रूटा ग्रैवियोलेंस का होम्योपैथिक उपयोग
( Ruta Graveolens Homeopathic Medicine In Hindi )
(1) शरीर में कुचले जाने का-सा दर्द – सिर से पांव तक रोगी को शरीर के कुचले जाने का-सा दर्द होता है। सारा शरीर इतना दु:खता है कि किसी करवट भी नहीं लेटा जा सकता। खोपड़ी, आंखें, जंघा, टांगें, गिट्टे – इन सब में ऐसी पीड़ा होती है मानो किसी ने पीट कर शरीर की भुजिया बना दी हो। रोगी के हर जोड़ में प्रत्येक हड्डी में ऐसी पीड़ा होती है कि उससे झुका तक नहीं जाता। हाथ की कलाई और पैर के गिट्टों में ऐसा दर्द होता है मानो अपनी जगह छोड़ गये हों, मानो मोच आ गयी हो।
(2) हड्डी के परिवेष्टन के कुचले जाने से दर्द – डॉ० नैश का कहना है कि रूटा का अस्थि-परिवेष्टन के साथ, कलैंडुला का चोट लग कर फटने और छितर-बितर हो जाने वाले जख्म के साथ, स्टैफिसैग्रिया का छुरा या अस्तुरा जैसे तेज औजार से हो जाने वाले घाव के साथ, रस टॉक्स का मिचकोड़ के साथ, और आर्निका का कोमल अंगों के कुचले जाने के साथ विशेष-संबंध है, और इन संबंधों को दृष्टि में रखकर ही दवा का निश्चय करना चाहिये। शरीर में जहां-जहां हड्डी के ऊपर मांस कम होता है, उस स्थान में हड्डी के ऊपर का आवरण चोट लगने से दु:खने लगता है, कभी-कभी उस जगह सुपारी की तरह की गांठ पड़ जाती है। घुटने के नीचे की हड्डी-टीबिया-जैसी हड्डियों की अस्थि-परिवेष्टनों की चोट में रूटा से विशेष लाभ होता है अस्थि-परिवेष्टन की चोट में उस जगह के कुचले जाने का-सा दर्द होता है। ऐसी चोट में सिम्फ़ाइटम के बाद इसे देने से लाभ होता है।
(3) रूटा तथा रस टॉक्स की तुलना ( रूटा का क्षेत्र अस्थि-परिवेष्टन है, रस टॉक्स का क्षेत्र मांसपेशी है ) – प्रकृति की दृष्टि से ये दोनों औषधियां एक ही वर्ग की हैं, दोनों की शिकायतें एक-दूसरे से मिलती हैं। दोनों में ठंड से रोग की वृद्धि होती है, नमीदार हवा से रोग बढ़ता है, शरीर के अंगों का जरूरत से ज्यादा श्रम करने से, अत्यधिक-श्रम से शिकायतें पैदा हो जाती हैं, परन्तु रूटा का विशेष-लक्षण यह है कि इसकी शिकायतों का केन्द्र शरीर के वे स्थल हैं जिनमें हड्डी पर मांस बहुत पतला रहता है। उदाहरणार्थ, घुटने के नीचे ‘टीबिया’ की हड्डी पर मांस बहुत कम पाया जाता है, कलाई पर, गिट्टे पर मांस कम रहता है। इन स्थलों पर चोट लगने का प्रभाव सीधा अस्थि-परिवेष्टन पर पड़ता है। ऐसी चोटों में रस टॉक्स काम नहीं देता, रूटा काम देता है।
(4) चोट के बाद गाँठ पड़ जाना – अस्थि-परिवेष्टन की जिन चोटों का हमने वर्णन किया, वे धीरे-धीरे ठीक हो जाती हैं, परन्तु अस्थि-परिवेष्टन का चोट वाला हिस्सा मोटा हो जाता है, वहां गांठ पड़ जाती है, वह दर्द करता रहता है और ठीक होने में नहीं आता। कभी-कभी यह गांठ महीनों, सालों बनी रहती है। इस प्रकार की गांठों में रूटा लाभप्रद है। चोट में आर्निका के बाद कभी-कभी देना पड़ता है।
