इस विटामिन को ‘राइबोफ्लोबिन’ के नाम से भी जाना जाता है । इस तत्त्व को 1932-33 में विटामिन B2 और विटामिन ‘जी’ के नाम से वर्णित किया गया परन्तु 1937 में इसे राइबोफ्लोबिन नाम दिया गया और पुराने नामों का बी2 और जी) का उपयोग बन्द कर दिया गया ।
यह तत्त्व जल में घुलनशील है। खमीर, दूध, अण्डा, मछली, यकृत, दिल, गुर्दे तथा हरी शाक भाजी इस विटामिन की उपलब्धि का सर्वोत्तम एवं सरलतम् साधन है। माँस, अनाज और दालों में भी इस विटामिन की कुछ मात्रा रहती है । शाक-भाजियों में बढ़ती हुई पत्तियों और फुनगी में यह विटामिन अधिक होता है । (जैसे-जैसे पत्ते पुराने होते जाते हैं और इस विटामिन की मात्रा भी कम होती जाती है।) ताजी कच्ची मटर और सेम में भी यह विटामिन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है । हरी शाक सब्जियाँ खाने वाले व्यक्तियों को यह सहजता से प्राप्त हो जाता है इसके अतिरिक्त हरी घास खाने वाली गाय के दूध, अण्डे में भी यह पर्याप्त मात्रा में रहता है। इस विटामिन को रिबोफ्लेविन (Riboflavin) के अतिरिक्त लैक्टोफ्लेबिन (Lactoflavin) से भी जाना जाता है ।
इस विटामिन का शोषण आँतों में होता है। इसके लिए आँतों में हाइड्रोक्लोरिक एसिड की उपस्थिति आवश्यक है । पाचन-संस्थान के रोगों से प्रभावित व्यक्तियों में इसका अवशोषण नहीं हो पाता है । शरीर में उपस्थित इस विटामिन का अधिकांशत: यकृत, हृदय और गुर्दों में संग्रह हुआ करता है ।
इस विटामिन की कमी से ओठों के दोनों कोने मटियाले होकर फट जाते हैं । रोगी की श्लैष्मिक कला मटियाली, छाले युक्त और मोटी हो जाती है। जीभ का रंग, माँस की भाँति लाल छाले युक्त एवं विदारमय हो जाता है और वह मोटी तथा सूजी हुई होती है । नाक पक जाती है, आँखें, जीभ और होठों में जलन होती है, दृष्टि धुन्धली, कान के पीछे, अण्डकोषों के पास और नाक के आस-पास खुजली और शोथ हो जाती है । लिंगेन्द्रिय छिल जाना, योनि में खुजली और घाव हो जाते हैं ।
इस विटामिन की कमी से सर्वप्रथम पहचान में आने वाले लक्षण मुँह के कोनों पर पीलापन होना, होंठों में गीलापन और विदारयुक्त सूजन तथा मुँह के अन्दर छाले इत्यादि हैं। इसे विटामिन B2 हीनता Ariboflavinosis कहा जाता है। इस प्रकार के विकार में खुजली, जलन, प्रकाश असहयता, आँखों का सूखापन, conjunctiva की सूजन, रोहे हो जाना, टार्च से सूक्ष्मतापूर्वक निरीक्षण करने पर छिद्र देखते ही पता लग जाता है कि कनीनिका (Cornea) में अधिक रक्त भ्रमण हो रहा है। बाद में जाकर कनीनिका में व्रण (Corneal Ulcer) हो जाते हैं l
इस विटामिन की दैनिक आवश्यकता व्यक्ति की अवस्था, लिंग भेद, शारीरिक परिश्रम तथा कैलोरी पर निर्भर करती है । गर्भवती तथा धात्री स्त्रियों में तथा ज्वर की दशा में इस विटामिन की दैनिक आवश्यकता बढ़ जाती है । औसतन इसकी दैनिक आवश्यकता 2 से 3 मिलीग्राम आँकी गई है तथा इसकी मात्रा शरीर में कम होने पर 5 से 10 मिलीग्राम तक है । शरीर को स्वस्थ बनाये रखने के लिए उपर्युक्त दैनिक मात्रा 1 से 3 मि. ग्राम पर्याप्त है । इस विटामिन (तत्त्व) का पर्याप्त अंश किण्व या यीस्ट लिवर एक्सट्रेक्ट (Liver Extract) आसव-अरिष्ट, गेहूँ के अंकुरों इत्यादि में भी उपस्थित रहता हैं ।
नोट – परीक्षणों द्वारा देखा गया है कि विटामिन B1 तथा B2 का अभाव एक साथ होता है। कभी-कभी वरन् विटामिन बी कॉम्प्लेक्स के प्रत्यक तत्त्व का अभाव भी प्राय: एक साथ होता है।