अधिक मात्रा में मूत्र आने को बहुमूत्रता कहा जाता है जबकि अधिक मात्रा में मूत्र आने के साथ ही उस मूत्र में मिठास (शर्करा) आने को मधुमेह कहा जाता है । यों तो बहुमूत्रता एवं मधुमेह- दोनों अलग-अलग रोग हैं परन्तु दोनों के कारण, लक्षण, पथ्यापथ्य, चिकित्सा आदि में बहुत ही समानता है अतः यहाँ दोनों का संयुक्त उपचार बताया जा रहा है ।
एसेटिक एसिड 30, 200- बहुमूत्र रोग में जब अत्यन्त प्यास लगती हो, कमजोरी के लक्षण हों व शरीर पीला पड़ने लगे तब एसेटिक एसिड को नहीं भूलना चाहिये ।
एसिड लैक्टिक 30, 200- यह मठा या दही से निर्मित होती हैं । यह भी बहुमूत्र रोग की अच्छी दवा है । पेशाब में शर्करा रहती हो, पेशाब मात्रा में अधिक और बार-बार होती हो, कब्जियत हो, जुलाब लिये बिना शौच न हो- इन लक्षणों में यह दवा बहुत लाभप्रद है ।
इक्विजिटम 6, 30- इस दवा का भी मूत्राशय पर विशेष प्रभाव होता है। रोगी बार-बार पेशाब करता है तथा पेशाब को रोक नहीं सकता । मूत्राशय में पेशाब भरी होती है और पेशाब अधिक भरी होने से वह दर्द महसूस करने लगता है । इस दवा के रोगी में मूत्र करते समय मूत्र-प्रणाली में जलन के लक्षण भी दिखाई देते हैं । यह दवा वृन्द्र या बच्चों में (जब अपने-आप पेशाब निकल जाये उस स्थिति में) भी कारगर है । इसका निम्नशक्ति में ही प्रयोग करना चाहिये ।
इन्सुलिन 30- यदि रक्त में शर्करा की मात्रा 180-200 तक पहुँच जाये तो शर्करा पेशाब से बाहर आने लगती है । यकृत अधिक शक्कर न बनायें इस पर रोक लगाने का काम इन्सुलिन का है । डॉ० बोरिक के अनुसार इन्सुलिन 3 शक्ति में उपयोगी है परन्तु डॉ० घोष के अनुसार 30 से 200 शक्ति में उपयोगी है । हमने अपने अनुभव में इन्सुलिन की 30 शक्ति को ही उपयोगी पाया है ।
पैनक्रिएटिन 3x- जिन रोगियों के रक्त में शर्करा का स्तर बहुत ऊँचा हो उनके लिये यह दवा लाभकारी है । इससे रक्त में शर्करा का स्तर घटने लगता है ।
फ्लोटिडजिन Q, 30- रक्त-शर्करा के बढ़े हुए स्तर को नीचा लाने के लिये फ्लोटिडजिन एक प्रभावी दवा है । इसे कुछ सप्ताह तक दिन में दोतीन बार पाँच-छ: बूंद की मात्रा में आधे कप पानी में लेते रहने से रक्त में शर्करा का स्तर घटने लगता है ।
एब्रोमा ऑगस्टा Q, 2x- यह दवा ओलक ताम्बूल से बनती है । जब बहुत अधिक परिमाण में चीनी मिला और बहुत ही अधिक आपेक्षिक गुरुत्व वाला मधुमेह हो एवं रात्रि में अधिक मात्रा में बार-बार मूत्र आये, रोगी को प्यास भी लगे तो एब्रोमा ऑगस्टा का प्रयोग दिन में तीन-चार बार करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं ।
सिजिजियम जम्बोलिनम Q, 1x- डॉ० घोष ने अपनी पुस्तक में सिजिजियम दवा कहा है । डॉ० बोरिक का उल्लेख करते हुए वे लिखते हैं कि पेशाब से चीनी का परिमाण घटाने या दूर करने वाली इसके जोड़ की प्रायः और कोई दूसरी दवा दिखलाई नहीं देती । कमजोरी, अत्यन्त दुर्बलता, दुबलापन, बहुत ज्यादा मात्रा में और बार-बार पेशाब होना, पेशाब का आपेक्षिक गुरुत्व बढ़ जाना, बहुमूत्र के कारण शरीर में घाव आदि लक्षण भी इस दवा के अन्तर्गत आते हैं । मधुमेह के नियन्त्रण के लिये इसके मूल अर्क की 15 बूंद आधे कप पानी में दिन में तीन बार लेने से रक्त में शर्करा कम होने लगती है । मैंने अपने अनुभवों में इस दवा की 2x शक्ति को मूल अर्क की अपेक्षा अधिक सफल और कारगर पाया है । मैं इस दवा की 2x शक्ति की दोतीन बूंदें रोगी की जीभ पर दिन में तीन बार देता हूँ ।
काली ब्रोम- अमेरिका के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ० ज्याज रोयल ने ‘होम्यो रिकार्डर’ ने लिखा था कि वे एक डायबिटीज के मरीज थे और उन्हें एक होमियोपैथ ने काली ब्रोम 3x एक महीने तक लगातार सेवन करने की दी, इससे उनकी डायबिटीज बिल्कुल ठीक हो गई ।
एसिड फॉस 3,30- यह दवा बहुमूत्रता और मधुमेह- दोनों ही स्थिति में लाभकर है ।
काल्र्सबाड साल्ज 6- पानी पीने के तुरन्त बाद मूत्र आने लगे तो ऐसी स्थिति में लाभ करती है ।
सेफालेण्ड्रा इण्डिका Q- यह दवा बहुमूत्र रोग में विशेष रूप से लाभ करती है । बहुमूत्रता में इसकी 3-3 बूंदें पानी में मिलाकर प्रतिदिन चार बार तक देनी चाहिये । मधुमेह के कारण हाथ-पैरों में जलन तथा पित्त की अधिकता के लक्षणों में भी लाभप्रद है ।
आर्सेनिक ब्रोमाइड Q- इसकी 4-4 बूंदें प्रतिदिन 4 बार पानी के साथ देने से बहुमूत्रता और मधुमेह- दोनों में लाभ होता है । लाभ होने लगे तो प्रतिदिन केवल 2 बार दें ।