भांग, गांजा, चरस और हशीश – ये चार नशे की पदार्थ एक ही प्रकार क पौधे से बनते हैं। भांग का पौधा भारत तथा अरब में होता है। पौधे की पत्तियों से भांग बनती है; पौधे के फूलों से गांजा बनता है; पौधे का गोंद सरीखा जो रस चूता है उससे चरस बनता है। चरस के साथ अफ़ीम आदि अन्य नशे के पदार्थ मिलाने से हशीश बनता है।
कैनाबिस सैटाइवा के भी प्राय: वे ही लक्षण हैं जो कैनेबिस इंडिका के हैं।कैनाबिस इंडिका भारत में होता है सैटाइवा यूरोप तथा अमरीका में होती है। दोनों के लक्षण प्राय: एक से है। उसी प्रकार का मानसिक-भ्रम, उसी प्रकार का खोपड़ी का खुलना और बन्द होना, उसी प्रकार का सुज़ाक पर असर इस में भी पाया जाता है। सुज़ाक पर इस औषधि का इंडिका की अपेक्षा कुछ ज्यादा प्रभाव है। इसका मुख्य – लक्षण यह है कि मूत्र-प्रणाली अत्यन्त स्पर्शासहिष्णु हो जाती है, कपडे का स्पर्श भी सहन नहीं कर सकती, रोगी स्वस्थ मनुष्य की तरह नहीं चल सकता। क्योंकि मूत्र-नाली की शोथ मूत्राशय तक पहुंच चुकी होती है, इसलिये टांगें चौड़ी करके चलता है, बार-बार पेशाब जाने की हाजत होती है, पेशाब में खून जाता है। इसीलिये गोनोरिया (सुजाक) के इलाज के लिये यह सर्वोत्कृष्ट औषधि है, खासकर शोथ की अवस्था में जो सुजाक की प्रथम अवस्था है। इन्द्रिय सूज जाती है, उसमें से मोटा, पीला स्राव जाता है और पेशाब जाना कठिन हो जाता है। ऐसे सुजाक का इलाज इसी दवा से शुरू किया जाता है जब तक कि कोई अन्य-औषधि स्पष्ट तौर पर निर्दिष्ट न हो।
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