व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग | लक्षणों में कमी |
थुलथुलपना; स्थूलता परन्तु दुर्बलता; थोड़े-से श्रम से हांप जाना; अस्थियों का असम-विकास | गर्म हवा से अच्छा लगना |
बड़ा सिर; बड़ा पेट परन्तु पतली गर्दन और पतली टांगें | |
ठंडा शरीर परन्तु सिर पर बेहद पसीना आना; ठंडे पांव | |
शरीर तथा स्रावों से खट्टी बू आना | लक्षणों में वृद्धि |
शारीरिक की तरह मानसिक दुर्बलता | शारीरिक-परिश्रम से बढ़ना |
मासिक-धर्म जल्दी, अधिक और देर तक | मानसिक-परिश्रम से बढ़ना |
शीत-प्रधान शरीर तथा आराम पसन्द | चढ़ाई में ऊपर चढ़ने से बढ़ना |
बच्चों के दांत निकलते समय के रोग | दांतों के निकलने में कष्ट |
रोगी की कण्ठमाला की प्रकृति | दूध माफ़िक न आना |
(1) थुलथुलपना; स्थूलता परन्तु दुर्बलता; थोड़े-से श्रम से हांप जाना; अस्थियों का असम-विकास – बच्चों का जब दांत निकाल रहा होता है तभी उसे देखकर पहचाना जा सकता है कि बड़ा होकर उसके शरीर की रचना कैसी होगी। अगर उसका शरीर भोजन-तत्वों से लाइम का समीकरण नहीं कर रहा, तो उसकी हड्डियों का विकास ठीक नहीं हो पाता। हड्डियों की रचना को देख कर कहा जा सकता है कि उनका नियमित विकास नहीं हो रहा। किसी अंग में हड्डियां पतली, टेढ़ी दिखाई देती हैं, किसी में स्थूल दिखाई देती हैं। हड्डियां कोमल और धीरे-धीरे बढ़ती हैं। टांगे पतली, मेरु-दण्ड टेढ़ा, कमजोर हड्डियां-ऐसी हालत होती है उस बच्चे की जिसके विकास में लाइम नहीं रच पाता। एलोपैथिक चिकित्सक ऐसे बच्चों को लाइम-वाटर देते हैं, परन्तु अधिक लाइम-वाटर देने से बच्चे का शरीर लाइम को नहीं रचा सकता। उसकी जीवनी-शक्ति में कोई निर्बलता होती है जिसे दूर किये बिना बच्चे का विकास लाइम-वाटर देने पर भी रुका रहता है। इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि अगर किसी बच्चे को लाइम-वाटर देकर पाला गया है, तो सिर्फ इतनी ही बात कैलकेरिया देने के लिये पर्याप्त कारण नहीं है। कैलकेरिया तभी दिया जाना चाहिये जब इसके लक्षण विद्यमान हों, वे लक्षण लाइम-वाटर दिये जाने या बिना दिये जाने दोनों हालात में हो सकते हैं। कैलकेरिया का बच्चा टांगें पतली और टेढ़ी होने के शरीर से स्थूल होता जाता है, मोटा हो जाता है, और चलने-फिरने में उसे तकलीफ होती है। ऐसे थुलथुले बच्चे को जहां बैठा दिया जाय वहीं मट्टी के माधो की तरह बैठा रहता है, अन्य बच्चों की तरह दौड़-धूप नहीं करता, चपलता नहीं दिखलाता। उसके दांत देर से निकलते हैं, किसी-किसी के निकलते ही नहीं। बड़ा होने पर यह हर समय अपने को थका-थका अनुभव करता है, जरा से परिश्रम से हांफने लगता है। इस प्रकार के स्थूल, थुलथुल, कमजोर, अस्थियों की टेढे-मेढे व्यक्ति के लिये, चाहे वह बच्चा हो, चाहे बचपन से इन लक्षणों को लेकर युवा हो गया हो, कैलकेरिया ठीक कर देता है और उसकी शरीर की रचना को बदल देता है। आजकल लड़के-लड़कियां पतला होने का बड़ा प्रयत्न करती हैं, इसमें वे सुन्दरता देखती हैं, मोटापे में रोग भी घर करने लगते हैं, उन रोगों से भी वे बचना चाहती हैं, परन्तु अगर उनके शरीर की रचना कैलकेरिया की है, तो शक्तिकृत कैलकेरिया देने से उनकी मनोकामना पूरी हो सकती है। अगर कैलकेरिया शरीर की माता को गर्भावस्था में यह औषधि दी जाय, तो बच्चा सुघड़ पैदा होगा।
(2) बड़ा सिर; बड़ा पेट परन्तु पतली गर्दन और पतली टांगें – ऊपर जो कुछ कहा गया है उससे स्पष्ट है कि जिस व्यक्ति के विकास में अस्थियों का और मांस-पेशियों का सम-विकास नहीं होगा उसकी क्या शक्ल होगी। कैलकेरिया के बालक या युवा का मूर्त-चित्रण होगा – बड़ा सिर, बड़ा पेट और पतली गर्दन। इतने बड़े सिर, बड़े पेट, पतली गर्दन और पतली टांग से अगर बालक या युवा चलने-फिरने में दिक्कत महसूस करे तो क्या आश्चर्य?
