मिलेफोलियम के लक्षण तथा मुख्य-रोग
( millefolium homeopathy medicine uses in hindi )
(1) कहीं से भी चमकीला, लाल, दर्द रहित रुधिर-स्राव – यह रक्त-स्राव की औषधि है। इसके रक्त-स्राव की विशेषता यह है कि रक्त चमकीला, लाल और दर्द-रहित होता है। चमकीला लाल हो और दर्द रहित हो – इन दो लक्षणों के हाने पर किसी भी रक्त-स्राव में यह उपयोगी है। मुख से, नाक से, फेफड़ों से, पेट से, मूत्राशय से, मल-द्वार से, जरायु से अगर चमकीला और दर्द से रहित खून निकले, तो इससे लाभ होगा। एकोनाइट में भी ऐसा रक्त-स्राव होता है, परन्तु उसमें घबराहट होती है, इसके रक्त-स्राव में घबराहट नहीं होती। अगर बवासीर में खून जाता हो-खूनी बवासीर हो-या क्षय-रोग में इस प्रकार का रक्त-स्राव हो, तो इस औषधि से लाभ होगा। कभी-कभी महावारी बन्द होने पर फेफड़ों से रक्त आने लगता है। ऐसे रक्त-स्राव में भी यह फायदा करती है। खांसी में रोगी को खून आता है। खांसी में 4 बजे प्रतिदिन दोपहर को खून आने के लक्षण में यह लाभप्रद है। यह देख लेना चाहिये कि खून चमकीला हो, लाल हो, और खून आने में किसी प्रकार का दर्द न हो।
(2) रक्त-स्राव की ‘प्रतिरोधक’ (Preventive for hemorrhage) – जो रोगी रक्त-स्राव की प्रकृति का हो, उसे दांत निकलवाने से पहले लैकेसिस या मिलेफोलियम की एक मात्रा दे देनी चाहिये। कई ऐसे रोगी होते हैं जिनका रक्त बहना शुरू होने पर बन्द नहीं होता। उनके रक्त-स्राव के लिये यह ‘प्रतिरोधक’ का काम करती है जो स्त्री रक्त-स्राव की प्रकृति की हो, उसे बच्चा जनने से पहले इस औषधि की मात्रा दे देनी चाहिये, अथवा उसका रक्त जारी होने पर बन्द होना कठिन हो जायेगा। गिर पड़ने से रक्त-स्राव होने लगे, और आर्निका से लाभ न हो, तो इस औषधि को देना चाहिये।
(3) शक्ति – मूल अर्क, 1, 3, 6, 30 (मूल-अर्क तथा निम्न-शक्ति लाभप्रद है)