लसीका-वाहिनियों के कार्य
जब रक्त केशिकाओं के पास पहुँचता है तब उसका कुछ तरल भाग दीवारों से रिस-रिसकर बाहर आता है। यह रिसकर बाहर आने वाला तरल पदार्थ जैसा कि हम जानते हैं कि ‘लसीका’ होता है और लसीका में रक्त के अनेक पोषण पदार्थ घुले रहते हैं। ये लसीका रक्त में से ऑक्सीजन लेकर शरीर के तन्तुओं को पहुँचाता है और उनकी कार्बन-डाई-ऑक्साइड को बाहर निकालने में सहायता देता है। इस प्रकार लसीका-वाहिनियों द्वारा शरीर के तन्तुओं का पोषण होता है।
लसीका-वाहिनी और शिरा में अन्तर
(Difference between Vein and Lymphatic Channels)
लसीका-वाहिनियों की रचना, शिराओं की रचना जैसी ही होती है। बहुत ही मामूली सा अन्तर यह होता है कि लसीका वाहिनियों की दीवारें बारीक होती है। यही कारण है कि लसीका वाहिनी के खाली हो जाने पर ये पिचककर गायब हो जाती हैं। जब लसीका वाहिनियाँ खाली हो जाती हैं तो वे इतनी पिचक जाती है कि उनको आसानी से ढूँढा नहीं जा सकता है। लसिका वाहिनियों के बीच में लम्बाई के रुख में कपाट (Valves) लगे रहते हैं। लसीका वाहिनियाँ जहाँ से होकर गुजरती हैं, वहाँ की माँसपेशियाँ उनको गतिशील बनाये रखती हैं। लसीका-वाहिनियों और शिराओं की रचना में यही अन्तर होता है।
लसीका-संस्थान का कार्य
लसीका संस्थान तन्तुओं (टिश्यूओं) का पोषण करता है। यह तन्तुओं को भोजन पहुँचाकर उनको जीवित रखता है। यह रोग के कीटाणुओं से शरीर की रक्षा भी करता है।
लसीका ग्रन्थियाँ धमनी का काम करती हैं जो कीड़े लसीका में पाये जाते हैं और जिनके द्वारा मानव जीवन को हानि हो सकती है, लसीका ग्रन्थियाँ इन कीड़ों को मार डालती हैं। इसलिए शरीर के किसी स्थान पर रसौली और गन्दे जख्मों से ये लसीका ग्रन्थियाँ सूज जाती हैं । (क्योंकि कीड़ों को मारने हेतु लसीका ग्रन्थियों को अधिक कार्य करना पड़ता है।) लसीका ग्रन्थियों में रक्त के श्वेत कण भी पैदा होते हैं। अस्तु, लसीका संस्थान मानव शरीर के तन्तुओं को भोजन पहुँचाता है और रोग कारक कीटाणुओं से हमारे शरीर की रक्षा करता है।