(3) ठंडा शरीर परन्तु सिर पर बेहद पसीना आना; ठंडे पांव – इस रोगी की विशेषता यह है कि उसे अत्यन्त सर्दी लगती है, शरीर ठंडा रहता है, परन्तु सोते समय पसीने से उसका तकिया तर-ब-तर हो जाता है। सोते में पसीना आना तो इसका विशेष-लक्षण है ही, साथ ही कैलकेरिया का विलक्षण लक्षण यह है कि ठंडे कमरे में भी उसे पसीना आता है, ठंड में तो पसीना नहीं आना चाहिये परन्तु ठंड में भी उसे पसीना आता है – यह अद्भुत बात है। पांव उसके इतने ठंडे होते हैं मानो बर्फ के मौजे पहने हों। एक रोगी को जिसमें यह लक्षण बड़ा प्रबल था कैलकेरिया कार्ब दिया, तो उसके पेट के कीड़े निकल गये। इसका यह अर्थ नहीं कि कैलकेरिया कीड़ों को निकालने की दवा है। इसका इतना ही अर्थ है कि अगर लक्षण किसी औषधि के हों, तो उससे वही बीमारी नहीं ठीक होगी जिसके लिये औषधि दी गई है, शरीर की जीवनी-शक्ति में सुधार होगा और जिन रोगों का हमें पता भी नहीं, जीवनी-शक्ति के स्वस्थ होने के कारण वे भी ठीक हो जायेंगे। कैलकेरिया कार्ब के शरीर में ठंड यहां-वहां भिन्न-भिन्न अंगों में महसूस होती है।
कभी सिर ठंडा, कभी पांव ठंडे, कभी पेट में ठंडक, कभी जांघों में, कभी खोपड़ी पर-ठंडक भी कैसी, बर्फ की-सी ठंडक। डॉ० कैन्ट कहते हैं कि कैलकेरिया में भिन्न-भिन्न जगहों पर ठंडक महसूस होती है और भिन्न-भिन्न अंगों में पसीना आता है। कैलकेरिया का रोगी जब बिस्तर में आता है, तो पैर बर्फ-के-से ठंडे होते हैं, परन्तु कुछ देर बाद ही पैर जलने लगते हैं। कई चिकित्सक इस लक्षण पर सल्फर दे देते हैं, परन्तु सल्फर का रोगी स्वभाव से ऐसा ठंडा नहीं होता जैसा कैलकेरिया का रोगी होता है। जैसे कैलकेरिया में टुकड़ों-टुकड़ों में ठंडक महसूस होती है वैसे सल्फर में टुकड़ों-टुकड़ों में, शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों में गर्मी महसूस होती है।
(4) शरीर तथा स्रावों से खट्टी बू आना – कैलकेरिया के व्यक्ति के शरीर से खट्टी बू आती है। उसका पसीना खट्टा, कय तथा दस्त में खट्टी बू आती है। कई बार किसी मोटे थुलथुले व्यक्ति को देखकर जो चारों तरफ पसीने से खट्टी गंध बहा रहा हो, यह समझ सकना कठिन नहीं होता कि उसका शरीर कैलकेरिया चाहता है।
(5) शारीरिक की तरह मानसिक दुर्बलता – जिस प्रकार उसका शरीर दुर्बल होता है, उसी प्रकार उसका मन भी दुर्बल होता है। देर तक मानसिक श्रम नहीं कर सकता। शारीरिक-श्रम से जैसे वह झट-से थक जाता है, पसीने से तर-ब-तर हो जाता है, वैसे ही मानसिक-श्रम से भी झट थक जाता है और उसे पसीना आने लगता है। मानसिक-उद्वेगों (Emotions) से शीघ्र उद्वेलित हो उठता है। दीर्घ चिन्ता, व्यापारिक कार्यों में अत्यन्त व्यस्त रहने तथा मानसिक उत्तेजना से जो रोग हो जाते हैं उनमें यह औषधि लाभप्रद है, परन्तु कैलकेरिया का चरित्रगत-लक्षण ध्यान में रखना चाहिये। मानसिक-लक्षणों के संबंध में उसके निम्न-लक्षणों पर ध्यान देना चाहिये
