व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग की प्रकृति
(1) शारीरिक तथा मानसिक विकास का अभाव (Dwarfishness)
(2) शारीरिक तथा मानसिक दुर्बलता में बैराइटा, कैलकेरिया कार्ब तथा साइलीशिया की तुलना
(3) ग्रन्थियों का बढ़ जाना, टांसिल का सूजना
(4) वृद्ध-पुरुषों का बच्चों सा आचरण
(5) वृद्ध-पुरुषों की खांसी
(6) शीत-प्रधान रोगी
लक्षणों में कमी
(i) गर्मी से रोग में कमी
(ii) एकान्त में रोग में कमी
लक्षणों में वृद्धि
(i) सर्दी से लक्षणों में वृद्धि
(ii) रोग वाली करवट सोने से लक्षणों में वृद्धि
(iii) स्नान से परहेज
(1) शारीरिक तथा मानसिक विकास का अभाव – बैराइटा कार्बोनिका एक दीर्घकालिक तथा गंभीर क्रिया करने वाली औषधि है। शरीर तथा मन की अन्तरतम तह पर प्रभाव डालती है। कई बच्चे बड़े चतुर, प्रतिभाशाली होते हैं, यह ठीक उल्टी है। बच्चा हर काम देर से सीखता है। देर से चलना, देर से पढ़ना-लिखना, मानो उसका शारीरिक तथा मानसिक विकास रुका हुआ है। लड़कियां 18-19 साल की हो जाने पर भी बच्चों का-सा व्यवहार करती हैं, गुड़ियों से खेलती हैं। विवाह हो जाने पर भी घर-गृहस्थी के काम को समझ नहीं पातीं। शारीरिक तथा मानसिक विकास की वह प्रक्रिया जो व्यक्ति को पुरुष अथवा स्त्री बनाती है, वह इन रोगियों के लिये रुकी-सी रहती है। शारीरिक-विकास ही नहीं, मानसिक-विकास भी रुका रहता है कभी-कभी शरीर का एक अंग बढ़ना रुक जाता है, दूसरे अंग विकसित होते रहते हैं।
(2) शारीरिक तथा मानसिक दुर्बलता में बैराइटा, कैलकेरिया कार्ब तथा साइलीशिया की तुलना – कैलकेरिया कार्ब में भी बच्चे का शारीरिक तथा मानसिक विकास रुका रहता है। दोनों सूखे की बीमारी में काम आती है। कैलकेरिया का बच्चा देखने में मोटा-ताजा, थुलथुल होता है, बहुत जल्दी बढ़ जाता है, सिर और पेट बड़े, गर्दन और पैर पतले होते हैं; बैराइटा में बच्चा थुलथुल न होकर सब अंगों में सूखता जाता है। पेट में गिल्टियां नजर आती हैं। भूख-भूख चिल्लाता है परन्तु खाने से इन्कार करता है। साइलीशिया में भी बच्चा सूखता जाता है। बैराइटा तथा साइलीशिया दोनों में पांव से बदबूदार पसीना निकलता है, शरीर की अपेक्षा सिर बड़ा होता है, दोनों शीत-प्रधान हैं, परन्तु कैलकेरिया तथा साइलीशिया दोनों में सिर पर पसीना बहुत ज्यादा आता है, बैराइटा में नहीं। इसके अतिरिक्त साइलीशिया में बैराइटा की तरह मानसिक बौनापन नहीं होता। सूखे के रोग के विषय में हमने एब्रोटेनम में सूखे की बीमारी में अन्य औषधियों की आपसी तुलना की है।
(3) ग्रन्थियों का बढ़ जाना, टांसिल का सूजना – इस रोगी की ‘ग्रन्थियां’ (Glands) बढ़ जाती हैं, सख्त हो जाती हैं, गले, जांघ, पेट में गिल्टियां पड़ जाती हैं। गिल्टियां बढ़ जायें और मांस-पेशियां सूख जायें-शरीर बौना और मन गावदी-यह मूर्त-चित्रण है रस रोगी को जिसे बैराइटा कार्ब ठीक कर देता है। गले पर, अर्थात् टांसिल पर इस औषधि का विशेष प्रभाव है। जरा-सी सर्दी लगने से टांसिल बढ़ जाता है, कभी-कभी पक जाता है।
टांसिल में बैराइटा, बेलाडोना, हिपर तथा कैमोमिला की तुलना – बेलाडोना और हिपर में टांसिल का आक्रमण यकायक होता है, वेग से होता है, जिस रात सर्दी लगी उसी रात टांसिल सूज जाता है और पक भी जल्दी ही जाता है, परन्तु बैराइटा में एक रात की सर्दी में उसी दिन टांसिल नहीं सूजता, इसे कुछ दिन लग जाते हैं, पकता भी एकदम नहीं, धीरे-धीरे पकता है। कैमोमिला के टांसिल की सूजन में कान में भी दर्द होता है, गर्मी पहुंचाने से आराम मिलता है, रोगी बड़ा चिड़चिड़ा हो जाता है। दर्द इस वेग से आता है कि चिकित्सक इसे बेलाडोना का दर्द समझ सकता है।
