सेनेगा का होम्योपैथिक उपयोग
( Senega Homeopathic Medicine In Hindi )
(1) इसका मुख्य प्रभाव ‘स्वर-यंत्र’ (Larynx), ‘श्वास-नली’ (Trachea) तथा ‘वायु-नली’ (Bronchi) पर है, इनके शोथ से खांसी उठती है – जब हमें खांसी होती है, तब ‘स्वर-यंत्र’, ‘श्वास-नली’ तथा ‘वायु-नली’ में से किसी स्थान पर शोथ होता है। ‘स्वर-यंत्र’ स्वर निकलने का यंत्र है, जीभ के पीछे के भाग से यह शुरू होता है। इसके बाद से अगला भाग ‘श्वास-नली’ है जिससे सांस भीतर को जाता है, जिसे मोटे शब्दों में गला कहते हैं। गले के आगे ‘वायु-नली’ है, जो दो भागों में विभक्त होकर एक भाग दाहिने और दूसरा बायें फेफड़े में चला जाता है। इनमें से किसी भी हिस्से में शोथ हो जाने से खांसी होती है, और अगर शोथ नीचे फेफड़े तक पहुंच जाये, तो ब्रोंकाइटिस और न्यूमोनिया हो जाता है। ‘स्वर-यंत्र’, ‘श्वास-नली’ और ‘वायु नली’ के शोथ से निम्न लक्षण पैदा हो जाते हैं :
(i) गले में एलब्यूमिन जैसा श्लेष्मा चिपक जाता है जिसे निकालना कठिन होता है, इसलिये रोगी बार-बार खांसता है ताकि यह श्लेष्मा निकल जाय।
(ii) गले तथा छाती में दुखन होती है।
(iii) छाती पर ऐसा बोझ पड़ा महसूस होता है मानो किसी ने फेफड़ों को मेरु-दंड की तरफ दबा कर रखा हो।
इन लक्षणों से स्पष्ट है कि खासी में सेनेगा औषधि का विशेष महत्व है।
(2) वृद्ध-पुरुषों को परेशान करने वाली खाँसी तथा दमा – वृद्ध-पुरुषों को परेशान करने वाली खांसी में यह विशेष रूप से उपयोगी है जबकि छाती में अत्यधिक परिमाण में कफ इकट्ठा हो जाता है, और खांसने में खड़खड़ या सांय-सांय शब्द निकलता है। डॉ० क्लार्क ने एक स्थूल-काय वृद्धा का, जो तपेदिक की मरीज थी और जिसके दोनों फेफड़ों में न्यूमोनिया का प्रभाव था, सेनेगा की कुछ ही मात्राओं से कफ दूर कर दिया। उसे खांसी के दौर पड़ते थे और फेफड़ों से रक्त-मिश्रत कफ निकलता था। वृद्ध-पुरुषों का यह खखार आसानी से नहीं निकलता, लसदार होता है, वायु-नली में जम जाता है, निकालने में तकलीफ होती है। दमे में भी इसी प्रकार की खांसी आती है, लसदार कफ होता है, भीतर से जमा हुआ। इस प्रकार के लसदार जमे हुए कफ में कैलि बाईक्रोम भी लाभ करता है, कफ भीतर से मुश्किल से निकलता है, लसदार और तारदार होता है। कफ की घड़घड़ाहट में ऐन्टिम टार्ट भी लाभ करता है, ऐसा लगता है कि फेफड़ा कफ से भरा पड़ा है, परन्तु कफ आसानी से नहीं निकलता। वृद्ध-पुरुषों की श्लेष्माभरी खांसी में यह मुख्य औषधि है।
(3) फेफड़े में श्लेष्मा के भरे होने से कफ या दमे में निम्न-शक्ति लाभप्रद है – डॉ० नैश लिखते हैं कि जब छाती में कफ भरा पड़ा हो, घड़घड़ाहट या सांय-सांय की आवाज आती हो, सांस लेने में भी कष्ट होता हो, तब उनके अनुभव के अनुसार निम्न-शक्ति ही काम करती है, उच्च-शक्ति नहीं। वे लिखते हैं कि दमे का एक रोगी बड़े कष्ट में था। उसे उन्होंने ठंडे पानी के आधे गिलास में सेनेगा की 3 बूद डालकर दीं, जिसका उसने दो-दो घंटे में एक बड़ा चम्मच पिया। वह ठीक हो गया। एक अन्य महिला का उल्लेख करते हुए वे लिखते हैं कि उसे दमा था, उसे तकियों के सहारे बैठा कर रखा जाता था, छाती से धड़धड़ और सांय-सांय का शब्द सुनाई देता था, छाती में कफ भरा पड़ा था। उसे इपिकाक, आर्सेनिक, ऐन्टिम टार्ट दिया गया, पर किसी से लाभ नहीं हुआ। अन्त में सेनेगा के मूल-अर्क से लाभ हुआ। उच्च शक्ति के सेनेगा से भी कोई लाभ नहीं हुआ।
(4) अल्पकालिक, एवं ब्रायोनिया तथा रस टॉक्स के बीच की दवा है – यह औषधि अल्पकालिक है, साइलीशिया तथा सल्फर जैसी दीर्घकालिक नहीं है। इसके लक्षण ब्रायोनिया जैसे तीव्र हैं, ठंड लगने के बाद एकदम खांसी शुरू हो जाती है, परन्तु विश्राम से रोगी को लाभ नहीं होता जैसा ब्रायोनिया में हुआ करता है। सेनेगा के रोगी को चलने-फिरने से राहत मिलती है जैसे रस टॉक्स में होता है, परन्तु इसके अन्य लक्षण रस टॉक्स से नहीं मिलते। इसीलिये कहते हैं कि इसका स्थान उक्त दोनों औषधियों के बीच का है। छाती का दर्द, वात-रोग का दर्द (Rheumatic pains), शोथ का दर्द – इन सब में रस टॉक्स की तरह आराम करने से रोग की वृद्धि होती है, परन्तु खांसी और दमे में ब्रायोनिया की तरह आराम करने से रोग कम हो जाता है।
(5) शक्ति – डॉ० नैश के अनुसार मूल-अर्क अधिक लाभ करता है। सेनेगा 3 से सेनेगा 30 शक्ति दी जा सकती है।