(i) रोगी समझता है कि उसका मानसिक हृास हो रहा है – रोगी को विश्वास हो जाता है कि उसका मानसिक हास हो रहा है, सोचता है, कि वह पागलपन की तरफ बढ़ रहा है, समझता है कि लोग भी ऐसा ही ख्याल कर रहे हैं। उसे विचार आता है कि लोग उसकी तरफ इसी सन्देह से देख रहे हैं, वह भी उनकी तरफ इसी सन्देह से देखता है और सोचता है कि वे कह क्यों नहीं देते कि उन्हें उसमें पागल होने के लक्षण दीखने लगे हैं। यह विचार हर समय उसके मन में रहता है और दिन-रात इसी विचार में डूबे रहने के कारण वह सो भी नहीं सकता।
(ii) छोटे-छोटे विचार उसे नहीं छोड़ते – कैलकेरिया के रोगी के मन को छोटे-छोटे विचार जकड़े रहते हैं। उसका मन छोटी-छोटी बातों से इतना जकड़ जाता है कि उनसे किसी प्रकार छुटकारा नहीं पा सकता। उसके मित्र कहते हैं: ‘क्या छोटी-सी बात है, छोड़ी भी इसे’ – परन्तु वह छोड़े कैसे, उसके लिये तो वह बड़ी बात बन गई है। वह बड़ा भारी दार्शनिक हो सकता है, परन्तु उसका सब दर्शन ताक में धरा रह जाता है, उसका मानसिक-स्तर ही बिगड़ चुका होता है। वह बुद्धि के स्थान में मनोभावों से काम ले रहा होता है। बहुत कोशिश करके अगर वह अपने मन को उन छोटे-छोटे विचारों से जुदा करके सोने की तैयारी करने लगता है, आंखें बन्द करता है, तो भी आंखें बन्द नहीं हो पातीं, वह एकदम उत्तेजित अवस्था में आ जाता है और ये विचार उसे इतना परेशान कर देते हैं कि वह सो नहीं सकता।
(iii) ऐसा अनुभव करता है कि उठकर दौड़ता और चिल्लाता फिरे – जिन लोगों का मस्तिष्क उत्तेजना की अति तक पहुँच चुका होता है, जो गृहस्थी में मृत्यु आदि किसी दुखद घटना से अत्यंत पीड़ित होते हैं – माता का बच्चा, पति की पत्नी, युवती कन्या का प्रेमी उनके हाथ से काल द्वारा छीन लिया गया होता है-उनका हृदय टूक-टूक हुआ होता है, मन उत्तेजना की सीमा पर पहुंचा होता है। इस प्रकार की उत्तेजना व्यापारिक-चिंताओं से भी हो जाती है। रोगी घर में आगे-पीछे चलता-फिरता है, उसे शान्ति नहीं मिलती। मन में आता है कि खिड़की में से कूद कर प्राण दे दे। यह एक प्रकार हिस्टीरिया की अवस्था है जिसे कैलकेरिया ठीक कर देता है।
