इन्हें अंग्रेजी में संक्षिप्त में (W.B.C.) के नाम से जाना जाता है । ये रक्त कणों से बड़े होते हैं किन्तु इनकी संख्या रक्त कणों से कम होती है। मोटे तौर पर यह समझ लें कि 500 या 600 रक्त कणों के पीछे एक श्वेत कण होता है। इनकी लम्बाई 1/2000 इंच के समान होती है। इनकी शक्ल थोड़ी-थोड़ी देर में बदलती रहती है, इसलिए इनकी शक्ल कभी गोल, कभी लम्बी तथा कभी चौड़ी दिखलायी देती है । ये अस्थि, मज्जा, प्लीहा, लसीका ग्रन्थियाँ (Lymphatic Glands) में बना करते हैं। इसके अतिरिक्त इनकी संख्या दिन में कई बार घटती-बढ़ती रहती है। आमतौर पर यह भोजन के बाद अधिक बढ़ जाया करती है, किन्तु उपवास (व्रत) करने की स्थिति में घट जाया करते हैं। ।
श्वेत कण एमीबा की भाँति गति किया करते हैं। प्रात:काल इनकी संख्या 6 हजार प्रति मिलीमीटर होती है, परन्तु दोपहर के बाद इसकी संख्या बढ़ जाती है। कुछ संक्रमणों में (जैसे-निमोनिया में) इनकी संख्या बढ़ जाती है और 60 हजार तक हो जाती है और कुछ संक्रमणों में इनकी संख्या घट जाती है (जैसे-इन्फ्लूऐन्जा ज्वर में) ।
श्वेत कणों को मुख्य रूप से दो भागों में बाँट सकते हैं:-
1. Agranulocyte – जिनके प्रोटोप्लाजम में दाने न हों (इनकी कई जातियाँ होती हैं, जिनका विवरण निम्न प्रकार है।)
(अ) Lymphocytes – साधारण अवस्था में 25 से 40% तक होते हैं। इनका निर्माण शरीर की लसिका धातु में ही अर्थात् लसीका ग्रन्थियाँ, गल ग्रन्थियाँ (Tonsils), प्लीहा, थायमस आदि होता है। लिम्फोसायट भी दो तरह के होते हैं। हृस्व लिम्फोसाइट और दीर्घ लिम्फोसायट। हृस्व लिम्फोसायट 15 से 25% तथा दीर्घ लिम्फोसायट 05 से 15% रहते हैं । रोग – लसीकाणु श्वेत कण वृद्धि (Lymphocytic Leukaemia) की अवस्था में इनका निर्माण अस्थि मज्जा में भी होने लगता है।
(ब) Large Mononuclear – साधारणतः यह 1% होते हैं।
(स) Transitional Leukocytes – यह 2% होते हैं।
(2) Granulocytes जिनके Protoplasm (प्रोटोप्लाज्म) में दाने हों। ग्रेन्यूलोसायट की निम्नलिखित जातियाँ होती हैं:-
(अ) पोलीमार्फस 55 से 70% तक होते हैं।
(ब) यूसिनोफिल 2 से 4% तक होते हैं।
(स) बेसोफिल ये 0.5 प्रतिशत होते हैं।
इनका निर्माण भी अस्थि मज्जा में ही होता है। प्राकृतावस्था में रक्त के अन्तर्गत न्यूट्रोफिल (Neutrophil) 50-60%, यूसिनोफिल 1 से 4% तथा बेसोफिल 1/4 से 1% रहते हैं। इसके अतिरिक्त मोनोसायट (Monocyte) का निर्माण भी अस्थि मज्जा में ही होता है तथा यह रक्त में 4 से 6% पाये जाते हैं।
श्वेत कणों के कार्य – इनका प्रधान कार्य रोगों से शरीर की रक्षा करना है । यदि बाहर से किसी रोग के कीड़े हमारे शरीर में घुस जाते हैं तो ये उनके इर्द-गिर्द घेरा डालकर इनको नष्ट कर डालते हैं। इसी कारण इनको ‘शरीर रक्षक ‘बॉडीगार्डस’ कहा जाता है।
रक्त बिम्बाणु (Blood Platelets) – रक्त कण या रक्ताणुओं की तरह इनका भी अस्थि मज्जा में ही निर्माण होता है। आकार में ये रक्त कण के 1/3 (2-3 म्यू) होते हैं। अर्थात् यह R.B.C. से छोटे तथा अनियमित आकार के वर्ण रहित रक्त कण हैं। अस्थि मज्जा के अतिरिक्त इनका निर्माण प्लीहा में भी होता है। इनमें एमीबा की सी गति नहीं होती है। ये रक्त स्पन्दन में सहायता करते हैं। एक Cub.m.m. में 250,000 के लगभग होते हैं। अर्थात् रक्त में इनकी संख्या ढाई से चार लाख प्रति सी०सी० होती है। जब किसी स्थान से रक्त निकलता है तो रक्त बिम्बाणुओं में विघटन की क्रिया होकर थ्रोम्बोकायनेज की उत्पत्ति होती है, जिससे रक्त जम जाता है। इनका प्रधान कार्य नलिकाओं में टूट-फूट को रोकना तथा रक्त को जमाना है।