(Red Blood Corpuscles) – इन्हें अंग्रेजी में (R.B.C.) भी कहा जाता है। इनका निर्माण अस्थिमज्जा (Bone Marrow) में होता है। अस्थि में प्रवेश करने पर पोषक धमनी कई एक-दूसरे से सम्बन्धित गुहाओं (Inter Communicating Sinusoids) में विभाजित हो जाती है । गुहाओं की भित्ति (दीवार) अन्त:कला से आच्छादित रहती है। यही रक्त निर्माण के स्थान हैं। रक्त निर्माण के समय अन्त:कला फूल जाती है तथा जीवकोष लाल कण निर्माण के लिए विभाजित होने लगते हैं । ये जीवकोष लालकण बनने के लिए क्रमश: मेगेलो ब्लास्ट (Megaloblast), इर्थोलोब्लास्ट (Erythroblast) नोर्मो ब्लास्ट (Normoblast) प्रारम्भिक रक्त कण या रेटीक्यूलोसायट तथा पूर्ण रक्त कण या आर्थोसायट नाम से सम्बोधित अवस्थाओं में होकर गुजरते हैं।
मेगेलो ब्लास्ट अन्त: कलीय कोषों (Endothelial Cells) से निर्मित होते हैं तथा उनमें रक्त रंग (Haemoglobin) की भी किंचित मात्रा होती है। ज्यों-ज्यों यह वृद्धि को प्राप्त हो जाते हैं, रंग-पदार्थ की मात्रा बढ़ती जाती है, जीव कोष का कण नष्ट होता जाता है तथा वह क्रमश: रक्तकण के आकार का बनता जाता है। अपूर्ण रक्त कण चिपचिपे होते हैं तथा एक-दूसरे से चिपकते रहते हैं। पूर्ण हो जाने पर वे अलग-अलग हो जाते हैं तथा प्लाजमा के अन्दर प्रवेश कर शिराओं में होकर सब रक्त प्रवाह में पहुँच जाते हैं।
लाल रंग के सैल शरीर में उत्पन्न होते हैं। भ्रूणावस्था में रक्तकणों की उत्पत्ति याल्कसेक के वेस्कुलर एरिया (Vascular Area) में होती है। जन्म के 1 या 2 मास पूर्व यकृत तथा प्लीहा भी रक्त का निर्माण प्रारम्भ कर देते हैं। जन्म होने के पश्चात् रक्तकणों की उत्पति अस्थि मज्जा में होती है । सर्वप्रथम अस्थि- मज्जा की कोशिकाओं में मेग्लो ब्लास्ट की उत्पत्ति होती है। मैग्लोब्लास्ट विभक्त होकर Early Erythroblast में परिवर्तित हो जाते हैं। इस अवस्था में इनके अन्दर कुछ हीमोग्लोबिन भी आ जाता है। अन्य परिवर्तनों के पश्चात् जब इनमें न तो न्युक्लिीयस रहता है और न कोई जाल रहता है, उस अवस्था को एरिथो सायट या रक्त कण (R.B.C.) कहा जाता है।
रक्त कणों की गणना से ज्ञात होता है कि एक क्यूविक मिलीमीटर में 50,000,00 पुरुषों में और स्त्रियों में 45,00,000 के लगभग होते हैं। एक घन इंच में 81,900,000,70 के लगभग रक्त कण आ जाते हैं। एक रक्तकण का 1/100,000,000,00 माशा भार होता है या दूसरे शब्दों में दस अरब रक्त कणों का भार 1 माशा होता है। 40 किलो के शरीर के भाग पर 1,00,00,000,000,00,000 (एक पदम्) के लगभग रक्त कण होते हैं । यदि शरीर के समस्त रक्त कणों को 1-1 करके पृथ्वी पर बिना कुछ जगह छोड़े बिछा दिया जाये तो उनसे 3,300 वर्गगज का स्थान ढंक जायेगा। इनसे 1 फुट चौड़ा रास्ता, 6 इंच लम्बा और आधा इंच चौड़ा लाल फीता 140 मील लम्बा बन सकता है। यदि इनको एक-एक करके मिला दिया जाये तो उनकी 2,00,000 मील लम्बी लाइन तैयार हो जायेगी। रक्त-कणों की आयु साधारणतय: 3-4 मास की होती है। फिर इनकी मृत्यु हो जाती है। इस अवस्था में इनमें से हीमोग्लोबिन पृथक हो जाता है। हीमोग्लोबिन में से लोहांश, यकृत, प्लीहा और अस्थिमज्जा में जमा हो जाता है, जो नवीन हीमोग्लोबिन बनाने के काम में आता है।
हीमोग्लोबिन एक प्रकार का संयुक्त प्रोटीन होता है। हीम अर्थात् लौह और ग्लोबिन एक विशेष प्रकार का प्रोटीन होता है। लोह के सम्पर्क में जब गैसें आती हैं तो वह स्वयं जल जाता है किन्तु ग्लोबिन नाम के प्रोटीन के साथ होने के कारण वह (लोह) नहीं जलता। हृदय से जब अशुद्ध रक्त फुफ्फुसों में पहुँचता है तो वहाँ यह हीमोग्लोबिन ही कार्बन-डाईऑक्साइड को बाहर फेंकता है और ऑक्सीजन को ग्रहण करता है और इस तरह रक्त के शुद्ध होने पर वह ऑक्सीजन युक्त होता है। 100 सी०सी० रक्त में 14.8 ग्राम हीमोग्लोबिन रहता है। इसको 100% हीमोग्लोबिन कहा जाता है।