(iv) सब काम-काज छोड़ बैठना – कैलकेरिया का रोगी अपनी मानसिक अवस्था के कारण, जिसका दुर्बलता प्रधान अंग है, अपना सब काम-धंधा छोड़ कर घर बैठ जाता है। कितना ही चमकता व्यापार क्यों न हो, उसे अपने काम में रुचि नहीं रहती, घर पर बैठना और कुछ न करना-यही उसे सूझ पड़ता है। वह अपने काम-धंधे का मुँह तक नहीं देखना चाहता।
(v) जीवन के प्रति उदासीन हो जाता है – जीवन के प्रति उदासीनता भी कैलकेरिया का एक मानसिक-लक्षण है। 8-9 वर्ष की छोटी बच्ची दुखी रहती है, कुरान या रामायण-महाभारत पढ़ती है, तो दिन भर उसी में रत रहती है। छोटे बच्चों के लिये यह चित्त की विचित्र अवस्था है, परन्तु कैलकेरिया इसे दूर कर देता है। चित्त की इस उदासी, शोकातुरता को आर्सेनिक तथा लैकेसिस भी दूर करते हैं। बच्चे ही नहीं, वृद्ध लोग भी जीवन के प्रति उदास, निराश, हतोत्साह हो जाते हैं, जीवन से घृणा करने लगते हैं, जीवन से तंग आ जाते हैं। ऑरम में भी यह लक्षण है। कैलकेरिया में भी यह लक्षण पाया जाता है।
(6) मासिक-धर्म जल्दी, अधिक और देर तक होता है – इस औषधि के मासिक-धर्म के विषय में तीन बातों को ध्यान में रखना चाहिये। कैलकेरिया में (i) यह समय से बहुत पहले होता है, (ii) बहुत अधिक खून जाता है, और (iii) बहुत देर तक जारी रहता है। प्राय: हर तीसरे सप्ताह शुरू हो जाता है, रुधिर की मात्रा बहुत अधिक होती हैं, और समाप्त होते हुए भी लगभग एक सप्ताह ले लेता है। परन्तु मासिक-धर्म में इन लक्षणों के साथ कैलकेरिया के अन्य लक्षणों का होना भी जरूरी है। रोगी की जिस शारीरिक-रचना का हमने वर्णन किया है, उसे ध्यान में रखना उचित है। हनीमैन ने लिखा है कि अगर मासिक ठीक समय पर या कुछ देर में होता हो, फिर चाहे कितना ही ज्यादा क्यों न ही कैलकेरिया नहीं देना चाहिये।
(7) शीत-प्रधान शरीर तथा आराम पसन्द – कैलकेरिया का रोगी शीत-प्रधान होता है। ठंडी हवा उसे माफ़िक नहीं आती। अांधी-तूफान, सर्दी का मौसम उसके रोग को बढ़ा देता है। वह शरीर को गर्म रखना चाहता है, कपड़े लपेट कर रहता है, दरवाजे-खिड़कियां बन्द रखता है। उसके शरीर को छूआ जाय, तो वह ठंडा लगता है, उसके पैर ठंडे रहते हैं। ठंडापन और कमजोरी उसका चरित्रगत-लक्षण है। शीत-प्रधान होने के साथ वह आराम-पसन्द भी होता है। शारीरिक-मेहनत नहीं कर सकता। देखने को वह मोटा-ताजा दीखता है, मांस चढ़ा हुआ, थुलथुल, लाल फुला हुआ चेहरा, परन्तु जरा-सा मेहनत से, सीढ़ियों पर चढ़ने से हांफ जाता है। अगर थोड़ा-सा भी परिश्रम करना पड़े, तो सिर-दर्द, बुखार हो जाता है। ज्यादा चलना, मेहनत करना, बोझ उठाना उसके लिये रोग का आमन्त्रण देना है। शरीर से अत्यन्त स्थूल होता हुआ भी परिश्रम के लिये अत्यन्त निर्बल, शरीर की मांस-पेशियां कसी हुई न होकर लटकती हुई-सी!