(5) अांख की मांसपेशी से अधिक काम लेने (बारीक टाइप पढ़ने, धड़ी साजी का काम करने, सिलाई का काम करने) से आखों में दर्द, सिर-दर्द; जलन; आंखों की कमजोरी – जो लोग आंखों से ज्यादा काम लेते हैं, उनकी आंखें की मांसपेशियों पर बोझ पड़ने से आंख के गोलक में दर्द होने लगता है, आंख पर जोर पड़ने के कारण सिर-दर्द भी होने लगता है, आंखें लाल हो जाती हैं, जलन होने लगती है। किताब के बारीक अक्षर पढ़ने से, बारीक सिलाई करने से, घड़ीसाज का काम करने से जिसमें बारीक पुर्जों पर आंखें गड़ानी पड़ती हैं आंखों में दर्द होने लगता है, रोगी किसी एक केन्द्र पर ध्यान नहीं गड़ा सकता। आखों की ऐसी शिकायतों में इस से लाभ होता है।
(6) कलाई और गिट्टे का मुड़ जाना – इस औषधि का अस्थि-परिवेष्टन पर विशेष प्रभाव है – यह ऊपर लिखा जा चुका है। हाथ की कलाई और पैर के गिट्टों में भी हड्डियों के ऊपर मांस कम होता है, वहां भी इस औषधि का विशेष प्रभाव है। इन स्थानों की मांस-पेशियां जब सिकुड़ जाती हैं, तब कलाई और गिट्टे मुड़ जाते हैं। ऐसी अवस्था में रूटा की स्मरण करना चाहिये।
(7) शियाटिका का दर्द (Sciatica) – इन औषधि के लक्षणों में दर्द एक मुख्य-लक्षण है। किसी भी तरह का दर्द हो, वह इसके प्रभाव क्षेत्र में आता है – काटा हुआ, चीरता हुआ, किसी प्रकार का भी शियाटिका का दर्द होने पर इस ओषधि की याद आती है। दर्द पीठ से शुरू होता है, कूल्हों से होता हुआ जांघों में चला जाता है। रोगी रात को ज्यों ही बिस्तर पर लेटता है कि दर्द शुरू हो जाता है। कोलोसिन्थ के प्रकरण में हम शियाटिका की औषधियों का वर्णन कर आये हैं।
(8) कांच निकल पड़ना – जरा-सा भी जोर लगाने से कांच (गुदा-द्वार) पर निकल पड़ना, या रोगी झुके तो भी कांच निकल आना इस औषधि का प्रधान-लक्षण है। प्रसव के बाद कांच निकलने में भी इससे लाभ होता है। कांच निकल पड़ने का लक्षण इग्नेशिया, पोडोफाइलम तथा म्यूरियेटिक एसिड में भी पाया जाता है। इग्नेशिया में नक्स की तरह बार-बार पाखाना जाने के साथ कांच निकल आने की प्रधानता है, पतले दस्त से रोगी को कष्ट होता है; पोडो में कांच निकलने के साथ पतला दस्त आना मुख्य है; म्यूरियेटिक ऐसिड में पाखाने के साथ बवासीर की मुख्यता है; रूटा में जरा-से जोर लगाने या झुकने मात्र से कांच निकल आना मुख्य-लक्षण है।
(9) मूत्राशय पर पेशाब के लगातार दबाव के कारण बार-बार पेशाब जाना – रोगी मूत्र को रोक नहीं सकता। मूत्राशय में मूत्र के आते ही बाथ-रूम जाने की इच्छा होती है। अगर रोगी जबर्दस्ती से मूत्र को रोक लेता है, तो बाद को पेशाब करना कठिन हो जाता है, मूत्राशय में दर्द होने लगता है और भरा हुआ मूत्राशय खाली नहीं होता।
(10) शक्ति तथा प्रकृति – 1 से 6; आंखों में इसका लोशन बनाकर लगाया जाता है। (ठंड या नमी से रोग बढ़ता है)