नेट्रम फॉस का बायोकैमिक उपयोग
मनुष्य जो भोजन करता है, उससे पेट में कई एसिड पैदा हो जाते हैं, जिनमें से एक लैक्टिक एसिड है। अगर यह पेट में ही पड़ा रहे और इसे बाहर निकाल फेंकने की कोई तदवीर न हो, तो वहां पड़ा-पड़ा एसिडिटी पैदा करेगा, खट्टे डकार आने लगेगा, खट्टी उछाली आयेगा तथा एसिडिटी के अन्य उपद्रव उठ खड़े हो जायेंगे। नेट्रम फॉस का काम इस लैक्टिक एसिड के साथ संपर्क में आकर लैक्टिक एसिड को तोड़ देना और इसे ‘कार्बोनिक एसिड’ और ‘पानी’ में विभक्त कर देना है। लैक्टिक एसिड को इस प्रकार तोड़कर नेट्रम फॉस कार्बोनिक एसिड को फेफड़ों में ले जाता है, और वहां से इसे सांस द्वारा बाहर फेंक देता है। पानी पेशाब के रास्ते निकल जाता है। अगर शरीर में ने म फॉस की कमी हो जाय तो लैक्टिक एसिड बाहर न निकल कर पेट में पड़ा रहे, और पेट में एसिडिटी उत्पन्न हो जाय। एसिडिटी का परिणाम खट्टे डकार, खट्टी कय होती है, कय में पनीर की तरह का कुछ पदार्थ पेट से निकलता है। एसेडिटी-अम्ल की अधिकता-के कारण पीले-नीले दस्त आने लगते हैं, पेट में दर्द होने लगता है। बच्चों को जब दूध या मीठा अधिक दिया जाता है, तब उनके पेट में भी लैक्टिक एसिड की मात्रा अधिक हो जाती है, और उनका हाजमा बिगड़ जाता है, उनसे खट्टेपन की बू आने लगती है। ऐसी अवस्था में नेट्रम फॉस लाभ करता है। नेट्रम फॉस से पेट के कीड़े भी निकल जाते हैं।
लैक्टिक एसिड की तरह यूरिक एसिड भी शरीर में पैदा होता रहता है। वह या तो गर्मी से हल होता है, या नेट्रम फॉस से। अगर नेट्रम फॉस की शरीर में कमी हो, तो यूरिक एसिड हल होने के बजाय जोड़ों में बैठने लगता है जिससे गठिये की शिकायत हो जाती है। गठिया तथा वात-रोग में यह लवण बहुत उपयोगी है। नेट्रम फॉस वात-रोग (Rheumatism) और पेट के कीड़ों की मुख्य दवा है। घी आदि चर्बी के पदार्थों को भी नेट्रम फॉस ही पचाता है।
जिन्हें घी आदि गरिष्ठ पदार्थ खाने से अपचन हो जाय, उन्हें इसी लवण का प्रयोग करना चाहिये। इसके सेवन से व्यक्ति घी आदि से बने पदार्थों को सहज पचा सकेगा। हम ऊपर कह आये हैं कि नेट्रम फॉस का काम लैक्टिक एसिड को तोड़ देना है। अगर नेट्रम फॉस की शरीर में कमी हो जाय, तो हम जो खाते-पीते हैं उससे लैक्टिक एसिड बनता रहता है। हम जो दूध पीते हैं उससे शुगर का ख़मीरा बनकर लैक्टिक एसिड बनने का क्रम जारी रहता है। यह लैक्टिक एसिड जहां पेट में एसिडिटी पैदा करता है, वहां साथ ही शरीर के भिन्न-भिन्न स्थानों में पहुंचता भी रहता है। जहां-जहां लिम्फैटिक ग्लैड्स हैं, वहां लैक्टिक एसिड पहुंच कर लिम्फ में विद्यमान एलब्यूमिन को जमा देता है। नेट्रम फॉस की कमी से जब लिम्फैटिक ग्लैंड्स की एलब्यूमिन जम जाती है, तब ये ग्लैंड्स सूज जाते हैं। ग्लैंड्स की यही सूजन तपेदिक की प्रथम अवस्था है। इस अवस्था में अगर नेट्रम फॉस दे दिया जाय, तो वह लैक्टिक एसिड को शरीर में नहीं रहने देगा और इसलिए ग्लैंड्स-ग्रंथियां-नहीं सूजेंगे। तपेदिक की प्रथम-अवस्था में जब ग्रंथि-शोथ प्रारम्भ होने लगे तो नेट्रम फॉस देना चाहिये, द्वितीय अवस्था में मैग्नेशिया फॉस।
नेट्रम फॉस का होम्योपैथिक उपयोग
( natrum phos uses in hindi )
जिस प्रकार यह लवण बायोकैमिस्ट्री में प्रयुक्त होता है उसी प्रकार शक्तिकृत रूप में होम्योपैथी में भी प्रयुक्त होता है। डॉ० कैन्ट लिखते हैं कि बीस वर्ष से वे इसका अनेक रोगियों पर सफलतापूर्वक उपयोग करते रहे हैं। इसके उपयोग के लिये मुख्य-रोग निम्न हैं
(i) पुरानी बदहजमी – एसिडिटी – नेट्रम फॉस का प्रमुख लक्षण एसिडिटी है, खट्टापन। रोगी के हर-एक अंग पर इसका प्रभव पड़ता है। प्रात: काल उठने पर रोगी का मुख खट्टा-खट्टा होता है और यह खट्टापन दिन भर बना रहता है। रोगी को खट्टे डकार आते रहते हैं, खट्टी उल्टी आती है, एसिडिटी के कारण सिर-दर्द होता है, चक्कर आते हैं।
(ii) खट्टी गंध – एसिडिटी की जब और जहां अधिकता हो, तब नेट्रम फॉस पर ही ध्यान जाना उचित है। प्रदर में पनीला, मलाई का-सा सफेद स्राव निकलता है, खुजली होती है। इस स्राव से भी खट्टी बू आती है, रोगिणी इससे बड़ी परेशान रहती है।
(iii) बच्चों के हरे, खट्टी बू के दस्त – बच्चों को हरे-हरे, खट्टी बू वाले दस्त आते हैं जिसका कारण एसिडिटी का बढ़ जाना है। एसिडिटी इस औषधि का ‘व्यापक-लक्षण’ (General symptom) है।
(iv) स्नायविक चिड़चिड़ापन – डॉ० कैन्ट लिखते हैं कि जिन लोगों के स्नायु मानसिक-कार्य, दुश्चरित्रता, व्यभिचार आदि दुष्कर्मों के कारण चिड़चिड़ाते रहते हैं, जिनके लक्षण प्रात:काल, सांयकाल, रात्रि तथा मध्य-रात्रि में बढ़ जाते हैं, उनके स्नायु-रोग को यह दूर कर देती है। मैथुन के बाद जिन लोगों को स्नायु-मंडल के रोग सताते हैं उनके लिये यह विशेष लाभप्रद है। इस औषधि को ‘स्नायु-औषधि’ (Nerve remedy) कहा जा सकता है।
(v) मेरु-दंड की उत्तेजना – मेरु-दंड में जलन खासकर कमर के नीचे के हिस्से में जलन इस औषधि में पायी जाती है।
शक्ति तथा प्रकृति – 6, 30, 200 (औषधि ‘सर्द’-प्रकृति के लिये है। रोगी घी, चर्बी, ठंडा भोजन, खट्टी चीजें नहीं खा सकता)