(8) बच्चों के दांत निकलते समय के रोग (कय, दस्त, खांसी) – कैलकेरिया का मूर्त-चित्रण करते हुए बच्चे की शिकायतों को नहीं भुलाया जा सकता। दांत निकलते समय बच्चा भारी कष्ट में से गुजरता है। दांत निकलते समय मुख्य तौर पर उसे तीन शिकायतें हो जाती हैं वह दूध हजम नहीं कर सकता, जो पीता है उसकी जमे हुए दही की तरह कय कर देता है, उसमें से खट्टी बू आती है। दूसरी शिकायत यह है कि उसे दस्त आने लगते हैं, वे भी फटे हुए दूध की तरह होते हैं और उनमें भी खट्टी बू आती है। दांत निकलते समय तीसरी शिकायत खांसी की होती है जिसका संबंध भी दांतों की खुरखुराहट से होता है। इन तीनों शिकायतों में अगर बच्चे को साते समय सिर पर पसीना आता हो, तकिया पसीने से तर हो जाता हो, तो कैलकेरिया से सब रोग ठीक हो जायेंगे। इनके अलावा कैलकेरिया के बच्चे की खोपड़ी की हड्डी की सीवन खुली रहती है, खोपड़ी पिलपिली महसूस होती है, चल-फिर नहीं सकता। हनीमैन का कथन है कि अगर बच्चे का कैलकेरिया का शरीर है, तो उसे जब तक रोग दूर न हो यह औषधि बिना हानि के बार-बार दी जा सकती है, परन्तु वयस्क लोगों में इस औषधि की एक मात्रा के बाद दूसरी मात्रा किसी उचित औषधि के बीच में दिये बिना बहुत सोच-समझ कर दी जानी चाहिये क्योंकि इससे लाभ के स्थान में हानि हो सकती है।
(9) रोगी की कण्ठमाला की प्रकृति – कैलकेरिया के रोगी की गर्दन के चारों ओर गिल्टियां फूली होती हैं। शरीर के अन्य स्थानों में भी गिल्टियां फूल जाती हैं। गिल्टियों पर आक्रमण करना इस औषधि का चरित्रगत-लक्षण है। पेट की गिल्टियां सख्त हो जाती है। इन ग्रन्थियों का होना टी०बी० का लक्षण है। कभी-कभी इन गिल्टियों का आकार मुर्गी के अंडे जितना मोटा हो जाता है। किसी भी अंग में गिल्टियों का होना कैलकेरिया के अन्य सामान्य लक्षणों के होने पर इसी औषधि के प्रयोग को सूचित करता है।
कैलकेरिया कार्ब औषधि के अन्य लक्षण
(i) कैंसर – डॉ० कैन्ट का कहना है कि अगर रोगी की शारीरिक-रचना कैलकेरिया की है, तो कैंसर में अगर रोगी सवा साल जी सकता होगा, तो कैलकेरिया देने से वह पांच साल तक चलता रहेगा। ऐसे रोग में इससे अधिक कुछ आशा नहीं की जा सकती।
(ii) गहरे घाव – अगर शरीर में कहीं गहरा घाव हो, गर्दन में हो, जांघ में हो, पेट में हो, और कैलकेरिया की शारीरिक-रचना हो, तो वह घाव पस पड़ जाने पर भी कैलकेरिया से सूख जायगा और ठीक हो जायगा। शर्त यही है कि ‘शारीरिक-रचना’ (Constitution) कैलकेरिया की होनी चाहिये। कभी-कभी हथौड़े आदि की चोट लगने से हड्डियों के परिवेष्टन में सूजन आ जाती है, पस भी पड़ जाती है, परन्तु कैलकेरिया की शारीरिक-रचना होने पर सर्जन के नश्तर के बगैर इस औषधि से घाव ठीक हो जाता है, पस सूख जाती है।
(iii) अंडा खाने की रुचि और दूध से अरुचि – अंडा खाने की प्रबल-इच्छा होती है, दूध माफ़िक नहीं पड़ता। बच्चों में दूध बिना पचे दस्त में निकल जाता है।
(iv) स्तन पीने से या मानसिक-उत्तेजना से रजोधर्म जारी हो जाना – कैलकेरिया का एक विचित्र-लक्षण यह है कि जब बच्चा मां का स्तन-पान करने लगता है, तब रजोधर्म जारी हो जाता है। जरा भी मानसिक-उत्तेजना से रज-स्राव जारी होने लगता है।
(v) गठिया या वात-रोग – ठंड लगने से जोड़ों का दर्द हो जाना इस औषधि में पाया जाता है। पांव ठंडे रहते हैं, ऐसे मानो गीली जुराब पहनी हुई हो। सोते समय शरीर के अन्य अंगों की अपेक्षा पैरों पर अधिक गर्म कपड़ा डालना पड़ता है। जब पैर गर्म हो जाते हैं, तब उनमें जलन होने लगती है और रोगी उन्हें बिस्तर से बाहर निकालने लगता है।
(vi) खांसी – खांसी में गले में पंख होने की सी अनुभूति होती है।
शक्ति तथा प्रकृति – यह ‘अनेक-कार्य-साधक’ दवा है, दीर्घकालिक है। 6, 12, 30, 200 शक्ति साधारण तौर पर दी जाती है। हनीमैन का कथन है कि कैलकेरिया को सल्फ़र तथा नाइट्रिक ऐसिड से पहले नहीं, बाद को देना चाहिये। औषधि ‘सर्द’-Chilly-प्रकृति के लिये है।