लक्षण तथा मुख्य-रोग प्रकृति
(1) स्मरण-शक्ति का एकाएक लोप होना
(2) रोगी समझता है कि शरीर तथा मन अलग-अलग हैं तथा उसके दो इच्छा शक्तियां हैं।
(3) यह अनुभूति कि सब अवास्तविक है
(4) अन्य प्रकार के भ्रम-सब पर सन्देह, कोई पीछा कर रहा हैं आदि भ्रांतियां
(5) बिना हंसी की बात पर हंस देना, हंसी की बात पर संजीदा हो जाना
(6) खाने के बाद पेट-दर्द आदि में आराम में ऐनाकार्डियम तथा नक्स की तुलना
(7) मानसिक दुर्बलता – परीक्षा से घबराहट
(8) अनिद्रा – नींद न आना
लक्षणों में कमी
(i) खाने के बाद रोग में कमी
(ii) गर्म पानी से स्नान करने से रोग में कमी
लक्षणों में वृद्धि
(i) क्रोध से रोग में वृद्धि
(ii) भय से रोग में वृद्धि
(iii) ठंड से रोग में वृद्धि
(iv) खुली हवा से रोग में वृद्धि
(1) स्मरण-शक्ति का एकाएक लोप हो जाना – ऐनाकार्डियम औषधि का स्मरण शक्ति पर प्रभाव पड़ता है। रोगिणी कभी पहचानती है कि यह उसका बच्चा है, कभी भूल जाती है और अपने बच्चे को पहचानती नहीं। होम्योपैथी के संपूर्ण मैटीरिया मैडिका में स्मृति-लोप के संबंध में ऐनाकार्डियम औषधि के समान दूसरी शायद ही कोई औषधि हो। जब स्मृति-लोप का लक्षण इतना प्रबल हो तब यह औषधि स्मृति को तो ठीक कर ही देती है, रोगी के अन्य लक्षणों को भी दूर कर देती है। स्मृति-लोप इतना हो जाता है कि वह अपने बच्चें को नहीं, अपने पिता को भी भूल जाती है। कहती है: यह बच्चा उसका बच्चा नहीं; यह पति उसका पति नहीं।
(2) रोगी समझता है कि शरीर तथा मन अलग-अलग हैं तथा उसके दो इच्छा-शक्तियां (Two Wills) हैं – स्वस्थ-मनुष्य को शरीर तथा मन के अलग-अलग होने की अनुभूति नहीं बनी रहती, परन्तु इस रोगी को हर समय ख्याल आता रहता है कि ये दोनों अलग-अलग हैं। शरीर तथा मन के अलग-अलग होने की ही उसे अनुभूति नहीं होती, उसे यह भी प्रतीत होता है कि उसके भीतर मन के भी दो भाग हैं, उसकी दो ‘इच्छा-शक्तियां (Wilis) हैं। उनमें से एक इच्छा-शक्ति उसे जो कुछ करने को कहती है, दूसरी उसे करने से रोकती है। वह निश्चय नहीं कर सकता कि क्या करें। उसके भीतर से उसे एक आवाज आती है-यह करो; दूसरी आवाज आती हैं-यह न करो। उसकी इच्छा है कि दूसरे को मार, दूसरे के साथ अन्याय करे, परन्तु उसे दूसरी आवाज ही अपने भीतर से सुनाई देती है कि ऐसा न करे। क्या करे, क्या न करे, इसका विवाद उसके भीतर चलता रहता है। वैसे तो ऐसा विवाद सब में चला करता है, भला आदमी अपनी शुभ-इच्छाओं के बल पर बुरी-इच्छा को दबा देता है, बुरा आदमी कानून के डर से इन बुरी इच्छाओं को दबा देता है। परन्तु जब मन इतना बेकाबू हो जाय कि वह बुरी इच्छा के चंगुल में ही फस जाय, मन में विचार शक्ति ही न हरे, भला क्या है-यह सोच सके, कानून का डर क्या है-न यह सोच सके, तब रोगी ऐनाकार्डियम औषधि के क्षेत्र में आ जाता है।
(3) यह अनुभूति कि सब अवास्तविक है – रोगी को ऐसा अनुभव होता है कि जो कुछ है वह सब अयथार्थ है, अवास्तविक है। वेदान्त की दृष्टि से ऊहापोह करके सैद्धान्तिक दृष्टि से वह ऐसा नहीं सोचता, उसे लगता ही ऐसा है कि जो कुछ दीखता है वह वैसा नहीं है। पुत्र पुत्र नहीं है, पति पति नहीं है।
