प्रायः गर्भधारण न हो सकने के मामलों में 20 फीसदी ऐसे होते हैं जिनमें पति या पत्नी में चिकित्सक कोई शारीरिक गड़बड़ी नहीं बता पाते। विगत कुछ वर्षों से विशेषज्ञ ऐसे दंपतियों के बच्चा न होने के वास्तविक कारणों की तलाश के लिए अनुसंधानों में लगे हुए हैं। इन अनुसंधानों में देखा गया है कि गर्भधारण न करने के पचास प्रतिशत से अधिक मामलों में दोष पुरुष शुक्राणु में होता है।
गर्भधारण न करने के मामलों में पहले जो जांच की जाती रही है उसमें पुरुष के वीर्य का पी.एच. स्तर एवं फ्रक्टोज (शर्करा का एक प्रकार) की मात्रा से लेकर शुक्राणुओं के आकार की जांच तक शामिल है। लेकिन गर्भधारण के संदर्भ में सबसे महत्त्वपूर्ण शुक्राणुओं की गतिशीलता व उनकी संख्या है। गतिशीलता का तात्पर्य है कि कितने शुक्राणुओं में तैरने की क्षमता है तथा कितनी तेजी से और कितनी सीधी दिशा में आगे बढ़ने में वे सक्षम हैं।
डिम्ब तक पहुंचने के पहले शुक्राणुओं को तैरते हुए जिन-जिने स्थितियों से गुजरना पड़ता हैं, पिछले 10-12 वर्षों में वैज्ञानिकों ने इन स्थितियों का गंभीरता से अध्ययन किया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि सामान्य शुक्राणुओं के बारे में जितनी जानकारी है, उनमें उससे कहीं अधिक विभिन्नताएं होती हैं। यदि इन विभिन्नताओं को समझ लिया जाए तो कुछ समस्याग्रस्त शुक्राणुओं को गर्भाधान कराने लायक बनाया जा सकता है।
जब शुक्राणु स्त्री की योनि में प्रवेश करते हैं तब वे प्रोटीन द्रव में तैरते हुए आगे बढ़ते हैं। शुक्राणुओं के ऊपर एक आवरण होता है। यह आवरण उनकी रक्षा करता है, जिससे शुक्राणु डिम्ब तक पहुंवने के पहले सक्रिय रह सकें। अब वैज्ञानिकों ने प्रोटीन द्रव के मध्य एक ऐसे पदार्थ का पता लगाया है जो शुक्राणुओं के आवरण को नष्ट कर देता है। इसे ‘लिपिड ट्रांसफर प्रोटीन’ कहते हैं। जो शुक्राणु सही स्थान तथा सही समय पर अर्थात् डिंब के निकट सक्रिय होते हैं उनसे गर्भाधान होने की सर्वोत्तम संभावना रहती है। सामान्यत: डिंब में एक ही शुक्राणु प्रवेश करता है जो संभोग करने के लगभग 20 घंटे बाद प्रवेश कर पाता है। शुक्राणु यदि शक्तिशाली होते हैं तो ‘लिपिड ट्रांसफर प्रोटीन’ से अपनी रक्षा कर लेते हैं। जबकि कमजोर शुक्राणु ऐसा नहीं कर पाते। यदि सारे शुक्राणु संभोग के 4-5 घंटे बाद ही सक्रिय हो जाएं तो 20 घंटे बाद तक कोई शुक्राणुजीवित नहीं रहेगा और ऐसी स्थिति में गर्भाधान नहीं हो सकेगा। इसी प्रकार कुछ पुरुषों के शुक्राणु संभोग के 20 घंटे बाद भी सक्रिय नहीं हो पाते। ऐसी स्थिति में भी गर्भाधान संभव नहीं हो पाता।