(4) वृद्ध-पुरुषों का बच्चों का-सा आचरण – वृद्ध-पुरुष बच्चों का-सा आचरण करने गलते हैं, स्मृति-शक्ति लुप्त हो जाती है, चलते हुए डगमगाते हैं, बच्चों का-सा स्वभाव हो जाता है। बैराइटा कार्ब का चरित्रगत-लक्षण यह है कि रोगी का सर्वांगीण विकास रुक जाता है – चाहे बच्चे का हो, युवा का हो, वृद्ध का हो। जब यह देखा जाय कि सत्तर वर्ष का व्यक्ति बच्चे की तरह आचरण कर रहा है, तब समझना चाहिये कि उसका विकास रुक गया है, उसे बैराइटा लाभ करेगा।
(5) वृद्ध-पुरुषों की खांसी – बुढ़ापे में कई लोगों को ऐसी खांसी घेर लेती है जो उनका पीछा ही नहीं छोड़ती। छाती में घड़घड़ाहट हुआ करती है। इस प्रकार की खांसी के लिये कुछ इनी-गिनी औषधियां हैं जिनमें बैराइटा एक है। इसके अतिरिक्त सेनेगा, ऐसामेनियम कार्ब और बैराइटा म्यूर भी इस प्रकार की खांसी के लिये उपयोगी है।
जब किसी 70 वर्ष की वृद्ध को हर समय छाती में खांसी की घड़घड़ाहट हो जो गर्मी के दिनों में ठीक रहे, सर्दी के दिनों में इस प्रकार की खांसी से परेशान हो जाये और इसके सिवाय दूसरा कोई लक्षण न हो, तो ऐमोनियम कार्ब बहुत उत्तम दवा है।
(6) शीत-प्रधान रोग – होम्योपैथी में यह जानना आवश्यक है कि रोगी शीत-प्रधान है या ऊष्णता-प्रधान, उसे सर्दी अधिक सताती है या गर्मी। आयुर्वेद में इसे प्रकृति कहते हैं। कई लोग कफ-प्रकृति के होते हैं, कई वात-प्रकृति के-ये दोनों ‘शीत-प्रधान हैं। शीत-प्रधान रोगी के लिये शीत-प्रधान औषधि का ही निर्वाचन करना होता है, ऊष्णता-प्रधान रोगी के लिये ऊष्ण-औषधि का निर्वाचन करना होता है क्योंकि होम्योपैथी का सिद्धान्त ‘सम: सम शमयति’ का है। एलोपैथी, आयुर्वेद तथा यूनानी में ठंडे मिजाज के रोगी को गर्म दवा दी जायगी, गर्म मिजाज के रोगी को ठंडी दवा दी जायगी। होम्योपैथी में इससे उल्टा है। जैसे आयुर्वेद में यह जानना आवश्यक है कि रोगी वात-पित्त-कफ़ में से किस प्रकृति का है, वैसे होम्योपैथी में भी यह जानना आवश्यक है कि रोगी शीत-प्रधान है या ऊष्णता-प्रधान है। औषधि का निर्वाचन करते हुए यह मूल-सिद्धान्त है। इसीलिये होम्योपैथ रोगी से बड़ी बारीकियों से पूछा करते हैं कि तुम्हें ठंड पसन्द है या गर्मी पसन्द है, तुम कमरे में आते ही खिड़की-दरवाजें खोल देना चाहते हो या उन्हें बन्द कर देना चाहते हो। हमने यथासंभव प्रत्येक औषधि के विषय में औषधि की ‘प्रकृति’ के नीचे यह देने का यत्न किया है कि रोगी की शिकायतें ठंड से बढ़ती हैं या गर्मी से बढ़ती हैं। यह जानकर कि रोगी किस प्रकृति का है, होम्योपैथ को औषधि का निर्वाचन करने में सहायता मिलती है। अगर किसी रोग में दो औषधियों के सब लक्षण मिलते हों, परन्तु एक औषधि शीत-प्रधान हो और दूसरी ऊष्णता-प्रधान हो, तो औषधि का निर्वाचन करते हुए चिकित्सक को शीत-प्रधान रोगी के लिये शीत-प्रधान औषधि का निर्वाचन करना होगा, ऊष्णता-प्रधान रोगी के लिए ऊष्णता प्रधान औषधि का निर्वाचन करना होगा। जैसे आयुर्वेद में वात-पित्त-कफ प्रकृति को निदान तथा चिकित्सा में मुख्य माना गया है, वैसे होम्योपैथी में भी सर्दी-गर्मी को मुख्य माना गया है, फर्क यह है कि आयुर्वेद में प्रकृति के तीन भाग किये गये हैं-वात, पित्त, कफ़, और होम्योपैथी में ‘प्रकृति (Modality) के दो भाग किये गये हैं-सर्दी और गर्मी।
बैराइटा कार्ब शीत-प्रधान औषधि है। रोगी ठंडक सहन नहीं कर सकता। शरीर को ढके रखना चाहता है। कमरे के खिड़की-दरवाजे बन्द रखना पसन्द करता है। इतना ध्यान देने की बात है कि यद्यपि उसकी अन्य सब शिकायतें ठंड लगने से बढ़ जाती हैं, उसका सिर-दर्द ठंड से घटता है, सिर पर गर्मी गलने से तकलीफ़ होती है। संपूर्ण शरीर तथा सिर का एक-दूसरे से विपरीत भाव अन्य भी अनेक औषधियों में पाया जाता हैं। उदाहरणार्थ, फॉसफोरस, आर्सेनिक भी शीत प्रधान औषधियां हैं, शरीर को शीत ज्यादा सताता है, परन्तु सिर पर वे ठंडक ही पसन्द करती हैं। औषधियों के इस प्रकार के भेद जानने से ठीक दवा का चुनाव करना आसान हो जाता है।