। मासिक स्राव बंद होने पर मोटी स्त्रियों में दौरा पड़ने की स्थिति रहती है। जरा सी भावनात्मक अव्यवस्था में हृदय गति बढ़ जाती है और ‘ओरा’ की अवस्था प्रकट होने लगती है।
ओनेन्थी क्रोकाटा : मासिक स्राव के समय एवं गर्भावस्था के दौरान दौरे पड़ना, शरीर ऐंठ जाना आदि लक्षण मिलने पर 6 शक्ति में दवा प्रयोग करनी चाहिए।
आर्ट मेसिया वल्गेरिस : बच्चों में एवं किशोरावस्था में लड़कियों में दौरे पड़ना। इसमें दौरों से पूर्व ‘ओरा’ की अवस्था प्रकट नहीं होती। व्यग्रता, उद्वेग अथवा भय के कारण दौरा पड़ने लगता है। प्रायः ‘पटिट्मल’ प्रकार की मिर्गी के लक्षण प्रकट होते हैं। अत्यधिक हस्तमैथुन की आदत के बाद भी दौरे पड़ने लगें तो यह दवा कारगर है। रोगी रात में सोते-सोते उठ जाता है, काम करता है फिर सो जाता है, और सुबह उठने पर उसे रात के घटनाक्रम के बारे में याद ही नहीं रहता। बुखार होने पर पसीना अधिक आता है जिसमें से ‘लहसुन’ जैसी बदबू आती है। तीन एक्स शक्ति में प्रयोग करनी चाहिए।