विशेषज्ञों का एक मत और भी है। जिन दंपतियों के बच्वा नहीं हो पा रहा है, वे स्त्री के डिंबक्षरण का सही समय उसके शरीर के तापमान में परिवर्तन पर नजर रख कर पता लगाएं। फिर इसके कुछ घंटों बाद वे संभोग करें। इससे हर महीने के मासिक चक्र में दो प्रतिशत दंपतियों के गर्भधारण कराने में सफलता मिलती है। (जिन दंपतियों के बच्चे हो चुके हैं वे इस विधि का प्रयोग परिवार नियोजन के लिए कर सकते हैं क्योंकि जिस दिन स्त्री के शरीर का तापमान बढ़ा हुआ हो यदि उस दिन संभोग न किया जाए तो बच्चा होने की संभावना नगण्य हो जाती है।) यदि पुरुष में कोई कमी नहीं है तो स्त्री की संपूर्ण जांच व पर्याप्त चिकित्सा आवश्यक है। स्त्री का बहुत मोटा होना, माहवारी का दर्द से आना, सफेद पानी (ल्यूकोरिया) की शिकायत, बच्चेदानी का टेढ़ापन या मुंह का छोटा होना, बच्चेदानी के किनारों पर सफेद झाग का रुक जाना, बच्चेदानी पर चर्बी बढ़ जाना, सूजाक की बीमारी के कारण (पुरुषों में भी इस बीमारी के कारण शुक्राणुओं व जीन संरचना पर फर्क पड़ सकता है।) फेलोपियन नलिका की किसी गड़बड़ी, जैसे ना होने या बंद होने के कारण, अंडा (डिंब) न बनने के कारण, हारमोन असंतुलन के कारण या पुरुष शुक्राणु के स्त्री के अंडे से न मिल पाने आदि कारणों से भी यह समस्या हो सकती हैं।
ऐसी स्थितियों में ‘पेपस्मियर’ नामक जांच करवाई जाती है जिससे ज्ञात होता है कि अंडा बन रहा है या नहीं। बच्वेदानी की सूजन, आकार आदि जांचने के लिए अल्ट्रासाउंड जांच करवाई जाती हैं। हिस्टरोसालपिंजोग्राफी नामक जांच भी कभी-कभी उचित रहती है। इसके अलावा स्त्री व पुरुष की अन्य जांच योग्य चिकित्सक अपने अनुभव व आकलन के आधार पर करवाते रहते हैं।
होमियोपैथिक उपचार
स्त्रियों के लिए : नेट्रमम्यूर, बोरेक्स, मैंगकार्ब, केल्केरिया कार्ब, एग्नसकैस्टस, कोनियम, ग्रेफाइटिस, मेडोराइनम, एल्युमिना, प्लेटिना, पल्सेटिला, सल्फर आदि।
पुरुषों के लिए : एग्नस कैस्टस, एज़ाडिरेक्टा इंडिका, आमलकी, केलेडियम, सेलेनियम, थूजा, पल्सेटिला, लाइकोपोडियम, कोनियम आदि।
सहयोगी औषधियां : अर्जेटम, नाइट्रिकम, जेलसीमियम, कालीबाई, कालीकार्ब आदि।
मैंने अपने प्रयोगों में पाया है कि 70 से 80% तक रोगियों में (पुरुष व स्त्री दोनों) नपुसंकता व बंध्यत्व (बांझपन) को समाप्त करने में सफलता प्राप्त होती है। शुक्राणुओं की गतिशीलता व संख्या बढ़ाने, पस सेल्स समाप्त करने व स्त्रियों में माहवारी की गड़बड़ी ठीक करके हारमोन संतुलन बनाने तक पर्याप्त सफलता प्राप्त होती है। इस क्षेत्र में अभी और अनुसंधान की आवश्यकता है। जिन पुरुषों में शुक्राणु बिलकुल नहीं बनते, उनमें भी शुक्राणु बनने लगें, इस दिशा में डॉक्टर प्रयासरत हैं और हमें सकारात्मक परिणाम मिलने लगे हैं।