(4) अन्य प्रकार के भ्रम-सब पर सन्देह, कोई पीछा कर रहा है ऐसा ख्याल आना – इस औषधि में न्यूरेस्थेनिया प्रधान है। रोगी को सब पर सन्देह होता है। चलते हुए बार-बार पीछे देखता है क्योंकि उसे शक होता हैं कि कोई पीछा कर रहा है। लगता है कि एक कन्धे पर शैतान बैठा है, दूसरे पर फरिश्ता।
(5) बिना हंसी की बात पर हंस देना, और हंसी की बात पर संजीदा हो जाना – ऐनाकार्डियम औषधि भ्रमों से इतनी पूर्ण है कि रोगी ऐसी बात पर संजीदा हो उठता है जिस पर सब हंस पड़े। उक्त प्रकार के मानसिक लक्षणों में इस औषधि का उपयोग किया जाता है।
(6) खाने के बाद सिर दर्द आदि में आराम – ऐनाकार्डियम तथा नक्स की तुलना – अपचन में प्राय: होम्योपैथ एकदम नक्स वोमिका दे देते हैं परन्तु नक्स और ऐनाकार्डियम के अपचन की तुलना कर लेना उचित है। ऐनाकार्डियम में पेट जब खाली होता है तब दर्द होता है, खाने से पेट-दर्द हट जाता हैं, नक्स में जब तक पेट में खाना रहता है तब तक दर्द होता है। खाना हजम होने की प्रक्रिया में 2-3 घंटे लगते हैं। नक्स तब तक परेशान रहता है, खाना हजम होने के बाद उसकी तबियत ठीक हो जाती है, ऐनाकार्डियम में खाना हजम हो जाने के बाद रोगी की तबीयत फिर बिगड़ जाती है। पाचन-क्रिया के बाद नक्स ठीक हो जाता है, ऐनाकार्डियम के रोगी के लक्षण तब शुरू हो जाते हैं। दोनों इस बात में एक दूसरे से उल्टे हैं। डॉ० नैश लिखते हैं कि उन्होंने एक रोगी को जिसका कष्ट पेट के खाली हो जाने पर बढ़ जाता था ऐनोकार्डियम 200 से बिल्कुल ठीक कर दिया। इस लक्षण में सिर-दर्द में भीं लाभप्रद हैं।
एनाकार्डियम तथा नक्स दोनों में पाखाने की असफल इच्छा होती है, परन्तु ऐनाकार्डियम में गुदा-प्रदेश की मांसपेशियों की पक्षाघात की-सी अवस्था के कारण ऐसा होता है, और नक्स में आंतों की अनियमित अग्रगति के कारण ऐसा होता हैं। ऐनाकार्डियम में शौच जाने की इच्छा होती है परन्तु गुदा के मांसपेशियों की अक्रिया के कारण पाखाना नहीं होता, नक्स में भी शौच जाने की इच्छा होती है परन्तु पाखाना पूरा नहीं हो पाता, बार-बार थोड़ा-थोड़ा होता है। क्योंकि ऐनाकार्डियम में शौच नहीं हो पाता इसलिये आतों में शौच एकत्रित हो जाने के कारण गुदा-प्रदेश में डाट लगा-सा अनुभव होता हैं। इन लक्षणों को ध्यान में रखते हुए इन दोनों में भेद कर सकना आसान है।
(7) परीक्षा से घबराहट – मानसिक-दुर्बलता ऐनाकार्डियम औषधि का चरित्रगत लक्षण है। इस औषधि के मानसिक-लक्षणों के विषय में हमने जो कुछ लिखा है उससे स्पष्ट है कि इस औषधि का मन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इन्हीं मानसिक लक्षणों में एक लक्षण मानसिक-दुर्बलता है। विद्यार्थी मानसिक-दुर्बलता का यह लक्षण पाया जाता हैं। विद्यार्थी देर तक मानसिक श्रम करने के बाद इतना थक जाता हैं कि परीक्षा में अनुतीर्ण होने का उसे भय सताता है। भेद यह है कि ऐनाकार्डियम का रोगी ठंड की सहन नहीं कर सकता और पिकरिक एसिड का रोगी गर्मी को सहन नहीं कर सकता। परीक्षा से घबराहट में निम्न-शक्ति देना ठीक रहता है।
(8) नींद न आना – रोगी को कई रात नींद नहीं आती। रोगिणी को कुछ दिन तो ठीक नहीं आती है, परन्तु फिर नींद न आने का दौरे पड़ता है और कई दिन नींद नहीं आती। डॉ० कास्टिस ने उक्त लक्षणों में एक गर्भवती स्त्री का अनिद्रा का रोग 200 शक्ति की यह औषधि देकर दूर कर दिया था।
शक्ति तथा प्रकृति – 6 से 200 शक्ति। औषधि ‘सर्द’ प्रकृति के लिये है।