‘साइनस’ खोखली-प्रणालिका (Cavity) को कहते हैं। यह हड्डी में हो सकता है, कान में हो सकता हैं, किसी फोड़े के साथ हो सकता है जिसके द्वारा पस बाहर रिसता रहे, नाक में हो सकता है, प्राय: नाक के साइनस के मरीज बहुत पाये जाते हैं। माथे की हड्डी के भीतर एक खाली जगह है जो दिखलाई नहीं देती, भीतर छिपी रहती है, उसके साइनस का संबंध नाक से रहता है, और रोगी को माथे में दर्द तथा नाक में पुराना जुकाम रहा करता है। इसे डॉक्टर लोग Frontal sinusitis का नाम देते हैं। साइनस का स्राव कहां से है, पतला या गाढ़ा है, मृदु या तीक्ष्ण है, इन तथा इनके साथ सर्दी-गर्मी आदि लक्षणों पर ध्यान देना आवश्यक है। इसकी मुख्य-मुख्य औषधियाँ निम्न हैं –
आर्सेनिक – रोगी का नाक बन्द रहता है, फिर भी लगने वाला स्राव बहता रहता है, नाक के.भीतर तथा बाहर इस स्राव से जलन होती है; स्राव नाक को छील देता है; बेचैनी होती है; छीकें आती हैं और उनसे आराम नहीं मिलता। बाहर खुली हवा में जाने से रोग बढ़ जाता है।
बेलाडोना – जुकाम में चेहरा लाल हो जाता है; नाक सिनकने में सख्त दर्द होता है; शरीर गर्म और पसीना भी गर्म आता है। गर्म कमरे में भी रोगी को ठंड लगती है।
ब्रायोनिया – अगर जुकाम होने से पहले कब्ज हुआ हो, कब्ज के कारण रोगी को तब लाभ करता है।
कैलकेरिया सल्फ – डॉ० कैन्ट का कहना है कि साइनस के पुराने रोगियों के लिये यह अत्युत्तम है। कान के साइनस में भी जब पीला, गाढ़ा, पस जैसा स्राव निकलता है, इससे लाभ होता है।
क्युप्रेस्सस – कान, नाक के पुराने साइनस में; कभी-कभी कर्णशोथ के कारण 20 साल के पुराने बहरेपन को भी यह ठीक कर देता है। डॉ० वीलर ने एक 72 वर्ष के बहरे रोगी को इस का 2x देकर 5 सप्ताह में ठीक कर दिया था। डॉ० बर्नेट ने मुँह के रुधिर रिसते ट्यूमर को इस से ठीक किया। बम्बई के डॉ० वाडिया ने भी एक 3 वर्ष के बच्चे के मुख के भीतर के स्राव-रिसते ट्यूमर को क्युप्रेस्सस 200 से ठीक किया।
हिपर सल्फ – सर्दी के हर झोंके से साइनस का दर्द और सिर-दर्द होने लगता है, सर्दी बर्दाश्त नहीं होती, स्राव से खट्टी बू आती है। डॉ० विलियम बोरिक का कहना है कि सर्दी से नाक बन्द हो तो हिपर 1x देने से नाक बहने लगती है।
हाईड्रेस्टिस – ओहिया मेडिकल सोसायटी का कहना है कि हाईड्रेस्टिस, पल्स तथा क्युप्रेस्सिस इन तीन से ही कान या नाक के अनेक रोगी ठीक हो जाते हैं। हाईड्रेस्टिस का स्राव गाढ़ा, पीला, सूतदार, अधिक मात्रा में होता है। स्राव नाक के भीतर से अन्दर को गिरता है। पल्स में भी ये लक्षण हैं परन्तु इसका स्राव पीला होता हुआ भी ज्यादा गाढ़ा होता है।
कैलि बाईक्रोम – इसका मुख्य-लक्षण स्राव का सूतदार होना है।
मेडोराइनम – बहुत पुराना साइनसाइटिस (sinusitis); नाक के भीतर के पिछले हिस्सों में बार-बार कफ जमा हो जाना; दिन को रोग का विशेष बढ़ना; विशेषकर अगर रोगी को गोनोरिया रहा हो। इस औषधि को ‘पस और कटार‘ की माँ कहा जाता है।
मर्क सौल – नाक सूज जाय, दुखने लगे, छींकें आयें, नाक से बदबूदार स्राव निकले, रात को पसीना आये, न गर्मी बर्दाश्त हो न सर्दी। बेलाडोना तथा मर्क सौल से साइनस के अधिकतर रोगी ठीक हो जाते हैं।
नैट्रम म्यूर – डॉ० क्लार्क का कहना है कि ठंड लगकर जुकाम आदि रोग होने में यह औषधि विशेष मूल्यवान है।
स्टिक्टा – अत्यन्त खुश्क जुकाम, इतना खुश्क कि दर्द होने लगे; नाक बार-बार साफ करना पर कुछ न निकलना, खुश्की के कारण नाक में पपड़ियां जम जाना।
संक्षेप में, साइनसाइटिस या जुकाम आदि की शिकायत की शुरूआत में प्राय: नक्स के लक्षण हुआ करते हैं; उसके बाद दूसरे स्टेज में पल्स के; ज्यादा छींकें आये तो मर्क; नाक बन्द हो तो स्टिक्टा, इपिकाक, नक्स; नाक पहले बन्द हो फिर खुल जाय तो पल्स; अगर बन्द तो हो परन्तु बहती भी रहे तो आर्स; दिन को बन्द शाम को बहे तो नक्स; शाम को बन्द या बन्द कमरे में बन्द और खुली हवा में बहे तो पल्स; अगर ऐसी बन्द हो कि सांस लेना भी भारी हो और मध्य-रात्रि को सांस रुकती-सी खांसी से बच्चा सोते-सोते उठ बैठे तो सैम्बूकस या स्टिक्टा; अगर सिर्फ एक नाक पर जुकाम का असर हो तो हिपर; नाक से पानी बहे तो मर्क, नाक तथा आँख से पानी बहे तो युफ्रेशिया; जलन वाला स्राव बहे तो आर्सेनिक;: गाढा, नीला-पीला स्राव हो तो पल्स; बदबूदार हो तो मर्क, नाक के बहते रहने पर भी नाक बन्द महसूस हो तो एरम ट्रिफ लाभकर है।