इस रोग में मुंह की आवरण-झिल्ली का लाल हो जाना, फूल जाना, जख्मयुक्त होना, कभी-कभी पीब बहने लगना, जीभ का लाल तथा फूल जाना, दाँतों के मसूढ़े तथा तालु का फूलना, श्वास में दुर्गन्ध एवं जीभ पर लाल या सफेद रंग के दाने उभर आना-ये लक्षण प्रकट होते हैं । यह रोग अपच, गर्म तथा जलती हुई वस्तुओं का सेवन, अधिक मात्रा में चूना अथवा चीनी का सेवन, खून का बिगड़ जाना, पारे का अपव्यवहार, पौष्टिक-भोजन की कमी तथा स्फोटक-ज्वर के बाद अनेक कारणों से होता है ।
इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग हितकर है :-
बोरेक्स 3x, 6x वि०, 30 – यह बच्चों तथा वयस्कों के सामान्य छालों में उत्तम दवा है । इस औषध के सेवन के साथ ही 1 ग्रेन ‘बोरिक’ को 1 औंस पानी में डाल कर उससे कुल्ले करते रहने पर शीघ्र लाभ होता है। मुंह के भीतर, गर्मी, जीभ पर लाली, लाल रंग के छाले, मुंह के स्वाद में कड़वापन तथा नमक एवं तीखी वस्तु खाने पर कष्ट होना-इन सब लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।
मर्क-सोल 30 – डॉ० ज्हार के मतानुसार मुंह के छालों की मुख्य औषध है। यह मुंह के छालों के अतिरिक्त पेट तथा आतों की श्लैष्मिक-झिल्ली के घावों तक को ठीक कर देती है ।
सल्फर 30 – यदि ‘मर्क-सोल’ से लाभ होना आरम्भ हो तो, परन्तु 5-6 दिन बाद ही वह रुक जाय, तो इसे देने से तुरन्त लाभ होता है।
कैल्केरिया-कार्ब 6, 30 – यदि ‘सल्फर‘ से भी पूरा लाभ न हो तो फिर इसे देने से पूर्ण लाभ प्राप्त होगा । इस प्रकार क्रमश: मर्क, सल्फर तथा कैल्केरिया के प्रयोग से इस रोग में पूरा लाभ मिलता है।
नेट्रम-म्यूर 30 – यदि मुंह में छालों के साथ होठों पर भी छाले हों तो इस औषध के प्रयोग से लाभ होता है। मुंह के भीतर की सूजन के साथ जीभ पर नक्शा बना होना तथा लाल निशान होने के लक्षणों में इसे दें ।
सल्फ्यूरिक-एसिड 3, 30 – मुंह में छाले, मसूढ़ों से खून निकलना, श्वास से दुर्गन्ध आना, सम्पूर्ण शरीर से खटास की गन्ध आना-इन लक्षणों में तथा रोगी पायरिया का शिकार हो तो यह औषध लाभ करती है ।
कालि-क्लोर 3, 6 – यदि मसालेदार भोजन के कारण मुंह में छाले पड़ गये हों तथा बहुत अधिक लार बहती हो तो इस औषध के प्रयोग से लाभ होता है।
कार्बो-वेज 6 – नमक अथवा पारे के अपव्यवहार के कारण रोग हुआ हो, मसूढ़ों से दुर्गन्ध आती हो और उनसे खून गिरता हो तो इस औषध को देने से लाभ होगा ।
मर्क्यूरियस 3 – मुंह के भीतर घाव, छाले, अत्यधिक लार बहना तथा मसूढ़ों से खून गिरना – इन लक्षणों में हितकर है।
आर्सेनिक 3 – घाव में जलन, ज्वर का भाव तथा अत्यधिक कमजोरी के लक्षणों में लाभकर है ।
नाइट्रिक एसिड 6, 30 – पारे के अपव्यवहार के कारण उत्पन्न मुंह के घाव में हितकर है। मुंह के दुखने के साथ ही, होठों का जोड़ों से फटना, मुंह के भीतरी भाग में चमकदार लाली तथा सूजन एवं मुंह से दुर्गन्ध आने के लक्षणों में इसे दें।
हिपर-सल्फर 6 – पारे के अपव्यवहार के कारण उत्पन्न मुंह के घाव में यह औषध लाभ करती है। मुंह के कोनों में छिछड़े से पड़ जाना तथा ठोड़ी पर छाले हो जाने के लक्षणों में इसे दें ।
बेलाडोना 30 – मुंह में खुश्की, मुंह तथा गले का भीतर से लाल होना तथा पानी पीने के प्रति अरुचि-इन लक्षणों में यह औषध हितकर है ।
ऐरम-ट्राइफाइलम 3, 30 – मुंह के तालु, होंठ एवं नाक में दुखन तथा मुंह के कोनों का फट कर दुखने लगना – इन सब लक्षणों में हितकर है ।
कैप्सिकम 3, 6 – मुंह का भीतर से सूज जाना, जीभ के अग्रभाग में जलन, प्यास अधिक लगना, परन्तु पानी पीते ही शरीर में कंपकंपी होने लगना – इन लक्षणों में प्रयोग करें ।
मर्क-कोर 6 – मुंह में छाले, गले की ग्रन्थियों में सूजन, थोडे स्पर्श मात्र से ही गले में दर्द होने लगना तथा दर्द का कान तक पहुँचना – इनमें हितकर है।